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Article 370 : कानपुर से उठी थी कश्मीर की 'आजादी' की आवाज, पढि़ए क्या हुआ था तब

वर्ष 1951 में स्थापना के बाद जनसंघ का पहला अधिवेशन कानपुर में हुआ था जिसमें डॉ. मुखर्जी ने एलान किया था।

By AbhishekEdited By: Published: Tue, 06 Aug 2019 12:51 PM (IST)Updated: Wed, 07 Aug 2019 10:09 AM (IST)
Article 370 : कानपुर से उठी थी कश्मीर की 'आजादी' की आवाज, पढि़ए क्या हुआ था तब
Article 370 : कानपुर से उठी थी कश्मीर की 'आजादी' की आवाज, पढि़ए क्या हुआ था तब

कानपुर, [बृजेश दुबे]। आज जिस अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों के खत्म होने का जश्न पूरा देश मना रहा है, उसका एलान क्रांतिधरा कानपुर से हुआ था। भारतीय जनसंघ के पहले अधिवेशन में तत्कालीन अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर की प्रजा परिषद के अध्यक्ष प्रेमनाथ डोगरा के प्रस्ताव को मानते हुए एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान.. नहीं चलेंगे का नारा दिया था। पं. डोगरा, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के खास बुलावे पर आए थे। बाद में, उन्होंने प्रजा परिषद का विलय जनसंघ में कर दिया था।

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फूलबाग में तीन दिन तक चला था अधिवेशन

जनसंघ का यह अधिवेशन कानपुर के फूलबाग में 29 से 31 दिसंबर 1952 तक चला था। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक बलराज मधोक, नानाजी देशमुख, पं. दीनदयाल उपाध्याय, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे जैसी हस्तियां शामिल हुईं थी। यहीं अनुच्छेद 370 के पुरजोर विरोध का एलान हुआ था। संघ के क्षेत्र चालक वीरेंद्रजीत सिंह 'पराक्रमादित्य' बताते हैैं, अधिवेशन से एक दिन पहले पं. मुखर्जी ने घर आकर मां सुशीला देवी व पिता बैरिस्टर नरेंद्रजीत सिंह से अधिवेशन पर लंबी बात की थी।

कानपुर की प्रमुख भूमिका

बकौल वीरेंद्रजीत सिंह, मेरी मां, कश्मीर के राजा हरि सिंह के दीवान बद्रीनाथ की बेटी थीं। वर्ष 1935 में विवाह के बाद कानपुर आ गईं। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सर संघचालक माधवराव सदाशिïव गोलवरकर 'गुरुजी' को कहा था कि वह कश्मीर के विलय के लिए राजा हरि सिंह से समझाएं। राजपरिवार से घनिष्ठता के कारण मां ने 16 अक्टूबर 1947 को गुरुजी की मुलाकात राजा हरि सिंह से कराई थी। गुरुजी ने अपनी पुस्तक में भी इसका जिक्र किया है। 26 अक्टूबर को इंस्ट्रूमेंट आफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर के वक्त मेहर चंद महाजन भी थे, जिन्हें पटेल ने राजा हरि सिंह का सलाहकार नियुक्त किया था। बाद में वह देश के चीफ जस्टिस भी हुए।

डॉ. मुखर्जी ने कहा था-दमन से कमजोर नहीं पड़ेगा हमारा आंदोलन

फूलबाग में हुए अधिवेशन में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने प्रजा परिषद के आंदोलन को सही बताते हुए इसे बदनाम करने का विरोध भी किया। डॉ. मुखर्जी ने कहा, 'नेहरू व शेख अब्दुल्ला दोनों ही जम्मू में भयंकर दमन की नीति चला रहे हैं, किंतु मैं असंदिग्ध रूप से यह घोषणा करता हूं कि दमन से समस्या हल नहीं होगी। जितना दमन होगा, उतने घातक परिणाम होंगे। दोनों यह भी जानते हैं कि दमन के बावजूद हमारे आंदोलन कमजोर नहीं पड़े।' यहां डॉ. मुखर्जी के बुलावे पर प्रजा परिषद के अध्यक्ष पं. प्रेमनाथ डोगरा भी आए थे। परिषद के प्रचार मंत्री मक्खन लाल ऐमा ने कहा था, 'हम जम्मू कश्मीर को भी भारत के अन्य राज्यों की तरह देखना चाहते हैं। जम्मू कश्मीर में वही अधिकार प्राप्त हों जो उन्हें शेष भारत में प्राप्त हैं।'

देख लो ऐ दुनिया वालो, यह कश्मीर हमारा है...

जनसंघ के पहले अधिवेशन में बतौर प्रतिनिधि शामिल हुए पूर्व पार्षद कर्नलगंज (पुरानी शराब की गद्दी) निवासी 85 वर्षीय कमलाकांत बाजपेई ने बेहद प्रफुल्लित और खिलखिलाते हुए स्मृतियों के पन्ने उलटते हैैं। कहते हैैं, फूलबाग में पूरा पंडाल खचाखच भरा था। करीब 400 लोग रहे होंगे। जब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सेंट्रल स्टेशन के एक नंबर प्लेटफॉर्म पर उतरे तो नारा गूंजने लगा, 'जागो हिंदू वीरों, कश्मीर जा रहा है...।' आज के फैसले ने बता दिया.. देख लो ऐ दुनिया वालो, ये कश्मीर हमारा है...।

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