मनुष्य के सारे संतापों को हर लेती है भागवत कथा
श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करने से मनुष्य के सारे संताप नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद जीवन रूपी सभी बंधनों से मुक्ति मिल जाती है और जीव परमात्मा में विलीन हो जाता है। सिराथू कस्बे में आयोजित हो रही भागवत कथा के दूसरे दिन शनिवार को वक्ता अनुराग शरण जी महाराज ने कही।
सिराथू : श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करने से मनुष्य के सारे संताप नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद जीवन रूपी सभी बंधनों से मुक्ति मिल जाती है और जीव परमात्मा में विलीन हो जाता है। सिराथू कस्बे में आयोजित हो रही भागवत कथा के दूसरे दिन शनिवार को वक्ता अनुराग शरण जी महाराज ने कही।
नगर पंचायत सिराथू के एक गेस्ट हाउस में श्रीमद् भागवत कथा कार्यक्रम आयोजन किया जा रहा है। इसमें शनिवार को भागवत कथा सुनने का महत्व बताने के बाद भागवताचार्य ने ध्रुव कथा सुनाई। इस दौरान बताया कि माता पिता द्वारा राज्य से तिरस्कृत करने के बाद महाराज ध्रुव ने वन में जाकर भगवान नारायण की घोर तपस्या की, जिसके बाद भगवान ने उन्हें दर्शन देकर माता-पिता के राज सिंहासन से ऊंचा स्थान देकर जीवन भर चमकते रहने के लिए आसमान में स्थापित कर दिया। कथा में आगे कर्म विभूति संवाद कपिलोपाख्यान की कथा सुनाई। समापन के बाद मुख्य यजमान हरीश चंद्र केसरवानी ने पत्नी शीला केसरवानी के साथ भागवत भगवान की आरती उतारी और प्रसाद का वितरण किया। इस दौरान डॉ. राहुल केसरवानी, सीमा केसरवानी, डॉ. रोहित केसरवानी, डॉ. पूजा केसरवानी, भगवती देवी, शीला केसरवानी, गुलाब चंद्र, केसरवानी समेत तमाम श्रोतागण मौजूद रहे।
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भगवान विष्णु के 24 अवतारों का प्रवचन
संसू, भरवारी : पूरबशरीरा गांव में इन दिनों श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन चल रहा है। कथा के दूसरे दिन संगीतमय प्रवचन कर रहे भगवत भूषण आचार्य संतोषाचार्य जी महराज ने भगवान के चौबीस अवतारों के संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि पृथ्वी पर जब जब संकट आया है। तब तब भगवान ने अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा की है। भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार व वामन अवतार काफी महत्व रखता है। हिरण्यकश्यप जब भक्त प्रह्लाद को मारना चाहा तो भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। इसी वामन का अवतार लेकर दैत्यराज बलि से देवताओं की रक्षा किया था। एक बार बलि के यज्ञ में वामन रूप धारण कर पहुंचकर विष्णु भगवान ने बलि से तीन पग धरती दान में मांग ली थी। उस समय गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ कर दान देने से बलि को रोका लेकिन बलि ने तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। जिस पर भगवान अपना विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती व दूसरे पग में स्वर्गलोक तथा तीसरे पग बलि के सिर पर पैर रखकर अपने कब्जे में कर लिए। इस तरह देवताओं की सहायता कर पुन: स्वर्गलोक देवताओं को सौंपे।