आखिर कब पूरा होगा माती के शहर बनने का सपना
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात: सैंतीस साल पहले कानपुर नगर से पृथक होकर अस्तित्व में आया
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात: सैंतीस साल पहले कानपुर नगर से पृथक होकर अस्तित्व में आया कानपुर देहात जिला शहरी विकास के नाम पर अभी भी वहीं खड़ा है। माती में जिला मुख्यालय बनने के बाद भी नियोजित विकास के सुनहरे सपने को अभी तक पूरा होने का इंतजार है। जिला मुख्यालय को माडल टाउन के रूप में विकसित करने की जिम्मेदारी संभाले केडीए के दफ्तर का ही ठीक ढंग से संचालन नहीं हो सका है। शासन में लंबित अलग विकास प्राधिकरण के गठन के प्रस्ताव को भी हरी झंडी का इंतजार है।
ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए 25 अप्रैल 1981 में दूसरी बार कानपुर से पृथक होकर अस्तित्व में आए कानपुर देहात जिले को सृजन के 37 साल पूरे होने पर भी विकास का इंतजार है। 11 अप्रैल 1994 को माती में जिला मुख्यालय बनाने की घोषणा की गई थी। 12 जुलाई 2001 को माती में कलेक्ट्रेट भवन, विकास भवन व पुलिस कार्यालय तथा 23 फरवरी 2004 को जिला अस्पताल व माती कारागार बना। साथ ही माती को मॉडल टाउन के रूप में विकसित करने की जिम्मेदारी कानपुर विकास प्राधिकरण को सौंपी गई थी। लेकिन महानगर के विकास की जिम्मेदारी संभाले विकास प्राधिकरण माती की वीरानी दूर करने में पूरी तरह विफल रहा। 17 जुलाई 2013 में सिविल न्यायालय का संचालन शुरू होने व केडीए बोर्ड की बैठक में माती अकबरपुर महायोजना बनाने के बाद भी विकास शुरू न होने पर जिले के विकास के लिए अलग से प्राधिकरण गठन की मांग शुरू हुई थी। जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप के बाद शासन के निर्देश पर वर्ष 2013 में तत्कालीन मंडलायुक्त ने जिला प्रशासन के साथ ही केडीए व आवास विकास अफसरों की संयुक्त बैठक कर माती के विकास की कार्ययोजना तैयार कराई थी। अकबरपुर तहसील के 109 गांवों को केडीए के अधीन किया गया। केडीए अफसरों ने जिले में शहर को विकसित करने का मास्टर प्लान भी तैयार किया था, लेकिन दो वर्ष बीतने के बाद भी विकास कार्य की अनदेखी पर जिला प्रशासन ने 27 जनवरी 2015 को माती विकास प्राधिकरण के गठन का प्रस्ताव शासन को भेजा था। इसमें नगर पंचायत अकबरपुर के अलावा अकबरपुर तहसील के 156 गांवों व भोगनीपुर तहसील क्षेत्र के मावर गांव को शामिल कर शहर बनाने का प्रस्ताव किया गया था। जिले से निरंतर पत्राचार के बाद भी प्रस्ताव शासन में लंबित पड़ा है। इस साल फरवरी माह में शासन से बिना विकास प्राधिकरण वाले जिलों से प्रस्ताव मांगे जाने के बाद 2015 में भेजे गए प्रस्ताव का हवाला देकर माती विकास प्राधिकरण गठन को नया प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है। लेकिन दूसरी बार भेजे गए प्रस्ताव को भी शासन की हरी झंडी का इंतजार है।
जनप्रतिनिधि भी करें पहल तो बने बात
वर्ष 2015 से माती विकास प्राधिकरण का प्रस्ताव शासन में लंबित है। इस साल फरवरी माह में प्रमुख सचिव आवास एवं शहरी नियोजन विभाग ने मंडलायुक्तों से बिना प्रधिकरण वाले जिलों से इस आशय के प्रस्ताव मांगे थे। इसके बाद शासन में वर्ष 2015 से लंबित माती विकास प्राधिकरण के प्रस्ताव को फिर से शासन में भिजवाया जा चुका है। जिला प्रशासन के साथ जनप्रतिनिधियों को भी शासन स्तर पर पहल करने की जरूरत है। - पंकज वर्मा, एडीएम प्रशासन, कानपुर देहात।