ट्यूलिप गुलजार बताकर जलकुंभी बेच रहीं महाराष्ट्र की महिलाएं
शहर में महाराष्ट्र की सौ से ज्यादा महिलाएं ट्यूलिप गुलजार बताकर जलकुंभी बेच रही हैं।
जासं, कानपुर : शहर में महाराष्ट्र की सौ से ज्यादा महिलाएं ट्यूलिप गुलजार बताकर जलकुंभी के तने बेच रही हैं। राहगीरों को झांसा देने के लिए साथ में उन्होंने ट्यूलिप के रंगबिरंगे पौधों की कई फोटो भी साथ में रखी हैं। जानकार तो आसानी से उनके झांसे में नहीं आ रहे, लेकिन पौधों के बारे में कम जानकारी रखने वाले फंसकर अपनी मेहनत की कमाई गंवा रहे हैं। खास बात ये है कि खुलेआम हो रही इस धोखाधड़ी को रोकने के लिए नगर निगम का उद्यान विभाग व पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।
पिछले कुछ दिनों से आपने मोतीझील, आर्यनगर, स्वरूप नगर, गंगा बैराज, छावनी और माल रोड पर तमाम महिलाओं, युवतियों और किशोरों को टब में डंठल जैसे तनों को रखे देखा होगा। तने का ऊपरी हिस्सा रंगीन नजर आता है। पूछने पर महिलाएं कागज में एलबम दिखाती हैं, जिसमें ट्यूलिप के रंगबिरंगे फूल व पौधों की फोटो लगी होती है। महिलाएं उन तनों को ट्यूलिप का पौधा बताती हैं। एक पौधा 50 रुपये में और तीन पौधे 100 रुपये में देने का आफर देती हैं। दरअसल, यह पौधा ट्यूलिप का नहीं, बल्कि जलकुंभी का है। जलकुंभी का पौधा आमतौर पर कहीं किसी भी तालाब में खुद उग आता है। पिछले दिनों सीएसए विवि के उद्यान महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष डा. वीके त्रिपाठी ग्रीन पार्क की ओर से आ रहे थे तो उन्होंने परमट मंदिर से लेकर वीआइपी रोड पर सड़क किनारे टब में रखे जलकुंभी के इन तनों को बिकते देखा।
शुक्रवार को स्वरूप नगर में दैनिक जागरण ने जब महिलाओं से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वह महाराष्ट्र के नासिक व जलगांव की रहने वाली हैं। एक माह पहले आई थीं और मेहनत करके परिवार चला रही हैं। उन्होंने एलबम दिखाते हुए कहा कि ट्यूलिप गुलजार के पौधे बेच रही हैं। वह बोलीं कि यह फूल 12 महीने खिलेगा। एक राहगीर ने जब पौधों को जलकुंभी बताते हुए तने का अगला भाग तोड़ा तो पता लगा कि ऊपर की ओर रंग लगाया गया था। इसके बाद महिला बोली कि हम गहरे पानी में उतरकर उन्हें लाते हैं। हमारे बच्चों पर रहम करो।
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ट्यूलिप का पौधा पहाड़ों पर सर्वाइव करता है। कानपुर की जलवायु इस पौधे के लिए अनुकूल नहीं है। ये घुमंतू महिलाएं टब में जो तने बेच रही हैं, वह ट्यूलिप के नहीं हैं। जनता को गुमराह किया जा रहा है। यही नहीं जब कोई पौधा बिना क्वारंटाइन किए किसी दूसरे स्थान से लाकर कहीं और लगाते हैं तो बीमारी होने का भी खतरा रहता है। जनता को अगर इन्हें लगाना ही है तो पहले इनके लाए जाने का स्त्रोत पता लगाना चाहिए।
- डा. वीके त्रिपाठी, उद्यान विभागाध्यक्ष, सीएसए विवि