मिट्टी के दीये जलाने से कुम्हारों के जीवन में फैलेगा उजियारा
रोशनी के महापर्व दीवाली के मौके पर घर को मिट्टी के दीयों की रोशनी से ही रोशन करें लेकिन पिछले कुछ सालों से बाजार में सस्ती चीनी सामग्री के आने के बाद से इसका सबसे ज्यादा बुरा असर क्षेत्र के कुम्हारों के रोजगार पर पड़ा है। अब कुम्हारों में भी इस बात का खासा मलाल है कि समय के साथ भले ही देश प्रदेश का निजाम बदला हो लेकिन जो भी सरकार आई है वह सिर्फ उन्हें उपेक्षित करने का ही काम किया है।
श्रवण पटेल, मूरतगंज : रोशनी के महापर्व दीवाली के मौके पर घर को मिट्टी के दीयों की रोशनी से ही रोशन करें, लेकिन पिछले कुछ सालों से बाजार में सस्ती चीनी सामग्री के आने के बाद से इसका सबसे ज्यादा बुरा असर क्षेत्र के कुम्हारों के रोजगार पर पड़ा है। अब कुम्हारों में भी इस बात का खासा मलाल है कि समय के साथ भले ही देश प्रदेश का निजाम बदला हो, लेकिन जो भी सरकार आई है वह सिर्फ उन्हें उपेक्षित करने का ही काम किया है।
जिले मूरतगंज क्षेत्र की बात करे तो यहाँ के कुम्हारों की जिदगी में खासा अंधेरा छाया हुआ है। चीनी उत्पादों की मांग के चलते दीवाली का पारंपरिक आकर्षण भी समाप्त होता जा रहा है। लोग पारंपरिक दीयों की जगह अब अपने घरों को चीनी लड़ियों या जेली कैंडल्स से रौशन कर रहे हैं। इससे क्षेत्र के कुम्हारों के बनाये गए दीयों की बिक्री में भी काफी गिरावट आ रही है। जिसके चलते अब उनका परिवार भुखमरी के कगार पर जा पहुंचा है। ऐसे में वह मुश्किल ही अपने परिवार का पेट पाल पा रहे हैं। समझें इनका दर्द
मसूरियादीन, रामचंद्र प्रजापति, विजय कुमार, बसंत लाल, राम सुख प्रजपती, संतोष कुमार आदि का कहना है कि हर साल बिक्री में कम से कम 30 से 40 फीसदी की गिरावट आ रही है। पहले उन्हें दीवाली पर आराम करने का भी मौका नहीं मिलता था, लेकिन अब तो वह अपने बनाए आधे उत्पाद भी बाजार में नहीं बेच पाते हैं। अब लोग खरीदारी के लिए मॉल्स और सुपर मार्केट का रुख करते हैं और वहां से उन्हें महंगी चीज खरीदने में भी कोई आपत्ति नहीं होती है। कुम्हारों की बस्ती में भी हो खुशहाली
क्षेत्र में शेरगढ, काशिया पूरब, अशरफपुर, मलाक नागर, मुजाहिदपुर समेत तीन दर्जन से अधिक ऐसे गांव है जो कुम्हारों की बस्ती के नाम से जाना जाता है। अपने पुस्तैनी रोजगार कर रहे इन कुम्हारों को इस बात की शिकायत है कि उन्हें मिट्टी के लिए जिला प्रशासन द्वारा पट्टा भी नही आवंटित किया जाता है । ऐसे में वह मिट्टी खरीदकर लाते है और दीवाली पर्व पर दीयों को बनाकर बाजार में बेचते हैं लेकिन चीनी उत्पादों की वजह से उनका पूरा समान बिक भी नहीं पाता।