दो अक्टूबर पर विशेष : चरखे से खींची तरक्की की 'रेखा'
बापू के चरखे ने कर दिया कमाल घर बैठे महिलाओं को मिल रहा रोजगार आर्थिक रूप से मजबूत हो अपने परिवार का बनी बड़ा सहारा
संवाद सूत्र, रूरा (कानपुर देहात): पांच साल पहले सर्वा की मुन्नी देवी के परिवार का गुजारा पति द्वारा की गई मजदूरी से हुई आय पर ही निर्भर था पर कहते हैं समय बदलते देर नहीं लगती, कुछ ऐसा ही हुआ उनके साथ। एक दिन बाजार में मिली सरायं की रेखा ने बात-बात में उन्हें कच्चे सूत की कताई का कमाल सुनाया फिर क्या था वह भी स्वराज्य खादी आश्रम पहुंच गई। आज हालात बदले हुए हैं। उनके परिवार को आर्थिक समृद्धि मिल चुकी है। पति भी काम में हाथ बंटाते हैं। उनके जैसी तमाम महिलाओं ने आज कच्चे सूत की वजह से अपनी दुनिया ही बदल ली है। उन्हें घर बैठे रोजगार मिल रहा है।
सरायं की रेखा तिवारी 30 साल से सूत कताई का काम कर रही हैं। पहले अकेले ही काम में जुड़ी थी। अब इनके गांव से एक दर्जन महिलाएं यह काम कर रही हैं। रेखा ने बताया कि रूरा कस्बा स्थित स्वराज्य खादी आश्रम से जुडी महिलाएं सूत कातकर घर बैठे व्यवसाय करके रुपये कमा रही है। मौजूदा समय में इस संस्था से सराय, गढ़ेवा, चिलौली, सर्वा, बड़ा गांव, दिबियापुर, अनूपुर सहित अन्य एक दर्जन गांव की करीब 150 महिलायें जुड़ी हैं जिनको खादी आश्रम 194 रूपये प्रति किलो रुई देता है। उसके बदले में 373 रुपये प्रति किलो कता हुआ सूत आश्रम में ही खरीद लिया जाता है। महिलाओं का भुगतान उसके सीधे बैंक खाते में कर दिया जाता है। परिवार से मिलता सहारा
प्रति महिला एक सप्ताह में एक से दो किलो तक सूत निकाल लेती है। महिलाओं की जो आमदनी होती है उसे उसके बैंक खाते में भेजा जाता है। सरायं गढ़ेवा की मंजू, आसमां, जैनब, रेखा तिवारी, मीरा त्रिवेदी, मोमना, बड़ा गांव की अभिलाषा, अंजू लता, सुधा, सरिता, शोभा, आशा कहती हैं कि पहले उनके पास कोई काम नहीं था। अब खादी भंडार से मिले चरखे ने उनका जीवन ही बदल दिया है। परिवार के अन्य सदस्य भी उनके इस पेशे में पूरा सहयोग करते हैं। घर बैठे ही काम मिल रहा है, इससे उनका जीवन खुशहाल हो गया है। पहले दिया जाता प्रशिक्षण
खादी आश्रम के व्यवस्थापक मिथलेश कुमार तिवारी ने बताया कि इस व्यवसाय में सबसे कम लागत में महिलाएं आमदनी कर सकती हैं। इस समय डेढ़ सौ महिलाएं इस पेशे से जुड़ी हैं। घर में रहते हुए वह आसानी से यह काम कर पाती हैं। जो महिलाएं सूत कातने की इच्छुक होती हैं उन्हें एक दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है। बाद में चरखा और कच्चा सूत खादी भंडार से उपलब्ध करा देते हैं।