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दिल्ली की रसोई में देवकली की 'क्रांति'

त्रिपुरेश अवस्थी कानपुर देहात देवकली की क्रांति हंटर दिव्यज्योति दिल्ली में धूम मचा रही

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 08:05 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 08:05 PM (IST)
दिल्ली की रसोई में देवकली की 'क्रांति'
दिल्ली की रसोई में देवकली की 'क्रांति'

त्रिपुरेश अवस्थी, कानपुर देहात:

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देवकली की क्रांति, हंटर, दिव्यज्योति दिल्ली में धूम मचा रही है। चौंकिए नहीं, यह कुछ और नहीं बल्कि हरी मिर्च की प्रजाति है। दिल्ली ही नहीं लखनऊ व कानपुर की गृहणियों को भी इसका तड़का बहुत भा रहा है। भले ही आज के दौर में खेती नीरस होती जा रही है, पर नीरसता को हरी मिर्च के तड़के से दूर किया जा सकता है। अकबरपुर तहसील क्षेत्र के देवकली गांव के 35 वर्षीय किसान विनोद कुशवाहा ने ऐसा करके दिखाया।

इंटरमीडिएट तक पढ़ाई के बाद उन्होंने खेती-बाड़ी में पिता रामनाथ का हाथ बंटाना शुरू किया। उद्यान विभाग से खेती के परंपरागत तरीकों से हटकर कुछ नया करने की चाह ने उन्हें रास्ता दिखाया। उन्होंने हरी मिर्च की खेती को व्यवसाय का रूप दिया। नतीजतन, खेती का कठिन काम भी रुचिकर और मुनाफे का सौदा समझ में आने लगा।

विनोद ने बताया कि रोपाई से पहले पौध से पौध और लाइन से लाइन के बीच की दूरी को दो फीट रखते हुए मेड़ बनाई जाती है। उस पर प्लास्टिक की लेयर चढ़ा रोपाई वाले स्थान पर छोटे-छोटे गड्ढे बनाए जाते हैं। इसके बाद पौधों का रोपण किया जाता है। कहते हैं कि रासायनिक खाद को कभी हाथ नहीं लगाया। गोबर, गोमूत्र, नीम, वर्मी कंपोस्ट आदि से तैयार जैविक खाद ही इस्तेमाल करते हैं। उपज को प्रतिदिन कानपुर नगर की चकरपुर मंडी पहुंचा दिया जाता है, जहां से हरी मिर्च दिल्लीवासियों की रसोई तक पहुंचती है।

तीन गुना से अधिक मुनाफा

मंडी में 1200 से 1500 रुपये प्रति क्विंटल का रेट मिल रहा है। बीते साल जुलाई में तकरीबन 40 हजार रुपये की लागत से दो बीघे में की गई खेती से प्रति दिन ढाई से तीन क्विंटल हरी मिर्च का उत्पादन कर अब तक डेढ़ लाख रुपये से अधिक का मुनाफा कमा चुके हैं।

लहलहा रही गोभी और टमाटर

जैविक खेती को कार्य व्यवहार में ला चुके विनोद करीब आठ साल से मिर्च की खेती करते आ रहे हैं, वहीं अन्य सब्जियों को भी उसी शिद्दत के साथ उगाते हैं। तीन बीघा खेत में गोभी, टमाटर, परवल व पालक की खेती लहलहा रही है। देवकली के साथ विसायकपुर, धनजुआ पहाड़पुर, रायपुर, चिरौरा, पंचगवां आदि गांवों के किसान भी उनसे प्रेरित होकर जैविक विधि से खेती करने लगे हैं।


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