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जहां रामधुन से चला चरखा, वहीं इंकलाब की गोली

मकसद एक ही था- देश की आजादी, लेकिन सोच और रास्ते अलग-अलग। महात्मा गांधी की विचारधारा पर कुछ सेनानी अ¨हसात्मक आंदोलन चला रहे थे तो कुछ ने पकड़ रखी थी क्रांति की राह।

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Aug 2018 08:36 AM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 10:21 AM (IST)
जहां रामधुन से चला चरखा, वहीं इंकलाब की गोली
जहां रामधुन से चला चरखा, वहीं इंकलाब की गोली

जेएनएन, कानपुर : मकसद एक ही था- देश की आजादी, लेकिन सोच और रास्ते अलग-अलग। महात्मा गांधी की विचारधारा पर कुछ सेनानी अ¨हसात्मक आंदोलन चला रहे थे तो कुछ ने पकड़ रखी थी क्रांति की राह। इनके ठिकाने भी अलग-अलग ही थे, लेकिन कानपुर के कस्बे नर्वल की यह पुण्य भूमि है, जहां दोनों विचारधाराएं एक छत के नीचे विस्तार ले रही थीं। गणेश सेवा आश्रम में रामधुन पर चरखा चलाकर सूत भी काता जाता था और सरदार भगत सिंह व चंद्रशेखर आजाद जांबाज क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण भी इसी आश्रम में देते थे।

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गंगा तट स्थित नर्वल महान विचारक, अमर सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी का कर्मक्षेत्र था तो देश को 'झंडा ऊंचा रहे हमारा..' जैसा झंडागीत देने वाले स्वतंत्रता सेनानी पद्मश्री श्यामलाल गुप्त की कर्मभूमि। यहां गणेश सेवा आश्रम की स्थापना 20 फरवरी 1929 को अमर शहीद गणेश शकर विद्यार्थी ने की थी। इसका उद्देश्य ग्रामोत्थान व ग्राम विकास की योजनाओं को मूर्त रूप देना और स्वाधीनता के लिए रणबांकुरे तैयार करना था। कई संदर्भ पुस्तकों में उल्लेख है कि नर्वल सेवा आश्रम में गणेश शकर विद्यार्थी व श्यामलाल गुप्त पार्षद के मार्गदर्शन में खादी व स्वदेशी के लिए काम होता था। चरखों से कच्चे सूत की कताई होती थी। सेवा आश्रम के माध्यम से खादी के उत्पादन को नर्वल व आसपास के दो सौ गावों तक विस्तार दिया गया था। वहीं, दूसरी ओर चंद्रशेखर आजाद व सरदार भगत सिंह के निर्देशन में क्रातिकारियों की फौज तैयार की जाती थी। आजाद व भगत सिंह वेश बदलकर कई-कई दिन तक यहा रुकते थे। सन् 1930 के राष्ट्रीय आदोलन में आश्रम से जुड़े 400 स्वयंसेवक जेल गए थे।

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आधा दर्जन जनपदों का केंद्र बिंदु था नर्वल

स्वाधीनता संग्राम में गणेश सेवा आश्रम से क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन कानपुर, फतेहपुर, उन्नाव सहित आधा दर्जन जनपदों में प्रमुखता से होता था। गंगा तट व एकांत वाला ग्रामीण क्षेत्र होने की वजह से क्रांतिकारियों के रुकने का यह मुफीद स्थान था।

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आकर्षित होकर चले आए थे महात्मा गाधी

महात्मा गाधी का कानपुर आगमन 1920 में शुरू हुआ। इस दौरान वे कई बार कानपुर आए और रुके। 1934 में जब वह कानपुर आए तो उन्हें नर्वल स्थित गणेश सेवा आश्रम की गतिविधियों की जानकारी हुई। तब उन्होंने आश्रम देखने की इच्छा जताई। श्यामलाल गुप्त पार्षद के साथ महात्मा गांधी नर्वल पहुंचे। खादी, स्वदेशी व आजादी के आदोलन की गतिविधियों को देखकर उन्होंने खुशी व्यक्त की थी।

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कस्तूरबा भवन के लिए महात्मा गाधी ने दिया था सहयोग

गणेश सेवा आश्रम नर्वल में बना ऐतिहासिक कस्तूरबा भवन मेस्टन रोड स्थित तिलक हॉल की डिजाइन का है। 1934 में महात्मा गाधी को कस्तूरबा ट्रस्ट के लिए कानपुर से 3592 रुपये 13 आने का चंदा एकत्रित करके दिया गया था। प्रार्थना सभा के दौरान इकट्ठा की गई सहायता राशि में 1541 रुपये उद्योगपति कमलापत सिंहानिया ने दिए थे। महात्मा गाधी ने इस धन का एक हिस्सा नर्वल गणेश सेवा आश्रम में बने कस्तूरबा भवन के लिए दिया था।


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