कमाई के रास्ते खोल सकता है फल-सब्जी का छिलका, यूपीटीटीआइ की छात्राओं ने बताया तरीका
यूपीटीटीआइ की बनाई प्राकृतिक डाई से ग्रामीण महिलाओं को स्वावलंबन की राह दिखाई जाएगी।
कानपुर, [शशांक शेखर भारद्वाज]। घरों में अब फेंका जाने वाला फलों और सब्जी का छिलका भी कमाई के रास्ते खोल सकता है। इसके लिए उत्तर प्रदेश वस्त्र प्रौद्योगिकी संस्थान की छात्राओं ने तरीका बताया है। अब इसका इस्तेमाल करके ग्रामीण महिलाओं को स्वावलंबन की राह दिखाकर आर्थिक मजबूत बनाया जाएगा।
छिलके से बनाया प्राकृतिक रंग
यूपीटीटीआइ की छात्राओं ने सब्जी और फल के छिलके से प्राकृतिक रंग बनाया है, इससे बनी डाई के प्राकृतिक होने के कारण त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचेगा तो रंगाई-छपाई के दौरान पानी में केमिकल भी नहीं जाएंगे। सिंथेटिक डाई के केमिकल भूजल और नदियों को प्रदूषित करते हैं। ये सेहत के लिए भी खतरनाक हैं। इनसे एलर्जी, शरीर में दाने निकलने, खुजली होने की समस्या हो सकती है।
यूपीटीटीआइ के रसायन विभाग की प्रो. नीलू कांबो के निर्देशन में बीटेक तृतीय वर्ष की मोहिनी, कोमल त्रिपाठी और शिवि सिंह ने प्राकृतिक डाई तैयार की है। सफल परीक्षण के बाद पेटेंट के लिए आवेदन किया जा चुका है। इस शोध के लिए बीते सप्ताह दिल्ली में ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीई) की तरफ से मानव संसाधन एवं विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने छात्राओं को राज्य विश्वकर्मा पुरस्कार से सम्मानित किया था।
चुकंदर से नीला, गाजर से लाल रंग
छात्राओं ने चुकंदर से नीला, गाजर से लाल, गोभी पत्ते से हरा, संतरे से नारंगी रंग की डाई तैयार की है। डाई का एडहेसिव यानी मार्डेंट भी प्राकृतिक बनाया है। आंवला, सिरका, नींबू रस, एलोवेरा, हरड़-बेहड़, फिटकरी से तैयार मार्डेंट में दो घंटे तक फल-सब्जी के छिलके उबालकर डाई तैयार की गई।
औद्योगिक प्रयोग के लिए नैनो पार्टिकल्स भी तैयार
प्राकृतिक डाई के औद्योगिक इस्तेमाल के लिए नैनो पार्टिकल्स व नैनो इमल्सन तैयार किया गया है। इनका परीक्षण किया जा रहा है। इससे धागे की सूक्ष्म रंगाई होगी। प्राकृतिक होने के कारण फार्मास्यूटिकल व फूड इंडस्ट्री में भी इनका प्रयोग हो सकेगा।
इस तरह मिलेगा महिलाओं को फायदा
कपड़ों में रंग भरने के साथ ग्रामीण महिलाओं को इससे जोड़ा जाएगा। तैयार प्राकृतिक रंग से कपड़ों की छपाई हो, इसके लिए संस्थान दो गांवों को गोद लेकर महिलाओं को प्रशिक्षित करेगा। इसके लिए छपाई के ठप्पे तैयार कर महिलाओं को सूट, चुनरी, फ्रॉक, तकिया व सोफे के कवर पर रंग करना सिखाया जाएगा।
-संस्थान का शोध पर्यावरण संरक्षण व रोजगार के सरोकार के लिए कारगर साबित होगा। यह शरीर के लिए नुकसानदायक भी नहीं है। दो गांवों को गोद लेकर महिलाओं को इसका प्रशिक्षण देंगे। -प्रो. मुकेश सिंह, निदेशक यूपीटीटीआइ, कानपुर।