स्ट्रेचर देने से इन्कार, चादर में ले गए मरीज
स्वास्थ्य महकमे में ऊपरी स्तर से चाहे जितनी मरीजों के बेहतर इलाज उनसे सम्मानजनक व्यवहार की घुट्टी पिलाई जाए मगर अस्पतालों में इसका असर देखने को नहीं मिल रहा।
जागरण संवाददाता, कानपुर :
स्वास्थ्य महकमे में ऊपरी स्तर से चाहे जितनी मरीजों के बेहतर इलाज, उनसे सम्मानजनक व्यवहार की घुट्टी पिलाई जाए, मगर अस्पतालों में इसका असर देखने को नहीं मिल रहा। उर्सला अस्पताल से एक वृद्ध महिला के स्वजन इसलिए ले गए, क्योंकि पांच दिन भर्ती रखने के बाद भी इलाज से संतुष्ट नहीं थे। मरीज को नर्सिगहोम ले जाने के लिए जब स्ट्रेचर की जरूरत हुई तो नहीं दिया गया। ऐसे में चादर को स्ट्रेचर बना वृद्धा को ले गए। स्वजन का आरोप है, स्ट्रेचर मांगने पर देने से इन्कार कर दिया गया। डॉक्टर, स्टाफ नर्स व वार्ड ब्याय के सामने वृद्धा को चादर में ले जाया गया।
सुल्तानपुर निवासी 70 वर्षीय रामरती की कमर में चोट लगने से कूल्हे की हड्डी टूट गई थी। उनके पति, पुत्र और बहू उन्हें लेकर आए थे। मंगलवार को आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अनिल कुमार गुप्ता की देखरेख में इलाज चल रहा था। वह वार्ड 3 के बेड नंबर 11 पर भर्ती थीं। स्वजन का आरोप है कि यहां बिना पैसे के कोई काम नहीं होता है। पैसे नहीं देने पर डॉक्टर एवं उनके कर्मचारी परेशान करते हैं। पांच दिन से ठीक से इलाज नहीं होने पर बेहतर इलाज के लिए नर्सिग होम ले जाने का फैसला लिया। वार्ड से मरीज ले जाने के लिए नर्स व वार्ड ब्वाय ने स्ट्रेचर नहीं दिया। चादर में मरीज को लटका कर वृद्धा को अस्पताल परिसर में खड़े ई-रिक्शा तक लेकर गए।
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वृद्धा की शुगर अनियंत्रित थी। तीन बार जांच कराई, मगर शुगर कंट्रोल नहीं हुई। इस वजह से ऑपरेशन संभव नहीं था। मरीज के स्वजन का पैसा लेने का आरोप निराधार है। वे बगैर सूचना दिए मरीज को ले गए हैं। स्ट्रेचर मुहैया कराना वार्ड की सिस्टर इंचार्ज की जिम्मेदारी है।
- डॉ. अनिल कुमार गुप्ता, आर्थोपेडिक सर्जन, उर्सला।
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मरीज को स्ट्रेचर नहीं मिलने की जानकारी नहीं है। अगर स्वजन चादर से टांगकर मरीज को ले गए हैं तो उसकी शिकायत करनी चाहिए थी।
- डॉ. अशोक शुक्ला, सीएमओ