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त्योहार की शुरू हुई तैयारी, बनने लगे करवे व दियाली

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात: आगामी 27 अक्टूबर को करवा चौथ व 7 नवंबर को दीपावाली का त्य

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Oct 2018 08:44 PM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2018 08:44 PM (IST)
त्योहार की शुरू हुई तैयारी, बनने लगे करवे व दियाली
त्योहार की शुरू हुई तैयारी, बनने लगे करवे व दियाली

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात: आगामी 27 अक्टूबर को करवा चौथ व 7 नवंबर को दीपावाली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा। इसके लिए अभी से तैयारियां शुरू हो गई है। करवाचौथ पर मांग को देखते हुए कुम्हार करवा तैयार कर उसकी रंगाई व सजावट में दिन रात एक किए हैं। वहीं दीपावली के लिए मिट्टी के दीपक तैयार कर बड़े स्तर पर भंडारण किया जा रहा है।

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दीपावली व करवा चौथ त्योहार नजदीक देख अकबरपुर, रूरा सहित विभिन्न कस्बों में कुम्हारों की बस्तियों में तैयारियां युद्ध स्तर पर शुरू हो गईं है। त्योहारी मांग को देखते हुए करवा व दीपक बनाने में अभी से दिन-रात एक किए हैं। अकबरपुर के करन, राम बाबू, रूरा कस्बे के रामबाबू, गरीबे व पप्पू प्रजापति ने बताया कि संपन्न घरानों में तांबे व फूल धातु के करवा का प्रचलन बढ़ने के बाद भी मिट्टी के करवों को अभी भी प्राथमिकता दी जा रही है। करवा चौथ के त्योहार में मात्र छह दिन का समय शेष है। ऐसी हालत में करवा तैयार करने, पकाने व रंगने का काम व्यापक स्तर पर चल रहा है। अकबरपुर के राम बाबू व सीमा रविवार को मिट्टी के दीपकों को तैयार करने व रंगने में मशगूल दिखे। उन्होने बताया कि पूजन में मिट्टी के दीपकों का महत्व बरकरार रहने से इनकी मांग ठीक ठाक रहती है। यह धंधा उनका पुश्तैनी है, लेकिन नगरीय क्षेत्रों में मिट्टी की उपलब्धता कम होने से बाहर से मंहगी दर पर मिट्टी मंगानी पड़ती है।

पूरा परिवार जुटकर करता है तैयारी

अकबरपुर कस्बे के करन चाक पर बैठकर मिट्टी के करवे तैयार कर रहे थे। उनका कहना है कि करवाचौथ के त्योहार में मिट्टी के करवों का काफी महत्व है। कई दिन पूर्व से ही वह लोग इसके निर्माण में लग जाते है। इसके साथ ही इन पर रंगरोगन कर इन्हें सुंदर बनाया जाता है। जबकि उनकी पत्नी राम देवी व पुत्रियां खुशबू व कोमल तथा निशा करवों को रंगने व डिजाइनर बनाने के काम में जुटी दिखीं। उन्होने बताया कि दीपक व करवा बनाने, पकाने व रंगने के साथ ही मजदूरी का खर्च यदि जोड़ दिया जाए तो विशेष आय नहीं है। काम में लगी उनकी पुत्रियों कोमल, निशा व खुशबू ने बताया कि पढ़ाई के साथ वह अपने परंपरागत कुटीर उद्योग के प्रति भी काफी गंभीर हैं तथा पिता का सहयोग कर इस काम की बारीकियों को भी सीख रही हैं।


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