गाय व बछड़े की पूजा कर पुत्र के दीर्घायु को रखा व्रत
संवाद सहयोगी रसूलाबाद पुत्रवती महिलाओं ने गोवत्स द्वादशी पर अपने पुत्रों की दीर्घ जीवन की काम
संवाद सहयोगी, रसूलाबाद : पुत्रवती महिलाओं ने गोवत्स द्वादशी पर अपने पुत्रों की दीर्घ जीवन की कामना व कुशलता के लिए गाय बछड़े की विधिवत पूजा-अर्चना की और व्रत रखा। प्राचीन परंपरा के अनुसार महिलाएं सुबह स्नान करके अपने पुत्र की दीर्घायु होने की कामना को लेकर गोवत्स की पूजा करती हैं। मान्यता है कि पुत्र कामना के लिए भी महिलाएं इस व्रत को करके पुत्र प्राप्ति करती हैं। इस व्रत की कथा भी प्रचलित है, जिसमें कहा जाता है कि एक साहूकार के सात बेटे थे। उसने लोगों की सुविधा के लिए एक तालाब बनवाया, लेकिन 12 वर्ष तक बारिश के बावजूद भी वह तालाब भरा नहीं। उसने इस विषय में विद्वानों से पूछा तो किसी ने उसे बताया कि यदि वह अपने सबसे बड़े पोते की बलि दे तो तालाब भर जाएगा। उसने अपने बड़े बेटे की बहू को उसके मैहर भेज दिया। इसके बाद उसने अपने बड़े पोते की बलि दी। जिससे तेज बारिश हुई और वह तालाब भर गया बाद में उसने एक उत्सव किया, जिसमें बड़ी बहू भी पीहर से आई। उत्सव के समय आई बड़ी बहू ने अपने बड़े बेटे के न मिलने पर उसके बारे में पूछा तब साहूकार की पत्नी में उसकी बलि देने की सारी बात बता दी। इससे वह बहुत दुखी हुई। साहूकार ने उत्सव के लिए जाने के पूर्व अपनी नौकरानी से घर में गेहुला बनाने की बात कही। यानी गेहूं और चावल। कितु उसके घर में जो गाय थी उसके बछड़े का नाम भी गेहुला होने से नौकरानी ने बछड़े को काटकर उसकी सब्जी बना दी। कार्यक्रम के बाद जब साहूकार घर लौटा तो बछड़े को न पाने पर नौकरानी से पूछा। तब उसने बताया कि उसने तो उसकी सब्जी बना दी है। इस पर साहूकार को बहुत अफसोस हुआ और उसने उस सब्जी को एक मिट्टी के पात्र में भरकर जमीन में दबा दिया। शाम को जब गाय घर लौटी और अपने पुत्र को नहीं पाया तो उसी स्थान पर जहां पर मिट्टी का पात्र दबाया गया था, सींगों से उसे खोदने लगी। खोदने पर उसका बछड़ा और साहूकार का पोता उसमें से जीवित निकल आया। इसे भगवान का चमत्कार मान तभी से व्रत व पूजन होने लगा।