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गन्ने की मिठास पर बिचौलियों का 'डाका'

गंगा की कटरी। हर वर्ष बाढ़ का खतरा। ऐसे में गन्ने की खेती यहां के किसानों की मजबूरी है और कोई फसल पानी में टिक नहीं पाती। यही इनका दर्द बन गई है। शुगर मिल होने के बाद भी गन्ना किसान पहले तो उचित दाम के लिए भटकते रहते हैं। पर्चियां न मिलने पर दलालों को औने-पौने दाम में गन्ना बेचते हैं। यदि मिल को गन्ना बेच भी दें तो भुगतान के लिए एक लंबा इंतजार। सरकारें आती रहीं जाती रहीं मगर गन्ना किसानों का दर्द किसी ने न समझा..।

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 12:29 AM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 06:07 AM (IST)
गन्ने की मिठास पर बिचौलियों का 'डाका'
गन्ने की मिठास पर बिचौलियों का 'डाका'

'गंगा की कटरी। हर वर्ष बाढ़ का खतरा। ऐसे में गन्ने की खेती यहां के किसानों की मजबूरी है और कोई फसल पानी में टिक नहीं पाती। यही इनका दर्द बन गई है। शुगर मिल होने के बाद भी गन्ना किसान पहले तो उचित दाम के लिए भटकते रहते हैं। पर्चियां न मिलने पर दलालों को औने-पौने दाम में गन्ना बेचते हैं। यदि मिल को गन्ना बेच भी दें तो भुगतान के लिए एक लंबा इंतजार। सरकारें आती रहीं, जाती रहीं, मगर गन्ना किसानों का दर्द किसी ने न समझा..।'

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केस एक-

गांव न्यौली निवासी सुरेश को 12 बीघा में की गन्ने की फसल से काफी उम्मीद थी। खेत में सर्वे करने टीम आई तो चार ट्रॉली की पर्ची थमा गई। बाकी चार ट्रॉली सुरेश ने जैसे-तैसे बेचीं। केस दो-

दतिलाना के मोहन को भी चार बीघा की फसल को 250 रुपये कुंतल की दर से बेचना पड़ा, जबकि मिल में खरीद 315 रुपये तक हो रही थी। बीघा के 13-14 हजार मिले। पांच हजार रुपये बीघा की भी बचत नहीं हुई। मिल में पूरा गन्ना बिकता तो कम से कम आठ हजार रुपये बचते। जिज्ञासू वशिष्ठ, कासगंज : यह दर्द हर गन्ना किसान का है। कहने को जिले में दशकों पुरानी चीनी मिल है, लेकिन फायदा किसान नहीं, बिचौलिए उठाते हैं। गऊपुरा गांव के निकट खेत में गन्ने की फसल काट रहे ग्रामीण मुनाफे की बात पर बिफरते हुए कहते हैं गन्ना उगाना मजबूरी है। कटरी में बाढ़ में सिर्फ गन्ना ही सुरक्षित रहता है। एक बीघा में नौ-दस हजार की लागत आती है। अगर ईमानदारी से किसानों का गन्ना मिल खरीद ले तो कोई नुकसान नहीं, लेकिन खेतों में खड़े किसानों को पर्ची नहीं मिलती हैं तो दलाल पर्चियां लेकर खड़े रहते हैं। दलालों से न मिलें तो गेहूं कैसे उगाएं

सोरों के रामलाल कहते हैं मिल तो अपने हिसाब से खरीद करती है। पर्चियां दो-दो महीने बाद आती हैं। नंबर आने का इंतजार करें तो फिर गेहूं की फसल भी नहीं बो पाएंगे। ऐसे में मजबूरी में दलालों को ही बेच देते हैं, ताकि आठ-दस दिन में पैसा मिल जाए और कम से कम गेहूं की फसल तो हो जाएगी। नहीं मिलता भुगतान, चढ़ता रहता है कर्ज :

बीते वर्षों का भुगतान गन्ना किसानों को इस वर्ष हो सका है। किसानों को कई बार आंदोलन करना पड़ा। कटरी में गन्ना बोने वाले किसान इतने समर्थ भी नहीं, जो इतना लंबा इंतजार कर सकें। इस कारण कई तो साहूकार से कर्ज लेकर फसल उगाते हैं। इस वर्ष प्रशासन की चीनी बिक्री पर निगहबानी के बाद भी किसानों का भुगतान नहीं हो सका है। महेश कहते हैं नेताओं ने अभी तक गन्ना किसानों की बात नहीं सुनी। प्रशासन के हस्तक्षेप पर रुकी मनमानी :

गन्ना अधिकारी ओमप्रकाश यादव कहते हैं पहले मिल द्वारा सर्वे कराया जाता था। इस बार प्रशासन ने सर्वे कराया है। पर्चियों का वितरण पारदर्शिता के साथ हुआ है। मिल में शुरुआत में आने वाली खराबी से गन्ना की खरीद कम हुई है। 63 लाख कुंतल की खरीद का था लक्ष्य।

15 लाख कुंतल गन्ना खरीद सकी मिल। 'गन्ना का सर्वे ईमानदारी से होना चाहिए। जितने क्षेत्र में गन्ने की फसल बोई गई है, उसके हिसाब से ही पर्चियां मिलनी चाहिएं।'

-नेकसू

नगला पटिया 'गन्ना किसान हर बार खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। बिचौलियों के जरिए अपना गन्ना बेचना पड़ता है। वक्त पर भुगतान मिले।'

-चंद्रपाल

नगरिया 'गन्ना की खरीद मिल वक्त पर नहीं कर पातीं। बिचौलिए भी हावी रहते हैं। किसान खड़ा रहता है वह अपने वाहन लगा देते है। इस पर अंकुश लगना चाहिए।'

-श्यामवीर सिंह चौहान

अलीगढ़ मंडल उपाध्यक्ष

भारतीय किसान यूनियन


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