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एलएलआर के जच्चा-बच्चा अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में संक्रमण

एलएलआर हास्पिटल का अपर इंडिया शुगर एक्सचेंज जच्चा-बच्चा अस्पताल मरीजों को राहत के बजाय दर्द दे रहा है।

By Edited By: Published: Sat, 02 Feb 2019 01:45 AM (IST)Updated: Sat, 02 Feb 2019 11:38 AM (IST)
एलएलआर के जच्चा-बच्चा अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में संक्रमण
एलएलआर के जच्चा-बच्चा अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में संक्रमण
कानपुर,जेएनएन। एलएलआर हास्पिटल (हैलट) का अपर इंडिया शुगर एक्सचेंज जच्चा-बच्चा अस्पताल मरीजों को राहत के बजाय दर्द दे रहा है। गंदगी के बीच वार्ड एवं आपरेशन थियेटर में हर पल संक्रमण का खतरा रहता है। आपरेशन थियेटर (ओटी) में भी स्टरलाइजेशन प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन नहीं होता है। संक्रमण से प्रसूताओं के टांके पक जाते हैं। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की रिपोर्ट में भी संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के अपर इंडिया शुगर एक्सचेंज जच्चा-बच्चा अस्पताल में नगर ही नहीं आसपास के 10-12 जिलों से गंभीर स्थिति में गर्भवती एवं प्रसूताएं इलाज के लिए आती हैं। यहां रोज 40-50 सीजेरियन एवं सामान्य प्रसव होते हैं। अस्पताल में साफ-सफाई का मुकम्मल इंतजाम नहीं है। अस्पताल के पिछवाड़े गंदगी में सूअर लोटते हैं। मुख्य गेट के बगल स्थित कूड़ाघर के कूड़े से उठती दुर्गध से बरामदे में खड़े रहना मुश्किल होता है। इसी तरह पहली मंजिल पर ओटी और पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड है।
डॉक्टर भी स्वीकारते हैं कि इसकी वजह से ही संक्रमण फैलता है इसलिए प्रसूताओं के पेट के टांके (स्टिच) पक (मवाद होना) जाते हैं। संक्रमण बढ़ने पर टांके खुल जाते हैं। ओटी की बुरी स्थिति यहां के आपरेशन थियेटर की और भी बुरी स्थिति है। ओटी में सिस्टर वॉश नहीं होने से ओटी इंस्टूमेंट (उपकरण) ठीक से स्टरलाइज नहीं होते हैं। ओटी टेबिल भी ठीक से साफ नहीं होती है। आपरेशन में इस्तेमाल होने वाले ग्लब्स भी सिस्टर ठीक से साफ नहीं कराती हैं। जूनियर रेजीडेंट (जेआर) को ओटी में गाउन और चप्पलें नहीं मिलती हैं। इससे ओटी में संक्रमण का स्तर बढ़ा रहता है।
अफसरों को गंदगी एवं संक्रमण की जानकारी
जच्चा-बच्चा अस्पताल में गंदगी एवं संक्रमण की जानकारी मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य एवं एलएलआर के प्रमुख अधीक्षक को भी है। उन्होंने सीएमएस एवं मेट्रन को सुधार के निर्देश दिए हैं। सफाई के लिए कुछ दिन पहले पांच सफाई कर्मचारी भी दिए गए हैं।
24 घटे मुस्तैद रहतीं डॉक्टर
स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की फैकल्टी के मार्गदर्शन में 51 सीनियर और जूनियर रेजीडेंट 24 घटे जच्चा बच्चा अस्पताल में मुस्तैद रहती हैं, जो गर्भवती, प्रसूता एवं युवतियों का इलाज करती हैं।
नर्सिग स्टाफ की कमी
अस्पताल में मरीजों का जबरदस्त दबाव है। उस हिसाब से नर्सिग स्टाफ नहीं हैं। वर्तमान में 2 मेट्रन, 7 सिस्टर एवं 25 स्टाफ नर्स हैं। उनके जिम्मे वार्ड से लेकर लेबर रूम की व्यवस्था होती है। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआइ) के मानक के अनुसार 100 नर्सिग स्टाफ की जरूरत है।
दस में से सिर्फ तीन वार्ड ही चालू
कहने के लिए अस्पताल में दस वार्ड और दो लेबररूम हैं। उनमें से वार्ड 7, 8 व 9 जीर्णोद्धार कार्य की वजह से बंद पड़े हैं। वर्तमान में सिर्फ वार्ड 4, 5 एवं 6 में मरीज भर्ती होते हैं। यह है सुविधा सामान्य प्रसव, सीजेरियन प्रसव, बच्चेदानी के मुख कैंसर (सर्वाइकल कैंसर), बच्चेदानी का घाव, बच्चेदानी में ट्यूमर और फेलोपिन ट्यूब जांच।
''अस्पताल में गंदगी की वजह सफाई कर्मचारियों की कमी है। सिर्फ एक ही सफाई कर्मचारी के जिम्मे दो वार्ड, दो लेबर रूम और आपरेशन थियेटर की सफाई व्यवस्था है इसलिए दिक्कत होती है। इससे अधिकारियों को कई बार अवगत कराया है।- डॉ. सुनीता भटनागर, सीएमएस, जच्चा-बच्चा अस्पताल।  
''अस्पताल में गंभीर स्थिति में गर्भवती एवं प्रसूताएं ही इलाज के लिए आती हैं। उनमें हीमोग्लोबिन स्तर 5-6 ग्राम के बीच रहता है। उन्हें बचाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। इसलिए उनमें संक्रमण तेजी से फैल जाता है। उनमें हाई एंटीबायोटिक भी इस्तेमाल करनी पड़ती हैं। कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की पहले की रिपोर्ट में ग्लब्स एवं ओटी के कल्चर टेस्ट में संक्रमण मिला था। हाल में आई माइक्रोबायोलॉजी की कल्चर रिपोर्ट सामान्य है। कोई संक्रमण नहीं मिला है। - डॉ. शैली अग्रवाल, कार्यवाहक विभागाध्यक्ष, स्त्री एवं प्रसूति रोग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।
अस्पताल पर एक नजर
  • 235 बेड हैं स्वीकृत 135 बेड हैं उपयोग में
  • 271 मरीज रोज ओपीडी में आते 7042 महीने में
  • ओपीडी में आए 84,504 मरीज साल भर में ओपीडी में आए
  • 30-35 प्रसव औसतन रोज होते 1050 प्रसव औसतन महीने में होते
  • 12,600 प्रसव औसतन साल भर में होते

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