World Bicycle Day 2020: अक्षय की साइकिलिंग कर देगी हैरान और आंखें नम कर देगी संघर्ष की कहानी
ट्रेन हादसे में अपना एक पैर गंवा चुके अक्षय दिव्यांगता की नई परिभाषा गढ़ते हुए अबतक साइकिल से 23 हजार किमी नाप चुके हैं।
कानपुर, [अभिषेक अग्निहोत्री]। शहर में साइकिलिंग की बात हो और अक्षय सिंह का नाम न लिया जाए ऐसा संभव नहीं है। एक पैर से दिव्यांग अक्षय साइकिल से अबतक 23 हजार किलोमीटर से ज्यादा नाप चुके हैं। साइकिलिंग में कई वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुके अक्षय अब उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत की तरह हैं, जो किसी कारणवश दिव्यंगता का शिकार होकर जीवन में निराशा का घर बना लेते हैं। मुफलिसी के बीच विश्व कीर्तिमान बनाने वाले अक्षय के संघर्ष की कहानी आंखें नम कर देती है।
कार सर्विस सेंटर में की नौकरी
कानपुर नगर के गांधी ग्राम में रहने वाले अक्षय को बचपन से साइकिलिंग का शौक था। वर्ष 2003 पिता अनूप सिंह का बीमारी के चलते देहांत हो गया तो मां, छोटे भाई और बहन की जिम्मेदारी उनपर आ पड़ी। दस साल की उम्र में पढ़ाई के साथ उन्होंने कार सर्विस सेंटर में नौकरी की और परिवार का खर्च चलाने में हाथ बंटाना शुरू किया। उन्हें छोटे भाई की पढ़ाई और बहन की शादी की भी चिंता सता रही थी, इन सबके बीच उनका साइकिलिंग का सपना पीछे छूट गया था।
हादसे ने छीन लिया एक पैर
अक्षय बताते हैं कि वर्ष 2010 में बहन की मार्कशीट में संशोधन के सिलसिले में वह ट्रेन से प्रयागराज जा रहे थे, उतरते समय अचानक पैर फिसलने से वह चलती ट्रेन की चपेट में आ गए। इस हादसे में उनका एक पैर कट गया और गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल में होश आने पर जब पता चला कि एक पैर ही नहीं है तो जिंदगी से निराशा सी होने लगी। किसी तरह अस्पताल से घर लौटे तो मां, भाई और बहन ने उत्साह बढ़ाया।
अरुणिमा सिन्हा बनीं प्रेरणास्रोत
अक्षय ने बताया कि एवरेस्ट फतह करने वाली अरुणिमा सिन्हा उनकी प्रेरणास्रोत हैं। एक पैर न होने पर जब वह जीवन से निराश थे तो उन्होंने अरुणिमा सिन्हा के बारे में पढ़ा। उन्होंने सोचा कि जब दिव्यांग होकर अरुणिमा जी एवरेस्ट की चोटी तक पहुंच सकती हैं तो वह भी अब ऐसा कुछ करेंगे ताकि दुनिया में उनका भी नाम लिया जाए। उन्होंने आवेदन किया और एल्मिको से आर्टिफिशयल पैर लगाया गया।
आर्टिफिशयल पैर बन गए पंख
अक्षय के लिए आर्टिफिशयल यानि कृत्रिम पैर पंख की तरह बन गए और उन्होंने साइकिलिंग से उड़ान भरना शुरू कर दिया। वह बताते हैं कि साइकिलिंग का सपना पूरा करने के लिए बहुत मेहनत की है। तीन साल तक 24 घंटों में सिर्फ तीन घंटे ही सो पाते थे। भाई की पढ़ाई और बहन की शादी की जिम्मेदारी पूरी करने के लिए दिन में निजी कपंनी के लिए फूड डिलीवरी करते और रात में कॉल सेंटर में काम करते थे। इससे समय बचने पर साइकिलिंग की प्रैक्टिस करते थे। शुरुआती दौर में कई कंपनियों और सक्षम लोगों से साइकिलिंग के लिए मदद मांगी लेकिन सभी जगह हताशा ही मिली। परिवार से प्रोत्साहन मिलने पर उन्होंने साइकिलिंग कंपटीशन के लिए आवेदन किए, मौका मिला तो साइिकिल का करवां बढ़ गया।
गिनीज बुक समेत कई रिकॉर्ड में दर्ज कराया नाम
अक्षय ने बताया कि अपनी अलग पहचान बनाने की जिद के साथ दो साल पहले प्रोफेशनल साइकिलिंग शुरू की और कानपुर राइडर्स ग्रुप में शामिल हो गए। पहले छोटी-छोटी राइडिंग में शामिल होते थे लेकिन फिर सफर बढ़ता गया। अबतक करीब 23 हजार किलोमीटर का सफर साइकिल से तय कर चुके हैं। वह गिनीज बुक रिकार्ड, एशिया बुक ऑफ रिकार्ड और इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।
वह बताते हैं कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए 25 अगस्त को जेके मंदिर से सफर शुरू किया था, इसमें सात दिन में 450 किलोमीटर की साइकिलिंग करनी थी। इसे उन्होंने महज चार दिन में पूरा करके रिकार्ड बनाया। इसी तरह बीती 27 जनवरी को कानपुर से मुंबई के लिए 1500 किमी का सफर शुरू किया था, जो पांच दिन में पूरा करके इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराया। वह बताते हैं कि वह सप्ताह में दो दिन सौ किमी और बाकी दिन 30 से 40 किमी साइकिलिंग करते हैं।
दिव्यांगता को दी नई परिभाषा
अक्षय न सिर्फ हादसे में दिव्यांग होने वालों के लिए प्रेरणास्रोत हैं बल्कि उन्होंने दिव्यंगता की नई परिभाषा भी लिख दी है। सामाजिक कार्याें के प्रति भी उनका विशेष झुकाव है। वह आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को शिक्षित भी करते हैं और निजी विद्यालयों में आरक्षित सीटों पर दाखिला दिलवाते हैं। इसके लिए उन्होंने 'आई टीच' नाम से फेसबुक अकाउंट भी बनाया है। अक्षय कहते हैं कि अब गरीबों के लिए फूड बैंक खोलने का भी इरादा है, जिसके लिए प्रयास कर रहे हैं।
मां को गर्व है अपने लाल पर
लखनऊ में होटल मैनेजर का काम करने वाले पति अनूप सिंह की मौत के बाद कुसुम बेसहारा हो गई थीं। तीन छोटे बच्चों की परवरिश को लेकर उन्होंने हार नहीं मानी। आज कुसुम अपने बड़े बेटे अक्षय पर गर्व करती हैं तो अक्षय भी अपनी सफलता के लिए मां को पूरा श्रेय देते हैं। कुसुम बताती हैं कि पति के निधन के बाद विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ा था। मुसीबत के समय में गुरुद्वारों में लंगर और मंदिरों में प्रसाद खाकर भी दिन गुजारे थे। बेटी रितिका की शादी के बाद स्थिति में सुधार आया, अब वह बेटी-दामाद के साथ रहती हैं।