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दो साल में तीन मीटर गिरा जिले का भूगर्भ जल स्तर

जासं कौशांबी जनपद में हो रहे भूगर्भ जल का दोहन को रोक कर गिर रहे भूजल स्तर को सुधारने के लिए शासन व प्रशासन प्रयासरत है। जिले के छह विकास खंड डार्क जोन हैं। यहां पर नलकूप की गहरी बोरिग पर रोक लगा दी गई लेकिन वर्षा जल का सही तरीके से संचयन न होने की वजह से लगातार हालात बिगड़ रहे हैं। इसका पर्दाफाश केंद्रीय भूगर्भ जल बोर्ड की टीम की जांच में हुआ। जांच के दौरान स्पष्ट हुआ कि दो साल में तीन मीटर भूजल स्तर गिर गया है। यही इस ओर ध्यान न दिया गया तो कौशांबी पानी के लिए बुंदेल खंड जैसे हालात होंगे।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jun 2019 11:20 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jun 2019 06:31 AM (IST)
दो साल में तीन मीटर गिरा जिले का भूगर्भ जल स्तर
दो साल में तीन मीटर गिरा जिले का भूगर्भ जल स्तर

जासं, कौशांबी : जनपद में हो रहे भूगर्भ जल का दोहन को रोक कर गिर रहे भूजल स्तर को सुधारने के लिए शासन व प्रशासन प्रयासरत है। जिले के छह विकास खंड डार्क जोन हैं। यहां पर नलकूप की गहरी बोरिग पर रोक लगा दी गई, लेकिन वर्षा जल का सही तरीके से संचयन न होने की वजह से लगातार हालात बिगड़ रहे हैं। इसका पर्दाफाश केंद्रीय भूगर्भ जल बोर्ड की टीम की जांच में हुआ। जांच के दौरान स्पष्ट हुआ कि दो साल में तीन मीटर भूजल स्तर गिर गया है। यही इस ओर ध्यान न दिया गया तो कौशांबी पानी के लिए बुंदेल खंड जैसे हालात होंगे।

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जल ही जीवन है, मगर जब जल ही नहीं बचेगा तो जीवन कैसे संभव है। यह बात लोगों के समझ नहीं आ रही है। सिचाई, वाटर प्लांट व अन्य तरीके से पानी लगातार दोहन किया जा रहा है। हो रहे भूगर्भ दोहन की वजह से केंद्रीय भूगर्भ जल बोर्ड की टीम वर्ष 2010 में जनपद के छह विकास खंडों को डार्कजोन घोषित किया गया है। सभी से इन विकास खंड क्षेत्रों में शासन व प्रशासनिक अधिकारियों की पैनी नजर है। हर साल केंद्रीय टीम भूगर्भ जल स्तर का सर्वे भी करते है। इसी क्रम में बुधवार को केंद्रीय भूगर्भ जल बोर्ड सदस्य नसीमा जमाल ने चायल तहसील क्षेत्र के काजू गांव में की विभागीय बोरिग के माध्यम से भूगर्भ जल स्तर का सर्वे किया तो स्पष्ट हुआ कि पिछले दो साल में दो मीटर जल स्तर गिर गया है। जो घातक है। उन्होंने बताया कि इसकी रिपोर्ट वह केंद्र सरकार को देंगी।

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इस कारण बिगड़ रहे हालात

जनपद में भूगर्भ जल का दोहन बेहिसाब होने और इस पर किसी भी तरह की जिला प्रशासन की ओर कड़ाई न होने के चलते हालात बिगड़े हैं। अनुमान के मुताबिक जनपद में हर दिन 125 से 150 एमएलडी तक पानी का दोहन विभिन्न माध्यमों से होता है। वहीं आधा पानी इस्तेमाल होता है, वहीं आधा पानी बेवजह बहा दिया जाता है।

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वाटर हार्वेस्टिग बना मजाक

पानी को रिचार्ज करने के लिए सरकारी कागजों में वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम खूब दौड़ता है, मगर जनपद में हकीकत कुछ और है। नगर पंचायतों की ओर से आवासों के नक्शे जारी करने के दौरान वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम अनिवार्यता का नियम है, मगर यह लागू नहीं होता। अनुमान के मुताबिक जिले में 95 फीसदी प्रॉपर्टी में वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम लागू नहीं है।


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