क्रांतिकारी दुर्गा भाभी के जन्म स्थान कौशाम्बी पहुंचे राज्यपाल राम नाईक
कौशाम्बी के जनपद के शहजादपुर गांव में राज्यपाल राम नाईक ने क्रांतिकारी दुर्गा भाभी की स्मृति में भवन का लोकार्पण किया। उसके बाद स्टाल का अवलोकन करके दुर्गा भाभी के घर पहुंचे।
कौशाम्बी (जेएनएन)। देश की आजादी की लड़ाई में बहुमूल्य योगदान करने वाली दुर्गा भाभाी की जन्मस्थली कौशाम्बी में आज राज्यपाल राम नाईक ने उनको नमन किया। भारत छोड़ो दिवस की 76वीं वर्षगांठ पर आज राज्यपाल ने दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी) स्मृति भवन का लोकार्पण करने के साथ सैनिकों को भी सम्मानित किया।
कौशाम्बी के जनपद के शहजादपुर गांव में राज्यपाल राम नाईक ने क्रांतिकारी दुर्गा भाभी की स्मृति में भवन का लोकार्पण किया। उसके बाद यहां लगे स्टाल का अवलोकन करके दुर्गा भाभी के घर पहुचे और उनके परिवार के लोगों से मिले। इसके बाद वीर नारियों का सम्मान किया। सम्मानित होने वाली वीर नारियां फौजियों की पत्नियां है।
दुर्गा भाभी का जन्म सात अक्टूबर 1902 को शहजादपुर ग्राम अब कौशाम्बी जिला में पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ। इनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे और इनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिला में थानेदार के पद पर तैनात थे। इनके दादा पंडित शिवशंकर शहजादपुर में जमींदार थे। जिन्होंने बचपन से ही दुर्गा भाभी के सभी बातों को पूर्ण करते थे। दस वर्ष की अल्प आयु में ही इनका विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ हो गया। इनके ससुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें राय साहब का खिताब दिया था। भगवती चरण बोहरा राय साहब का पुत्र होने के बावजूद अंग्रेजों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे। क्रांतिकारी संगठन के प्रचार सचिव थे। 1920 में पिता जी की मृत्यु के पश्चात भगवती चरण वोहरा खुलकर क्रांति में आ गए और उनकी पत्नी दुर्गा भाभी ने भी पूर्ण रूप से सहयोग किया।
सन् 1923 में भगवती चरण वोहरा ने नेशनल कालेज बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की और दुर्गा भाभी ने प्रभाकर की डिग्री हासिल की। दुर्गा भाभी का मायका व ससुराल दोनों पक्ष संपन्न था। ससुर शिवचरण जी ने दुर्गा भाभी को 40 हजार व पिता बांके बिहारी ने पांच हजार रुपये संकट के दिनों में काम आने के लिए दिए थे लेकिन इस दंपती ने इन पैसों का उपयोग क्रांतिकारियों के साथ मिलकर देश को आजाद कराने में उपयोग किया। मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह ने संयुक्त रूप से नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की।
सैकड़ों नौजवानों ने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान वेदी पर चढ़ाने की शपथ ली। भगत सिंह व भगवती चरण वोहरा सहित सदस्यों ने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए। 28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण करते समय वोहरा जी शहीद हो गए। उनके शहीद होने के बावजूद दुर्गा भाभी साथी क्रांतिकारियों के साथ सक्रिय रहीं।