कानपुर में पौधों से तैयार होगा खास किस्म का कपड़ा, पहनने में हाेंगे आरामदायक
सीएसए के विशेषज्ञों ने अलसी हाथी घास लेमन ग्रास समेत अन्य पौधों व उसके अवशेषों से रेशे तैयार करने में कामयाबी हासिल की है। इससे कुदरती फाइबर बनाया जा सकेगा जो कि महंगे कपड़ों के निर्माण में सहायक होगा।
कानपुर, जागरण संवाददाता। अब शरीर के लिए आरामदायक कपड़े बनाने की तैयारी है, जिसको पहनने से किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होगी। पसीने की दुर्गंध से छुटकारा मिलेगा, जबकि धूल और गंदगी आसानी से छूट सकेगी। यह तकनीक चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) और उत्तर प्रदेश वस्त्र एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (यूपीटीटीआइ) मिलकर विकसित करेंगे। इसके लिए जल्द ही करार हो सकता है। सीएसए के विशेषज्ञों ने अलसी, हाथी घास, लेमन ग्रास समेत अन्य पौधों व उसके अवशेषों से रेशे तैयार करने में कामयाबी हासिल की है। इससे कुदरती फाइबर बनाया जा सकेगा, जो कि महंगे कपड़ों के निर्माण में सहायक होगा। विशेषज्ञ नान वूवेन और लिनिन के कपड़ों पर कार्य करेंगे।
वस्त्र एवं परिधान विभाग की प्रो. रितु पांडेय ने अलसी के डंठल से चार घंटे में ही रेशे तैयार करने की तकनीक विकसित की है। उनकी तकनीक को पेटेंट करा लिया है। उन्होंने हाथी घास, लेमन ग्रास समेत अन्य फसलों से भी रेशे तैयार किए हैं। इन रेशों को कपड़े के रूप में तैयार करने के लिए यूपीटीटीआइ के विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाएगा। वहां कई फैकल्टी कपड़ों पर काम कर रहे हैं। प्रो. मुकेश सिंह, प्रो. शुभंकर मैती, प्रो. एके सिंह आदि शामिल हैं। सीएसए के कुलपति प्रो. डीआर सिंह ने बताया कि जल्द ही करार किया जाएगा। विश्वविद्यालय में कई नए प्रोजेक्ट लाने की तैयारी है। कुदरती तरीके से बनने वाले कपड़ों की प्रक्रिया पर छात्र उद्यमिता विकास कर सकेंगे।
यूपीटीटीआइ बना चुका कपड़े: डा. रितु पांडेय ने बताया कि यूपीटीटीआइ के विशेषज्ञ फाइबर से कपड़े बनाने में कामयाबी हासिल कर चुके हैं। अलसी, लेमन ग्रास और हाथी घास के रेशों को धागों में तैयार कर कपड़ों के निर्माण में इस्तेमाल किए जाएंगे। इनमें अन्य पदार्थ मिलाकर गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।