'हां लड़की हूं मैं और चुनौती मुझे भाती हैं'
इलाहाबाद मंडल में ट्रेन का इंजन थामने वाली पहली महिला लोको पायलट ज्योतिबाला ने अपनी सहयोगी महिला लोको पायलट को समर्पित की हैं। खामोशी क
जागरण संवाददाता, कानपुर:
निगाहों से छलके वो कतरे अब नहीं हैं हमारी पहचान।
खामोशी को छोड़ उड़ने का हमने ठाना है अरमान।
पथरीली राहों पर चलना अब लगता है हमें आसान।
हौसला और हिम्मत ही है अब हमारी असली पहचान।
लोगों ने कहा छोड़ दे ये रास्ता, इससे तेरा क्या वास्ता..
हमने कहा साहस ही है हमारा दूसरा नाम..
आपने अब तक पहचाना नहीं हमें, लेकिन फूलों का आंगन छोड़ हमने कांटों का लिया है दामन थाम..
मुश्किलों से अब हमें डर नहीं लगता, अड़चने हमें लुभाती हैं..
हां लड़की हूं मैं और चुनौती मुझे भाती हैं..
ये चंद लाइनें इलाहाबाद मंडल में ट्रेन का इंजन थामने वाली पहली महिला लोको पायलट ज्योतिबाला ने अपनी सहयोगी महिला लोको पायलट को समर्पित की हैं। इन लाइनों से उनके दृढ़ इरादों का भी पता चलता है कि उन्हें कोई शिकवा नहीं है कि वह लड़की हैं।
मूलरूप से लखनऊ की मूल निवासी और कानपुर में तैनात ज्योतिबाला रेलवे में असिस्टेंट लोको पायलट हैं। दो बहनों व दो भाइयों में दूसरे नंबर की ज्योतिबाला ने लखनऊ के गुरुनानक इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास की और फिर इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा किया। ज्योति बताती हैं कि उनके पिता मोहनलाल रेलवे से रिटायर्ड हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद दिसंबर 2013 में उसका सेलेक्शन बीएसएनएल व रेलवे दोनों विभागों में हुआ। पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए उन्होंने रेलवे को चुना। जब उनका चयन हुआ, तब महिला लोको पायलट का दौर शुरू हुआ था। महिलाएं लोको पायलट में भर्ती तो रही थीं लेकिन अधिकांश कार्यालयों में ही तैनात रहती थीं। ज्योति के मुताबिक इलाहाबाद रेल मंडल में ट्रेन का इंजन थामने वाली वह पहली महिला लोको पायलट हैं। पहले कुछ समस्याएं सामने आई लेकिन फिर अच्छा लगने लगा। अब तक वह 1.25 लाख किमी ट्रेन चला चुकी हैं, जो कि रिकार्ड है। उन्हें देखते हुए तीन और महिला लोको पायलटों ने फील्ड पर उतरने का फैसला लिया है। उनकी इस उपलब्धि पर 8 मार्च को उन्हें उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक ने नारी सशक्तीकरण पर जीएम अवार्ड से सम्मानित किया। ज्योति ने बताया कि उनका लक्ष्य लड़कियों में ये भावना जगाने की है कि वह चाह लें तो कुछ भी कर सकती हैं।