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अंकों की रेस में हार गई जिंदगी, सहेली निकल गई आगे तो मौत को लगाया गले

हाईस्कूल में 82 फीसद अंक पाकर भी धामीखेड़ा गांव की छात्रा ने फांसी लगाकर जान दे दी पढ़ाई में उससे कमजोर मान रही सहेली को 85 फीसद अंक मिलने से डिपेशन में थी।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 01 Jul 2020 04:12 PM (IST)Updated: Wed, 01 Jul 2020 04:12 PM (IST)
अंकों की रेस में हार गई जिंदगी, सहेली निकल गई आगे तो मौत को लगाया गले
अंकों की रेस में हार गई जिंदगी, सहेली निकल गई आगे तो मौत को लगाया गले

कानपुर, जेएनएन। कल्याणपुर के धामीखेड़ा गांव में एक मेधावी छात्रा ने 82 फीसद अंक पाने के बावजूद फांसी लगाकर जान दे दी, क्योंकि उसकी सहेली को उससे ज्यादा अंक मिले थे। जिससे वह कई दिनों से डिप्रेशन में थी। छात्रा ने जिस वक्त फांसी लगाई, उस वक्त मां-पिता वैवाहिक समारोह में गए थे। बेटी की खुदकशी को लेकर माता-पिता सदमे में हैं और पड़ोसियों को भी विश्वास नहीं हो रहा है कि इस तरह हंसने बोलने वाली बच्ची ने मौत को कैसे गले लगा लिया।

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धामीखेड़ा निवासी श्रवण कुमार निषाद निजी फर्म में नौकरी करते हैं। सोमवार को वे पत्नी शकुंतला के साथ बिल्हौर में एक रिश्तेदार की शादी में गए थे। घर पर 15 वर्षीय बेटी अमीषा, बेटा रवि, रवि की पत्नी अर्चना व छोटा बेटा अंश थे। रवि पत्नी के साथ पहली मंजिल स्थित कमरे में सो गया और अमीषा व अंश नीचे हॉल में। रात करीब तीन बजे रवि बाथरूम जाने नीचे उतरा तो अमीषा का शव दुपट्टे के सहारे पंखे से लटकता पाया। सूचना मिलते ही माता-पिता भागकर पहुंचे। मेधावी बेटी का यह हाल देखकर रोने-पीटने लगे।

कल्याणपुर थाना प्रभारी अजय सेठ ने बताया कि कोई सुसाइड नोट तो नहीं मिला है, लेकिन स्वजनों ने बताया कि तीन दिन पहले आए हाईस्कूल के रिजल्ट में अमीषा को 82 फीसद अंक मिले थे, जबकि उसकी क्लासमेट सहेली को 85 फीसद अंक मिले थे। अमीषा अपनी सहेली से पढ़ाई में तेज थी, इसलिए उससे कम अंक पाने पर वह डिप्रेशन में थी। संभवत: इसी वजह से उसने फांसी लगा ली।

बच्चे गुमसुम रहें तो अभिभावक हो जाएं सतर्क

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. एलके सिंह कहते हैं कि कमजोर इच्छाशक्ति और तनाव बढऩे से बच्चे ऐसा अनचाहा कदम उठा लेते हैं। प्रतिस्पर्धा के दौर में बच्चे गुमसुम रहने लगें या फिर नकारात्मक विचारों से घिर जाएं तो अभिभावकों को सतर्क हो जाना चाहिए। उनकी काउंसलिंग करानी चाहिए। कई बार परीक्षा में असफलता या कम अंक के लिए स्वजन ही उन्हें गलत ठहराने लगते हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। परीक्षा परिणाम आए या आने वाला हो तो ब'चों को रचनात्मक कार्यों में लगाएं, उन्हें भावनात्मक सहारा दें। अकेला कतई न छोड़ें, इससे उनके मस्तिष्क में नकारात्मक विचार आ सकते हैं।


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