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जिगर के टुकड़ों को तड़पती रही बेबस 'ममता'

जिगर के टुकड़ों का दर्द तो सिर्फ मां ही समझ सकती है। उस मां के सामने तीन बच्चों की मौत हो गई।

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Jul 2018 11:51 PM (IST)Updated: Fri, 27 Jul 2018 11:51 PM (IST)
जिगर के टुकड़ों को तड़पती रही बेबस 'ममता'
जिगर के टुकड़ों को तड़पती रही बेबस 'ममता'

जागरण संवाददाता, कासगंज: जिगर के टुकड़ों का दर्द तो सिर्फ मां ही समझ सकती है। उस मां के घाव में तो और भी नश्तर चुभ रहे होंगे, जिसके तीन मासूमों के शव पोस्टमार्टम के लिए रखे हो और वह स्वयं गंभीर घायल अस्पताल में तड़प रही हो। उस समय का दृश्य हर किसी की आंख को नम करने वाला होगा। गुरुवार दोपहर जिला अस्पताल में यही दृश्य दिख रहा था। अस्पताल घायल को देखने पहुंचे लोग भी इस दर्द को देख अपने अश्रु रोक नहीं पाए।

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शुक्रवार सुबह एंबुलेंस हूटर बजाती हुई जिला अस्पताल की ओर दौड़ रही थी। दो एंबुलेंस जिला अस्पताल के आपातकालीन वार्ड की ओर, जबकि एक एंबुलेंस पोस्टमार्टम गृह पर जाकर रुक गई। यहां भीड़ जमा हो गई। थोड़ी ही देर में सहावर क्षेत्र के गांव सुजानपुर के सैकड़ों लोग आ गए। यहां मलबे में दबकर काल-कवलित हुई 10 साल की छाया, 7 साल की शर्मिला और चार साल के सौरभ के शव पोस्टमार्टम के लिए भेजे गए, जबकि मां शारदा देवी और बेटा सत्येंद्र, बेटी गौरी घायल अवस्था में आपातकालीन वार्ड में भर्ती थी। मां दर्द से कभी करा रही थी तो कभी बेहोश होकर सदमे के हालात में थी। उसके दिल में दर्द बढ़ा रहा था बच्चों की मौत का नश्तर। मां का हाथ टूटा हुआ था और शरीर पर गंभीर चोट आई थी। लेकिन इन चोटों से ज्यादा दर्द उसे अपने तीन मासूमों की मौत का था। वह इस तरह सदमे में थी। इसे बावजूद उसकी जुबां पर था अपने बेटे और बेटी के नाम। बार-बार उन्हीं को पुकारती थी और फिर चुप हो जाती थी। इस तरह मां के सीने में छुपा दर्द साफ-साफ दिख रहा था। वहां जो भी पहुंचा वह मां की ममता को देख फफक पड़ा और उसकी आंखें नम हो गई। इस तरह की माíमक घटना पर प्रशासन की संवेदना भी बढ़ी। जिला अधिकारी ने तत्काल मुआवजा राशि की घोषणा कर दी, लेकिन मां के दर्द को मुआवजा राशि का मरहम कम नहीं कर पा रहा था। उसके दो बच्चे घायल अवस्था में पड़े हुए। पिता अगनलाल का भी बुरा हाल था।

काश कोई हमारे पास होता

पिता अगनलाल का बुरा हाल था वह कह रहे थे कि मेरे तीन बच्चे तो दुनिया से चले गए और पत्नी और दो बच्चे घायल हैं। काश सभी मेरे साथ झोपड़ी में सो रहे होते तो शायद घटना से बच जाते।

डीएम ने की निजी तौर पर मदद

गरीब परिवार में मृतकों के अंतिम संस्कार की समस्या थी। आíथक हालत सही न होने के कारण संस्कार सामग्री भी नहीं खरीद पा रहे थे। जब डीएम को यह जानकारी हुई तो उन्होंने आठ हजार रुपए की आíथक सहायता निजी तौर पर की।


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