इमाम हुसैन की याद में घर-घर हुई नियाज नजर और इबादत
कासगंज जागरण टीम कोरोना संक्रमण के कारण इस बार भी मुस्लिमों ने मुहर्रम के अवसर पर ताजियों के जुलूस नहीं निकाले।
कासगंज, जागरण टीम : कोरोना संक्रमण के कारण इस बार भी मुस्लिमों ने मुहर्रम के अवसर पर ताजियों के जुलूस नहीं निकाले। लोगों ने घरों पर रहकर ही पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन व उनके साथियों की शहादत को याद किया। सुरक्षा व्यवस्था के कड़े प्रबंध रहे।
मुहर्रम की दसवीं तारीख जिसे यौम-ए-आशूरा कहा जाता है, इमाम हुसैन साहब की शहादत का दिन है। इसी दिन हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला में 72 साथियों के साथ शहादत दी थी। इस्लाम में इस दिन को शोक के तौर पर मनाया जाता है। साथ ही मुहर्रम का पूरा महीना गम के महीने के तौर पर देखा जाता है। मुहर्रम की दसवीं तारीख को इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए ताजिये और जुलूस निकाले जाते हैं। हालांकि, इस बार भी ताजियों के जुलूस नहीं निकाले गए। लोगों ने घरों पर इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। मुस्लिम बाहुल्य कस्बा भरगैन, कासगंज, गंजडुंडवारा, बिलराम, अमांपुर, पटियाली, सहावर में भी लोगों ने कोरोना गाइड लाइन के मुताबिक ताजियों का जुलूस न निकालकर घरों में ही हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। मानवता को बचाने के लिए लड़ी करबला की जंग
भरगैन निवासी पूर्व एएमयू छात्र व समाजसेवी रिहान खान ने इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए कहा कि इस्लाम मजहब के अंतिम पैगंबर ह•ारत मुहम्मद साहब के नवासे ह•ारत इमाम हुसैन और उनके 72 जानिसारों की शहादत को याद किया गया। यह दिन इस्लामिक इतिहास का सबसे निदनीय दिनों में से एक माना जाता है। करबला की जंग हक, सत्य व असत्य के बीच थी। इमाम हुसैन ने हर प्रकार का बलिदान दिया।