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टीकाकरण को लेकर अल्पसंख्यक समाज उदासीन

जागरण संवाददाता कानपुर देहात बच्चे निरोगी रहे इसके लिए सरकार व शासन गंभीर है। इंद्रध

By JagranEdited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 12:17 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jan 2020 06:04 AM (IST)
टीकाकरण को लेकर अल्पसंख्यक समाज उदासीन
टीकाकरण को लेकर अल्पसंख्यक समाज उदासीन

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : बच्चे निरोगी रहे इसके लिए सरकार व शासन गंभीर है। इंद्रधनुष अभियान के जरिए बच्चों का इसलिए टीकाकरण अभियान भी चल रहा लेकिन अल्पसंख्यक समाज के लोग इसे लेकर उदासीन है। तमाम प्रयास के बाद भी घर से लोग टीकाकरण के लिए नहीं निकल रहे है जिसके चलते इनका प्रतिशत बहुत ही कम है। समाज के लोगों को घर से केंद्र तक टीकाकरण के लिए निकालने को अब उर्दू में लिखे पोस्टर के साथ ही बच्चे को दुलारते पिता की तस्वीर वाले पोस्टर लगाकर व प्रचार प्रसार कर रहा।

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इंद्रधनुष अभियान जनपद के अकबरपुर व संदलपुर ब्लाक में चल रहा है। रोटा वायरस, डिप्थीरिया, काली खांसी व रूबेला से बचाव के लिए यह टीकाकरण बहुत ही जरूरी है। अगर यह टीके न लगे तो बच्चे के बीमार होने की संभावना अधिक है। जिसके चलते खासकर बच्चे व गर्भवती महिलाओं के लिए टीकाकरण चल रहा है। लेकिन अल्पसंख्यक समाज के लोग इस टीकाकरण को लेकर बहुत ही उत्साह नहीं दिखा रहे जिसके चलते टीकाकरण में इनकी भागीदारी बहुत ही कम हो पा रही है। अकबरपुर बीआरसी स्थित केंद्र में अभियान के पहले सत्र में मात्र सात बच्चे ही मिल पाए थे, वहीं दूसरा सत्र अभी चल रहा जिसमें केवल एक बच्चा ही केंद्र तक आ सका है। वहीं संदलपुर की बात करें तो यहां पर टीकाकरण का प्रतिशत 30 फीसदी से भी कम है। इसे लेकर विभाग चितित है कि आखिर किस तरह समाज की भागीदारी बढ़ सके। अब स्वास्थ्य विभाग की तरफ से उर्दू में लिखे पोस्टर लगाए जा रहे है साथ ही मुस्लिम पिता की बच्चे को दुलारते हुए पोस्टर भी प्रचारित किया जा रहा। विभाग उम्मीद कर रहा कि शायद इस प्रयास से कुछ प्रतिशत बढ़ सके। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. महेंद्र जतारया ने बताया कि विभाग उर्दू में लिखे पोस्टर के जरिए प्रचार प्रसार किया जा रहा है। उम्मीद है कि इसके अच्छे परिणाम निकलेंगे।

आशा बहू व कर्मियों को करनी पड़ रही मशक्कत

क्षेत्र में जाकर बच्चों को टीकाकरण के लिए चिह्नित करने का काम आशा बहू, एएनएम व स्वास्थ्य कर्मी कर रहे। कई घरों को तो चिह्नित कर उसमें नाम व संख्या दर्ज कर आते है लेकिन इसके बाद भी बच्चों को अभिभावक टीकाकरण को नहीं भेजते। कभी समय न होने तो कभी बीमार होने के बहाने बनाकर टाल देते है। आशा बहुओं ने बताया कि बहुत समझाने के बाद भी कई लोग आने को तैयार नहीं होते ऐसे में वह भी परेशान हो जाती है।


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