पढि़ए, कानपुर में मुस्लिमों का झुकाव किस तरफ रहा, सपा का दिया साथ या कांग्रेस का थामा हाथ
सीसामऊ आर्यनगर और कैंट विधानसभा क्षेत्र में भी चंद वोटों पर गठबंधन प्रत्याशी सिमट गए।
कानपुर, जेएनएन। कानपुर की सीट पर मुस्लिम मतों को 'गेमचेंजर' मानकर चल रही सपा-बसपा सहित कांग्रेस भी गच्चा खा गई। पूरे चुनाव भर ध्रुवीकरण की होड़ चलती रही। गठबंधन के बावजूद मुस्लिमों ने सपा-बसपा से पूरी तरह मुंह फेर लिया। वहीं, अल्पसंख्यकों का एकमुश्त वोट हासिल करने के बाद भी कांग्रेस हाशिए पर चली गई।
कानपुर लोकसभा सीट का इतिहास गवाह है कि मतदाताओं ने कभी भी सपा और बसपा को लोकसभा चुनाव के लायक समझा ही नहीं। मगर, जातिगत समीकरणों पर इन दोनों ही दलों के नेताओं का मजबूत भरोसा है। इसी के बलबूते इस चुनाव में गठबंधन किया। संगठन के स्थानीय नेताओं का तर्क था कि सपा-बसपा के एक साथ आ जाने से खास तौर पर मुस्लिम मतों का बिखराव रुकेगा। अब तक वह कांग्रेस को विकल्प मानते रहे थे, जबकि इस बार गठबंधन को ताकत देंगे। लेकिन, यह सिर्फ मुगालता निकला।
आर्यनगर, सीसामऊ और कैंट विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस को जहां 60 व 70 से 80 हजार के आसपास वोट मिले, वहीं गठबंधन सात हजार के करीब सिमटकर रह गया। यदि पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम देखें तो तब भी सपा और बसपा को मतदाताओं ने पूरी तरह खारिज कर दिया था। हालांकि, दोनों दलों के मिल जाने से उससे कुछ बेहतर स्थिति का अनुमान लगाया जा रहा था। दूसरी ओर देखें तो कांग्रेस को अल्पसंख्यकों का एकमुश्त वोट मिला, फिर भी वह बड़े अंतर से चुनाव हार गई।
सपा विधायकों की साख पर सवाल
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को सीसामऊ और आर्यनगर विधानसभा क्षेत्र में जीत मिली थी। सीसामऊ से इरफान सोलंकी विधायक हैं। यहां सपा को 73030 मत मिले थे, जबकि इस चुनाव में महज 7089 वोट मिले। इसी तरह आर्यनगर से अमिताभ बाजपेयी विधायक हैं। यहां सपा को 70993 वोट मिले थे, जबकि इस बार मात्र 4730 वोट ही मिल सके। इसका मतलब दोनों विधायक अपना वोट भी गठबंधन प्रत्याशी को नहीं दिला सके। ऐसे में दोनों की साख पर सवाल है।
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