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हार्ट अटैक हुआ तो जिला अस्पताल में इलाज भगवान भरोसे

वर्षों से खाली पड़ा कार्डियोलाजिस्ट का पद मरीजों को सिर्फ रेफर का पर्चा

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Aug 2019 12:35 AM (IST)Updated: Mon, 26 Aug 2019 06:25 AM (IST)
हार्ट अटैक हुआ तो जिला अस्पताल में इलाज भगवान भरोसे
हार्ट अटैक हुआ तो जिला अस्पताल में इलाज भगवान भरोसे

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था के कारण सुर्खियों में रहने वाले जिले में हार्ट अटैक के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। जनपद के सबसे बड़े संयुक्त जिला चिकित्सालय में हार्ट अटैक से इलाज की व्यवस्था के नाम पर सिर्फ ईसीजी मशीन है जबकि कार्डियोलॉजिस्ट चिकित्सक का पद पिछले कई साल से रिक्त चल रहा है। इलाज के नाम पर आने वाले मरीजों को रेफर का पर्चा थमा दिया जाता है। समय पर उपचार न मिलने के कारण पूर्व में कई लोगों की हार्ट अटैक से मौत हो चुकी है। इसके बाद भी जिम्मेदार जिला अस्पताल में हार्ट अटैक के मरीजों के इलाज की सुविधा विकसित करने के लिए कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। ऐसे में जिला अस्पताल आने वाले मरीजों का हार्ट अटैक के मरीजों का इलाज भगवान भरोसे बना हुआ है।

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इंसेट-

कार्डियोलॉजिस्ट न होने से हार्ट अटैक मरीजों का उपचार संभव नहीं हो पता है। आइसीयू में बेड तो हैं, लेकिन वेंटीलेटर सहित अन्य जरूरी उपकरणों का अभाव है। इस बाबत कई बार शासन को सूचना भेजी जा चुकी है।

-डॉ. आरए मिर्जा (सीएमएस जिला अस्पताल पुरुष) लाखों खर्च फिर दिखावा बना आइसीयू

लाखों रुपये खर्च करने के बाद जिला अस्पताल में कार्डियोलॉजी आईसीयू खोला गया था। वार्ड में अत्याधुनिक बेड आदि तो डलवा दिए गए, लेकिन वेंटीलेटर सहित अन्य जरूरी उपकरणों का टोंटा बना रहा। इसके चलते आईसीयू ताले में बंद रहता है। गंभीर मरीज आने पर भी कार्डियोलॉजिस्ट न होने से आईसीयू का ताला नहीं खुलता है। वहीं ईको कार्डियोग्राफी, सीटी स्कैन जैसी जांच की सुविधा भी नहीं है। यहां हार्ट अटैक के मरीजों को इलाज के नाम पर सिर्फ ईसीजी की व्यवस्था है। नहीं है खून का थक्का खत्म करने की दवा

जिले के सदर अस्पताल ही नहीं किसी निजी अस्पताल तक में हार्ट अटैक आने पर त्वरित रिलीफ के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली थंबोलाइसिस थेरेपी यानी खून का थक्का खत्म करने की दवा मौजूद नहीं है। ऐसे में हार्ट अटैक आने पर मरीज के सामने सिर्फ कानपुर नगर के अस्पतालों का ही सहारा रहता है। जिला अस्पताल से रेफर होने के बाद कई बार मरीज की नगर के अस्पताल पहुंचने से पहले की सांसों की डोर टूट जाती है।


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