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कद्रदानों ने मुंह मोड़ा, हाथों ने हुनर छोड़ा

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : वह भी क्या दिन थे, जब मिंट्टी से बने गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों और

By JagranEdited By: Published: Sat, 03 Nov 2018 07:37 PM (IST)Updated: Sat, 03 Nov 2018 07:37 PM (IST)
कद्रदानों ने मुंह मोड़ा, हाथों ने हुनर छोड़ा
कद्रदानों ने मुंह मोड़ा, हाथों ने हुनर छोड़ा

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : वह भी क्या दिन थे, जब मिंट्टी से बने गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों और दियाली के खरीदार तीन माह पहले से ही दस्तक देने लगते थे। दीपावली तक सारा माल बिक जाता था। कद्रदानों ने मुंह क्या मोड़ा, हाथों का हुनर पाई-पाई को मोहताज हो गया। रही-बची कसर प्रशासन की उपेक्षा ने खत्म कर दी। अब नई पीढ़ी कुम्हारी कला से ही कन्नी काटने लगी है।

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मूसानगर, भोगनीपुर, रसूलाबाद, मैथा आदि क्षेत्रों के करीब 75 गांवों में कुम्हारी कला एक कुटीर उद्योग की तरह है। यहां से तैयार माल दूसरे जनपदों को बिक्री के लिए जाता है। मगर, अब मिंट्टी की मूर्तियों की मांग धीरे-धीरे कम होती जा रही है। रसूलाबाद के रहीम नगर निवासी रामशंकर का मिंट्टी के खिलौने व मूर्तियां बनाने का पुस्तैनी काम है। पूरा परिवार इस काम में जुटा रहता था। बदलते जमाने के साथ सरकार ने इनका साथ छोड़ दिया। घर के युवा तो धंधे से दूर हो गए, लेकिन किसी तरह खुद को जोड़े हुए हैं। मूर्तियां बनाने वाले मूसानगर बांगर के ब्रजेश, राम प्रसाद, विनय कुमार आदि का कहना है कि मूर्तियां तैयार कर बिक्री करना उनका पुस्तैनी काम है। परिवार के बड़े बूढ़े आने पीढ़ी को हुनर सौंप जाते थे। मगर, अब मांग घटने से युवा आगे नहीं आ रहे हैं। अकबरपुर के विजय, रूरा के जगन्नाथ, रामबाबू, गरीबे व पप्पू प्रजापति का कहना है कि दीपावली पूजन में मिट्टी की मूर्तियों का महत्व होने से फिलहाल रस्म की तरह मूर्तियों का कारोबार रह गया है।

आधुनिकता ने किया मोह भंग

शहर व कस्बों में लोग चांदी के गणेश-लक्ष्मी, सिक्के पर बनी प्रतिमाओं को प्रतीक के रूप में पसंद करने लगे हैं। वहीं, बाजार में इलेक्ट्रानिक लाइट व झालरों ने दियाली का स्थान ले लिया।

कारोबार में आई गिरावट

प्रशासन की उपेक्षा से कुम्हारों का कुटीर उद्योग डूबने की कगार पर है। मूर्तियां व खिलौने बना रोजी-रोटी जुटाने वालों के लिए बाजार नहीं मिल पा रहा है। साधन न होने से बाहर भी नहीं जा सकते। अब प्लास्टर आफ पेरिस का प्रचलन बढ़ा है।

प्रशासन से उम्मीद

- प्रशासन उनके बनाए माल की बिक्री के लिए मदद करे।

- सरकारी योजनाओं के जरिए कुम्हारी कला का प्रचार-प्रसार हो।

- बाजार उपलब्ध होगा तो मांग भी बढ़ेगी।

- आर्थिक मदद मिले ताकि उन्हें बाहर माल भेजने में दिक्कत न हो।

- समूह से जुड़ने का मौका मिलेगा तो कला को कद्रदान मिलेंगे। कुम्हारी कला से जुड़े लोगों की मदद के लिए उन्हें आजीविका मिशन से जोड़ा जाएगा। शासन स्तर से मिलने वाले लाभ को उन तक पहुंचाया जाएगा।-महेंद्र कुमार राय, सीडीओ, कानपुर देहात


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