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कितने भी कर लो जतन, क्रॉसिंग के नीचे से ही निकलेंगे हम Kanpur News

शहर की प्रमुख अनदेखी बातों व समस्याओं पर किया गया व्यंग।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 25 Jan 2020 11:41 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 11:41 PM (IST)
कितने भी कर लो जतन, क्रॉसिंग के नीचे से ही निकलेंगे हम Kanpur News
कितने भी कर लो जतन, क्रॉसिंग के नीचे से ही निकलेंगे हम Kanpur News

कानपुर, जेएनएन। शहर में छोटी-छोटी तमाम ऐसी बातें हैं जो आमतौर पर नजर नहीं आतीं। रियल जर्नलिज्म के तहत कुछ ऐसे ही मामलों को शहरनामा के जरिये सामने ला रहे हैं अनुराग मिश्र।

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राह में कांटे

रफ्तार में वाहन दौड़ाना शगल है और नियमों को तोडऩा शान। रेलवे क्रॉसिंग बंद हो तो बैरियर के नीचे से जल्दी निकलने की होड़ अतिविशिष्ट पहचान। शहर में ये नजारा आम है। रेलवे ने बैरियर नीचे कराए, दूसरे जतन किए, लेकिन नाकामी ही हाथ लगी। रेलवे ने एक कदम और आगे बढ़ाया। बैरियर के नीचे से निकासी कठिन कर दी। बैरियर के पाइप पर कंटीले तार लपेट दिए, ताकि नीचे से गुजरना नामुमकिन हो जाए और कपड़े फटने से नुकसान होने पर गलती का अहसास हो जाए, लेकिन शहर के वाहन सवार भला कहां मानने वाले है। जैसे-तैसे रेंगते हुए अब भी निकल ही जा रहे हैं। हालांकि, ये लोग कई बार नुकसान झेल चुके हैैं, लेकिन जल्दबाजी में खतरा उठाने से बाज नहीं आते हैं। कुल मिलाकर अब भी स्थिति तू डाल-डाल, मैं पात-पात वाली ही है। अफसर सोच रहे हैं कि अब क्या इंतजाम करें?

कहां गई लकड़ी?

सर्दी ने इस बार शहर वालों को खूब सताया। ऐसे में ठिठुरते-सिकुड़ते लोगों को राहत देने के लिए नगर-निगम ने चौराहे-चौराहे लकड़ी डलवाई ताकि लोगों को थोड़ी गरमाहट राहत दे जाए। दक्षिण के एक मोहल्ले में लकड़ी के बड़े टुकड़े रखे गए। लकड़ी जली, चाय पे चर्चा शुरू हुई, लेकिन अगले दिन धूप निकल आई तो चर्चा और आग तपाई बंद हो गई। लकड़ी से भी सबने मुंह फेर लिया। बस फिर क्या था, मोहल्ले के कुछ खुराफाती लोग लकड़ी ही उठा ले गए। बेवफा मौसम ने फिर पलटी मार दी। अब फिर लकड़ी याद आई तो मोहल्ले में पड़ताल शुरू हुई। भइया तुम्हारे घर के आगे लकड़ी छोड़ गए थे, वो कहां चली गई? सब मुंह ताक रहे थे और लकड़ी तो उडऩ-छू हो गई थी। फिर आपस में चंदा हुआ। लकड़ी आई और तब चौपाल पे चर्चा शुरू हुई। अबकी बार एक साथी सुरक्षा में लगा दिया गया था।

बेरोजगारी ही भली

एक मित्र को बेरोजगारों को दक्ष कर रोजगार से जोडऩे की धुन सवार हुई। प्रक्रिया पूरी करके बेरोजगारों को दक्ष बनाने का अभियान शुरू किया। बहुत सारे लोगों को अलग-अलग विधा में महारथी बनाया। अब तक तो सब कुछ बढिय़ा चल रहा था। इसके बाद बारी आई रोजगार से जोडऩे की तो भला कहां से और कितने लोगों को रोजगार दिला पाते? यहां तो एक अनार और सौ बीमार वाली हालत थी। फिर भी जैसे-तैसे कुछ लोगों को जोड़ा, लेकिन वह नाकाफी था। आखिर इतना सारा काम लाएं कहां से, जिससे सबको नौकरी मिल जाए? बहुत हाथ-पैर मारने के बाद भी नाकाम रहे तो प्रशिक्षण से ही हाथ जोड़कर तौबा कर ली। अब खुद नए काम की तलाश में हैं। एक दिन बाजार में टहलते हुए मिल गए। ट्रेनिंग सेंटर का हालचाल पूछ लिया तो भइया बोल- भूल जाओ उसे, इतना झंझट कौन पाले? इससे अच्छी तो बेरोजगारी भली।

दूर हुई दिल्ली

सर्दी में शहर वालों के लिए दिल्ली दूर हो गई है। दरअसल, अब तक तो उडऩखटोले में बैठे और फुर्र हो गए। लेकिन, बीते एक हफ्ते से विमान कंपनी ने उड़ान ही ठप कर रखी है। एक तो समस्या यह है कि इतनी सर्दी में बस से जाना बेहद कष्टदायक है और ट्रेन का टिकट नहीं मिल रहा। इससे मुश्किल तो बहुत है, लेकिन समस्याओं का समाधान देता कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है। कंपनी के अधिकारी कारण बताने के बजाय कह रहे हैं कि या तो अपने टिकट का पैसा वापस ले लीजिए या आगे की तारीख में समायोजित करा लीजिए। अब बताइए, ऐसा भी कहीं होता है कि मीटिंग में आज जाना हो और टिकट लें अगले महीने का? बहरहाल, मुश्किल तो है, लेकिन इसका उपाय फिलहाल तो नहीं है। अब दिल्ली जाना है तो दूसरे संसाधन ही अपनाने पड़ेंगे, वर्ना बस करते रहिए उडऩे का इंतजार...। 


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