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बच्चों के साथ बच्चा बनने पर निकलता है सच

यौन शोषण से पीड़ित किसी बच्चे से तत्काल सब कुछ जान पाना आसान नहीं। उनके साथ बच्चा बनना पड़ता है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Jun 2018 01:46 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2018 01:46 AM (IST)
बच्चों के साथ बच्चा बनने पर निकलता है सच
बच्चों के साथ बच्चा बनने पर निकलता है सच

जागरण संवाददाता, कानपुर : यौन शोषण से पीड़ित किसी बच्चे से तत्काल सब कुछ जान पाना आसान नहीं होता। बच्चों के साथ बच्चा बनने पर ही सच निकलता है। कभी-कभी पूरी बात जानने में वक्त भी लग जाता है। चाइल्ड लाइन के काउंसलर्स के मुताबिक दुख तब होता है जब कानून, धाराएं और संसाधन सब होने के बावजूद जिम्मेदार असंवेदनशीलता दिखाते हैं तो कभी मां-बाप ही कानूनी पचड़ा बताकर यौन शोषण पर चुप हो जाते हैं।

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रेलवे के लिए अलग हैं काउंसलर

चाइल्डलाइन की शहर में दो टीमें हैं। एक टीम रेलवे में पकड़े गए बच्चों की तो दूसरी टीम शहर में पकड़े गए बच्चों की काउंसलिंग करती है। टीम में दो-दो सदस्य हैं। टीम का दावा है कि प्रतिमाह 10-15 यौन शोषण से पीड़ित बच्चों की काउंसलिंग की जाती है।

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पीड़ित, साक्ष्य सब थे फिर भी 15 दिन बाद आरोपी गया जेल

करीब एक वर्ष पूर्व की बात है। झांसी की ट्रेन से एक छह वर्ष का बच्चा सेंट्रल स्टेशन पर उतरा। वह अपनी मां को ढूंढने आया था। यहां स्टेशन पर काम करने वाले अवैध वेंडर ने उसके साथ कुकर्म किया। चाइल्ड लाइन को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने बच्चे को तलाश किया। दो दिन बाद वह सिटी साइट पर सड़क किनारे लेटा था और दर्द से कराह रहा था। काउंसलर धर्मेद्र कुमार ओझा के मुताबिक उसे हाथ लगाते ही वह डर गया और चिल्लाने लगा। उसका मेडिकल कराकर काउंसलिंग की गई। दो दिन बाद सुरक्षित होने का अहसास होने पर उसने पूरा वाकया सुनाया। बच्चे को बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) ने राजकीय बालगृह में भेजने और मुकदमा दर्ज कराने के आदेश किए लेकिन तीन दिन तक मामला दर्ज नहीं हो सका। जीआरपी और हरबंस मोहाल थाने के अधिकारी अपने क्षेत्राधिकार में घटना न होने का दावा करते रहे। अंतत: सीओ हरबंस मोहाल के हस्तक्षेप पर थाने ने मुकदमा दर्ज किया। धर्मेद्र बताते हैं कि आरोपी 15 दिन बाद जेल भेजा जा सका। बच्चा अभी भी बालगृह में है।

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जब मां ने बदलवा दी गवाही

पान मसाले की एक फैक्ट्री में काम के दौरान महिला और पुरुष के बीच मित्रता हुई। महिला अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ पुरुष के घर चली गई। बाद में संबंध बिगड़े और रुपयों को लेकर विवाद बढ़ा तो मामला नौबस्ता थाने पहुंचा। लड़की चाइल्ड लाइन को सौंप दी गई। अनीता तिवारी और क्लीनिकल साइक्लॉजिस्ट रिचा ने काउंसलिंग की तो लड़की ने दुष्कर्म की बात बतायी। मेडिकल रिपोर्ट में भी इसकी पुष्टि हुई। एक माह बाद जब कोर्ट में बयान कराए गए तो उसने कुछ भी न होने की बात कही। आरोपी को जमानत मिल गयी। काउंसलर अनीता ने महिला से बात की तो उसने बताया कि वह कानूनी पचड़ों में नहीं पड़ना चाहती थी।

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काउंसिलिंग में यह आती हैं समस्याएं

-बच्चों से सीधे सवाल पूछते ही वह डर जाते हैं, इसलिए वक्त लगता है

-इससे आरोपी को कानून की पकड़ से दूर होने का मौका मिल जाता है

-बहुत छोटे बच्चे डरते हैं, मानसिक आघात के चलते घटना याद कर रोने लगते हैं

-यौन शोषण का शिकार करीब 70-75 फीसद बच्चे बहुत गरीब परिवारों से होते हैं

-इससे ज्यादातर बच्चों के मां-बाप पुलिस थाना कोर्ट कचहरी से बचते हैं

-मां-बाप की काउंसिलिंग की जाती है जिसमें काफी वक्त लगता है और आरोपी पुलिस की पकड़ से दूर हो जाता है

-जरूरत पड़ने पर भारत सरकार द्वारा जारी चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन की वीडियो 'कोमल' दिखाते हैं

अभिभावकों के लिए सुझाव

-मां-बाप बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखें

-हर समय डांट फटकार से बच्चों में हीन भावना पैदा होती है। ऐसा न करें।

-बच्चों के व्यवहार, खान-पान पर निगाह बनाए रखें

-यौन शोषण जैसी घटना के बाद बच्चे आसमान्य व्यवहार करने लगते हैं

-बच्चे कुछ न बताएं तो उन्हे भरोसे में लें और बात करते रहें

- बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में बताएं।


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