गंगा के तटीय क्षेत्र के युवाओं में नाक-ब्रेन के बीच का ट्यूमर अधिक
यूपी ईएनटी एसोसिएशन के सम्मेलन के पहले दिन मेडिकल कॉलेज में कैडवरिक डिसेक्शन कार्यशाला में बोले नामचीन चिकित्सक।
जागरण संवाददाता, कानपुर : गंगा के तटीय क्षेत्र में पहले गॉल ब्लैडर में पथरी की समस्या अधिक थी। अब इस क्षेत्र के युवाओं में एंजियोफाइब्रोमा (नाक और दिमाग के बीच का ट्यूमर) तेजी से बढ़ा है। इसलिए समय रहते सर्जरी जरूरी है। इसमें लापरवाही से दूसरी समस्याएं हो रही हैं। देश में होने वाले ट्यूमरों में 3 फीसद एंजियोफाइब्रोमा का है। यह जानकारी शुक्रवार को तामिलनाडु के त्रिची से आए डॉ. टी जानकी राम ने यूपी ईएनटी एसोसिएशन के सम्मेलन की जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के एनाटमी विभाग में आयोजित कैडवरिक डिसेक्शन कार्यशाला में दी।
उन्होंने बताया कि गंगा किनारे के किशोर और युवा तेजी से एंजियोफाइब्रोमा की चपेट में आ रहे हैं। इस बीमारी में नाक और ब्रेन के बीच में पीछे की तरफ ट्यूमर विकसित हो जाता है। अभी तक हुए अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जीन और हारमोन्स में गड़बड़ी से ट्यूमर बन रहा है। इस तरह के ट्यूमर के केस में विश्व में भारत नंबर-वन है। यूपी में सर्वाधिक केस पाए जा रहे हैं।
यह है लक्षण
नाक से खून, नाक बंद होना, सिरदर्द, आख का बाहर आना, डबल विजन, मुंह का कम खुलना और चेहरे का आकार मेढ़क जैसा होना।
साइनस को टाले नहीं, सर्जरी कराएं
सिरदर्द में दर्द निवारक दवाएं लेना आम बात है। आधे से अधिक लोगों को सिरदर्द साइनस की वजह से होता है। ऑपरेशन का नाम आते ही पीड़ित टालते रहते हैं। पेनकिलर से काम चलाते हैं। एंडोस्कोपी सर्जरी से साइनस को ठीक करना संभव है। नाक से खून आना साइनस का मूल लक्षण है। देश की बड़ी आबादी साइनस से पीड़ित है। लंबे समय तक समस्या टालने पर आंखें कमजोर हो जाती हैं। छोटे बच्चों को भी साइनस की समस्या होती है। उनके लिए सर्जरी कारगर है। गुनगने पानी और नमक से जलनेती करने से आराम मिलता है। इससे पहले जीएसएवीएम मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य डॉ. आरती दवे लालचंदानी ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। इस अवसर पर हृदय रोग संस्थान के निदेशक डॉ. विनय कृष्ण, डॉ. देवेंद्र लालचंदानी डॉ. राजन भार्गव, विभागाध्यक्ष डॉ. एसके कनौजिया, डॉ. हरेंद्र कुमार, डॉ. सुनीति राज पांडेय, डॉ. रोहित, डॉ. महेन्द्र सिंह, डॉ. बृजेन्द्र शुक्ला, डॉ. संजय कुमार, डॉ. मनीष सिंह एवं डॉ. प्रशांत त्रिपाठी थे।