Move to Jagran APP

बिठूर: गंगा तट पर बही वीर, हास्य और श्रृंगार रस की त्रिवेणी

गीतों के राजकुमार विष्णु सक्सेना की पंक्तियों पर मुग्ध हुए श्रोता

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Feb 2020 02:17 AM (IST)Updated: Sat, 29 Feb 2020 06:08 AM (IST)
बिठूर: गंगा तट पर बही वीर, हास्य और श्रृंगार रस की त्रिवेणी
बिठूर: गंगा तट पर बही वीर, हास्य और श्रृंगार रस की त्रिवेणी

- गीतों के राजकुमार विष्णु सक्सेना की पंक्तियों पर मुग्ध हुए श्रोता

loksabha election banner

- पद्मश्री सुनील जोगी ने भरा जोश, अंकिता ने छेड़े दिल के तार जागरण संवाददाता, कानपुर : गंगा के पावन तट पर बिठूर में शुक्रवार रात वीर, हास्य और श्रृंगार रस की त्रिवेणी बही। गीतों के राजकुमार विष्णु सक्सेना ने अपनी पंक्तियों से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। वहीं सुनील जोगी ने उनमें जोश भरा। स्माइल मैन सर्वेश अस्थाना ने हंसी की फुलझड़िया छोड़ीं तो गुरुग्राम से आईं अंकिता सिंह ने गीतों से दिल के तार छेड़ दिए। काव्य फुहार का आनंद लेने पहुंचे श्रोता भी अंत तक कुर्सियों पर डटे रहे।

कवि सम्मेलन की शुरुआत अंकिता सिंह ने सरस्वती वंदना से की। इसके बाद डॉ. विष्णु सक्सेना ने सुनाया 'अपनी जुबां से कड़वे तुम तीर छोड़ना मत, फूलों के रास्तों को काटों पे छोड़ना मत। छोटी है उम्र फिर भी कहता मेरा तजुरबा, घर टूट जाए लेकिन दिल कोई तोड़ना मत..'। उन्होंने अपनी लय में एक के बाद एक कई गीत सुनाए। पद्मश्री सुनील जोगी ने सुनाया 'दामन पे लहू जिन के हैं अब धो नहीं सकते, इतिहास के पन्नों में हैं, वो खो नहीं सकते। जो देश के गद्दार हैं उनके करो टुकड़े, इस मुल्क के टुकड़े तो कभी हो नहीं सकते..।' इसके बाद 'तमाम उम्र मुहब्बत की चाशनी में रहा पुराने इश्क के जैसी कहीं मिठास नहीं..' सुनाकर युवाओं को गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया।

अंकिता सिंह ने 'नदी खारे समंदर के लिए जज्बात से तर हैं, समंदर को पता है ये नदी का वो मुकद्दर है। वफा और बेवफाई की मिसालें हैं यही दोनों, समंदर की कई नदिया नदी का इक समंदर है..' सुनाकर वाहवाही लूटी। हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने 'उनकी नई बहू दहेज में गैस का चूल्हा न लाने का प्रायश्चित कर गई, इसलिए शादी के बाद बहुत जल्द स्टोव से जल कर मर गई..' सुनाकर दहेज की कुप्रथा पर कुठाराघात किया। धीरज सिंह चंदन ने सुनाया 'मेरे गीतों का हो प्रिय श्रृंगार तुम, तुम ही संगीत हो और झकार तुम, मन के मधुवन में मधुमास आ जाएगा, मुस्कुरा दो अगर मेरे सरकार तुम..'। हाथरस के कवि पदम अलबेला ने 'सजधज के गोरी चली लेकर हरि का नाम, आशा की थी राम की मिल गए आशाराम..' सुनाकर ठहाके लगवाए। इसके अलावा विशाल अक्खड़ सहित अनेक स्थानीय कवियों ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं की तालियां बटोरीं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.