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जलाएं मिट्टी के दीये, रोशन करें इनकी दीपावली

मिट्टी के दीपक जलाने का अपना अलग ही महत्व कुम्हारों को रोजगार के साथ परंपरा का भी होता निर्वहन

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Oct 2019 12:42 AM (IST)Updated: Thu, 24 Oct 2019 06:16 AM (IST)
जलाएं मिट्टी के दीये, रोशन करें इनकी दीपावली
जलाएं मिट्टी के दीये, रोशन करें इनकी दीपावली

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात: जिले में रोशनी के पर्व दीपावली के त्योहार में अब कु दिन का ही समय शेष बचा है। दीपावली पर बिकने वाले मिट्टी के दीपक लगभग बन कर तैयार हो चुके हैं। मिट्टी को चाक पर काटकर उसे चंद मिनटों मे अलग-अलग आकार देना कुम्हारों की विशेष कला है। दरअसल दीपावली पर घर,दुकान व प्रतिष्ठानों में घी का दीपक जलाने का रिवाज पुराना है। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की रात धन की देवी लक्ष्मी भ्रमण करती हैं। लक्ष्मी को प्रसन्न करने को घर दुकान व प्रतिष्ठानों में घी के दीपक जलाकर रोशन करते हैं। इस बार सभी संकल्प लें, रोशनी के पर्व पर मिट्टी के दीपक खरीदकर कुम्हारों की मेहनत को सफल करने के साथ ही उनके भी घर रोशन करें।

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रोशनी के पर्व दीपावली पर लोग मिट्टी के दीपक जलाकर घरों व मंदिरों को जगमग करते थे। दीपावली के महीनों पहले कुम्हारों की बस्तियों में चहल पहल तेज हो जाती थी। पहले करवे व बाद में मिट्टी के दीपक बनाने का काम बड़े पैमाने पर चलता था। कुम्हारों को इस सीजन में पल भर के लिए बैठने की फुर्सत नहीं मिलती थी,लेकिन कुछ सालों से इलेक्ट्रानिक झालरों ने इन दीपकों की मांग कम की है। लोग महज पूजन के लिए मिट्टी के दीपक की खरीद करने लगे। इससे कुम्हारों में निराशा का माहौल बना था। कुछ समय से चाइनीज इलेक्ट्रानिक झालरों के बहिष्कार की मुहिम तेज हुई तो कुम्हारों को व्यवसाय के बेहतर होने की उम्मीद जगी है। इस बार दीपावली में मिट्टी के दीपकों की श्रृंखला सजाने को लोग उत्साहित भी हैं। अकबरपुर, रूरा समेत विभिन्न कस्बों में मिट्टी के दीपक बनाने के काम में तेजी दिखी है। कुम्हारों की बस्तियों में रौनक इस बात का सुबूत है।

उम्मीदों को मिली रोशनी

अकबरपुर के शिकरन, रामबाबू और विजय कहते हैं कि पहले मिट्टी के दीपों की इतनी मांग रहती थी कि पूरा करना मुश्किल होता था, लेकिन अब तो बिक्री कम हो गई है। वैसे इस बार पिछली बार की अपेक्षा डिमांड अधिक दिख रही है।

रूरा कस्बे के गरीबे, रामबाबू, पप्पू का कहना है कि यह काम उनके बुजुर्गों से होता आ रहा है। मौजूदा समय में मिट्टी के दीपक बनाने का काम तेज है, पहले कई माह पूर्व ही दिवाली को लेकर तैयारी होती थी जो अब नहीं दिखती है। अब तो सब औपचारिक सा हो गया है।


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