चाइनीज राखियों से दूरी, स्वदेशी पर रहा बहनों का जोर
भारत और चीन के बीच तनातनी से उपजे आक्रोश का असर अबकी राखी बाजार पर भी रहा। बहनों का भी जोर स्वदेशी राखियों पर रहा। चीन में बनी राखियों का बहनों ने बहिष्कार किया।
कौशांबी : भारत और चीन के बीच तनातनी से उपजे आक्रोश का असर अबकी राखी बाजार पर भी रहा। बहनों का भी जोर स्वदेशी राखियों पर रहा। चीन में बनी राखियों का बहनों ने बहिष्कार किया। दुकानों पर महिलाएं यह पूछकर राखी खरीदतीं दिखीं कि चीन वाली तो नहीं है न। नतीजतन इस बार स्थानीय राखियों की बिक्री हुई।
राखी कारोबारियों ने बताया कि हर वर्ष 15 दिन पहले से ही राखियों की बिक्री शुरू हो जाती थी जिसमें चाइना की बनी आकर्षक राखियों की खूब डिमांड रहती थी जिनकी कीमत सात सौ रुपये तक होती थी, लेकिन इस बार कोरोना और फिर सीमा विवाद ने चीन के प्रति लोगों में गुस्सा भर दिया। लोगों ने चीनी उत्पादों का बहिष्कार किया जिसका प्रभाव राखी पर भी पड़ा। ऐसे में इस बार कोलकाता, दिल्ली, कानपुर, प्रयागराज की बनी राखियां ही दुकानों पर सजीं। मंझनपुर के राखी विक्रेता रामशरण गुप्ता ने बताया कि कोरोना की वजह से हर साल की अपेक्षा इस बार व्यापार में लगभग 30 प्रतिशत तक कि गिरावट रही। पिछले साल उनकी दुकान से 50 हजार रुपये तक की राखी बिकी थी जबकि अबकी 30 हजार रुपये की ही बिक्री हो सकी। ग्राहकों ने भी प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान को ध्यान में रखते हुए लोकल पर ही भरोसा किया। राखी पर राष्ट्रीयता के जज्बे के चलते चीन की राखियों का बाजार ही खत्म हो गया। जय श्री राम, भगवान शिव, तिरंगा, ओम समेत अन्य धार्मिक नग वाली राखियां बहनों को खूब पसंद आई ।
जयनारायण गुप्ता के अनुसार भारत-चीन के बीच सीमा पर तनातनी से जनता में चीन के प्रति आक्रोश तथा चीनी सामानों का बहिष्कार के कारण इस बार चीन की बजाय स्वेदशी राखियां ही खरीदी और बेची गईं।
राहुल सिंह के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर अमल करते हुए इस रक्षाबंधन पर देश में ही बनी राखियां बेचने को लाई थी। चीन निर्मित राखियां नहीं रखी थी। राजेश कुमार ने कहा कि कोरोना के चलते इस बार बाजार में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं रही। हर साल जहां 15 दिन पहले बिक्री शुरू हो जाती थी इस बार केवल तीन-चार दिन ही बिक्री हुई वो भी चीन की बजाय स्वदेशी राखियों पर ही जोर रहा।