चित्रकूट में विंध्य पर्वत शृंखला पर मिले हजारों साल पुराने शैल चित्र, गेरुआ रंग में पशुओं का अंकन दृष्टिगोचर
चित्रकूट में विंध्य पर्वत शृंखला पर धारकुंडी के पास इतिहासकार की टीम ने खोज की है। इसमें पांच शिलाखंडों में प्रागैतिहासिक युगीन गेरुआ रंग में पशुओं का अंकन दृष्टिगोचर हो रहा है। अमवा में भी मिले प्रागैतिहासिक शैलचित्र आज भी सुरक्षित हैं।
चित्रकूट, जागरण संवाददाता। विंध्य पर्वत शृंखला पर स्थित परमहंस महाराज के धारकुंडी आश्रम के पास अमवा में हजारों साल पुराने दुर्लभ प्रागैतिहासिक शैल चित्र मिले हैं। इतिहासकार डा. संग्राम सिंह के नेतृत्व में एक टीम ने जंगल में खोज की है।
उन्होंने बताया कि कल्याण गढ़ से लगभग आठ किमी दूर धारकुंडी आश्रम के पास जंगल में पांच शिला खंडों में प्रागैतिहासिक युगीन शैल चित्रों के प्रमाण मिलते हैं। यह शैल चित्र हेमेटाइट प्रकार के हैं, जो गेरुआ रंग के हैं।
इन चित्रों में ज्यादातर जंगली पशुओं का अंकन दृष्टिगोचर होता है। उनके ऊपर छतरीनुमा चट्टान भी है। वस्तुत: शैल चित्रों का वर्ण्य विषय तत्कालीन मानवीय गतिविधियों का निरूपण है।
डा. संग्राम सिंह बताते हैं कि विंध्य क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक शैल चित्रों की खोज का श्रेय आर्चीवाल्ड और जान ककवर्न को जाता है। ककवर्न ने अपने शोध का सचित्र वैज्ञानिक विवरण एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल के जर्नल में वर्ष 1883 में प्रकाशित किया था। अमवा से मिले वैसे ही प्रागैतिहासिक शैलचित्र आज भी सुरक्षित हैं।
-प्राचीन शैल चित्रों के बारे में देख कर ही कुछ कह सकेंगे। जल्द ही टीम वहां जाकर रिपोर्ट तैयार करेगी। मनोज कुमार वर्मा, सहायक अभियंता, भारतीय पुरातत्व विभाग शैलचित्र को पुरातत्व विभाग की टीम से सर्वे कराएंगे। यदि पुराने शैल चित्र हैं तो इनको संरक्षित किया जाएगा। -अभिषेक आनंद, जिलाधिकारी