समय रहते सक्रिय होती पुलिस तो शायद बच जाती जान
संवाद सहयोगी झींझक किसान परशुराम की हत्या में फिर से पुलिस की लचर कार्यशैली सामने अ
संवाद सहयोगी, झींझक : किसान परशुराम की हत्या में फिर से पुलिस की लचर कार्यशैली सामने आई है। गुमशुदगी के मामलों को हल्के में लेने की आदत इस हत्याकांड में भी सामने आई है। भले ही हत्यारे ने गुमशुदगी दर्ज होने के पहले ही हत्या कर दी हो, लेकिन पुलिस सक्रिय होती तो शायद शव व हत्यारे पहले ही मिल चुके होते।
पुलिस के सक्रिय न होने को लेकर ग्रामीण व स्वजन में आक्रोश है। उनका कहना है कि गुमशुदगी दर्ज होने के बाद पुलिस झांकने तक नहीं आई और मोबाइल को सर्विलांस पर नहीं लगवाया। इसके पीछे सोच यही रही कि बुजुर्ग हैं कहीं भटककर या नाराज होकर चले गए होंगे। आखिर यही लापरवाही एक परिवार के ऊपर भारी पड़ी।
हत्यारा ले गया मोबाइल
परशुराम का मोबाइल अभी तक नहीं मिला है, हत्यारे हत्या के बाद राज छिपाने के इरादे से मोबाइल भी ले गए। अब पुलिस मोबाइल को सर्विलांस पर लगाने की बात कह रही। वहीं औरंगाबाद भोला हुलास व गणेश गंज गांव के बीच में कुआं है। दोनों गांवों के घटनास्थल से दूरी 5 -5 सौ मीटर है और खेतों की पतली मेड़ों के अलावा कोई रास्ता नहीं है। आखिर दिवंगत वहां तक कैसे और क्यों गया यह भी सवाल है।
स्वजन का बुरा हाल
दिवंगत की पत्नी लौंगश्री व पुत्रों कुलदीप, नीरज, संदीप का रो रोकर बुरा हाल हो गया। उन्हें शव का चेहरा तक देखना नसीब तक न हुआ। वह रोते हुए भगवान को कोस रहे थे कि आखिर ऐसा मनहूस दिन क्यों दिखाया। हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है।
घटना छिपाने को डाली तीन और बोरी
हत्यारे ने हत्या का पता न चल सके इसके लिए तीन और भी बोरी कुएं में डाली थी। चारों बोरी एक ही रंग की थी और पानी कम होने से उतराने लगी और सभी रस्सी से बंधी थी। बाकी तीन बोरियों में कूड़ा, पत्ती व शराब की बोतल थी।