स्वतंत्रता संग्राम का मूक गवाह है शुक्ल तालाब
ेजागरण संवाददाता, कानपुर देहात: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की आग में कूदे रणबांकुरों के शहा
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की आग में कूदे रणबांकुरों के शहादत का मूक गवाह है अकबरपुर का ऐतिहासिक शुक्ल तालाब। सन 1857 की गदर में तात्या टोपे के साथ शाहपुर की रानी की अगुआई में रणबांकुरों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था। आज यहां के ध्वस्त किले और ऐतिहासिक स्थलों के खंडहर अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं।
गदर के दौरान अकबरपुर के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। तात्या टोपे व शाहपुर की रानी के नेतृत्व में 16 व 17 अगस्त 1857 को एकत्र हुए रियासतदारों व क्रांतिकारियों ने फिरंगी सेना को भौंती व सचेंडी तक खदेड़ दिया था। हालांकि गदर के बाद कर्नल कैंपवेल की अगुआई वाली अंग्रेजी सेना ने शाहपुर की रानी के किले को ध्वस्त करा दिया था। इतना ही नहीं 1858 में अकबरपुर का ऐतिहासिक शुक्ल तालाब के उत्तर में स्थित बारादरी में हैवालॉक ने अदालत लगा 1858 में शाहपुर की रानी के सात विश्वसनीय क्रांतिकारियों को नीम के पेड़ पर फांसी दी थी।
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अंग्रेजों को मारकर कुएं में दफनाए गए थे शव
सन 1857 में बाढ़ापुर के राजा विजय ¨सह का किला आजादी के दीवानों की गतिविधियों का केंद्र था। बिठूर से निर्वासित नाना साहब पेशवा अपने सहयोगियों के साथ जनवरी 1858 में बाढ़ापुर के राजा विजय ¨सह के आतिथ्य में यहां ठहरे थे। उनकी गिरफ्तारी के लिए दस हजार रुपये का इनाम घोषित हुआ था। इसका जिक्र कानपुर देहात के इतिहास लेखक लक्ष्मीकांत त्रिपाठी व सूचना विभाग की पुस्तिका में है। इस आशय का पत्र 1947 तक अकबरपुर तहसील के रिकॉर्ड में उपलब्ध रहा। नाना साहब को पकड़ने के लिए अंग्रेजी सेना के आने की सूचना पर राजा विजय सिंह की सेना ने छापामार युद्ध में अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा था। साथ ही वहां बने कुएं में फिरंगियों के शवों को दफना दिया था। मौजूदा समय में विजय ¨सह का किला पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है।