यह मंदी नहीं आर्थिक सुस्ती है
देश में मंदी के बादल अभी नहीं छाए हैं। सकल घरेलू उत्पाद उत्पादन व आय में जब तेजी के साथ
देश में मंदी के बादल अभी नहीं छाए हैं। सकल घरेलू उत्पाद, उत्पादन व आय में जब तेजी के साथ गिरावट होती है तो उसे मंदी कहा जाता है। अभी देश में आर्थिक सुस्ती के हालात हैं। समय रहते इसका हल निकाला जा सकता है।
ये बातें क्राइस्ट चर्च डिग्री कॉलेज के पूर्व प्राचार्य व अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष रह चुके डॉ. एचएम मेहरोत्रा ने 'जागरण विमर्श' के दौरान कहीं। उन्होंने 'आर्थिक मंदी के कारण एवं बचने के उपाय' विषय पर अपनी बात रखी। कहा कि आर्थिक सुस्ती जब लंबे समय तक नहीं सुधरती है तब वह मंदी बन जाती हे, लेकिन अभी हमारे देश में ऐसा नहीं है। ऑटो, कपड़ा व चर्म उद्योग में आर्थिक सुस्ती आई है, जबकि अन्य उद्योगों पर इसका असर नहीं है। हां, यह जरूर है कि इन संकेतों को देखते हुए सचेत रहने की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि इस पर काबू पाने के लिए सार्वजनिक व्यय व खरीदारी बढ़ाने पर जोर दे। यह अच्छा संकेत है कि अभी चीजों की कीमतों व मजदूरी में गिरावट अभी नहीं आई है इसलिए आर्थिक सुस्ती पर जल्द काबू पाया जा सकता है। सरकार ने इस ओर कदम बढ़ाने शुरू भी कर दिए हैं। बाजार में पैसा दौड़ता रहे इसके लिए बैंकों को पांच लाख करोड़ रुपये दिए गए हैं। इसके अलावा स्टार्टअप व उद्यमिता के अंतर्गत लगने वाले एंजल टैक्स को खत्म कर दिया गया है।
आंतरिक कारणों से आई आर्थिक सुस्ती :
डॉ. एच एम मेहरोत्रा ने बताया कि नोटबंदी के अलावा इनकम टैक्स व जीएसटी के सख्त नियमों से तरलता कम हुई है। इसी तरह कुछ और भी कारण हैं जिससे आर्थिक सुस्ती आई है। जिन क्षेत्रों में इसका असर हुआ है उनमें निवेश व उत्पादन कम हो गया है जिससे बेरोजगारी बढ़ी है। राजकोषीय नीति के जरिए इस पर छह माह से साल भर के अंदर काबू किया जा सकता है। अच्छी बात ये है कि देश का राजकोषीय घाटा व कर्ज कम है।
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आर्थिक सुस्ती दूर करने के तरीके :
- टैक्स खत्म किए जाएं
- बाजार में निवेश बढ़ाया जाए
- सरकार जरूरतमंदों को ऋण दे
- ब्याज कम किए जाएं
- उद्योगों को बढ़ाने के लिए ऋण की संजीवनी मिले