स्वतंत्रता के सारथी : ये आइआइटियन निभा रहा सच्चे इंडियन का फर्ज Kanpur News
आइआइटी में पीएचडी कर रहे अभिषेक ईंट भट्ठों में जाकर गरीब मजदूरों के बच्चों को पढ़ाकर शिक्षित बना रहे हैं।
कानपुर, [समीर दीक्षित]। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) में पढऩे वाले छात्र-छात्राएं पढ़ाई पूरी होते ही विदेश की ओर रुख करते हैं, मल्टीनेशनल कंपनियों के उच्च पदों पर आसीन होते हैं। या फिर अपना खुद का ही प्रोजेक्ट शुरू कर कमाई की सोचते हैं। लेकिन, आइआइटी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे बिहार के आरा निवासी अभिषेक की सोच बिल्कुल अलग है, वह आजाद भारत में सच्चे इंडियन का फर्ज अदा कर रहे हैं। वह अपनी पढ़ाई के साथ ही ईंट भट्ठों पर प्रवासी मजदूरों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
अब नहीं लगता गणित का डर
अलग और सरल तरीके से अभिषेक के पढ़ाने का असर भी बच्चों पर दिख रहा है जो कठिन विषयों में पारंगत हो रहे हैं। विन्यास पब्लिक स्कूल में पढ़ रहे दसवीं कक्षा के प्रांजुल हों या फिर आठवीं के देवराज और कुलदीप। कभी कक्षा में कमजोर माने जाने वाले ये बच्चे बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। गणित और विज्ञान जैसे कठिन विषयों का डर अब इन बच्चों में नहीं रहा है। स्कूल की कक्षा में गणित सवालों को तुरंत हल कर देते हैं तो विज्ञान के प्रश्नों का चट से जवाब देते हैं। शिक्षक भी उनकी सराहना करते हैं।
अपना घर से हुई थी पहली मुलाकात
खास बात यह कि अभिषेक किसी एक भट्ठे पर ही नहीं जाते हैं। आइआइटी कानपुर के आसपास जितने भट्ठे हैं, वहां अलग-अलग दिनों में बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। वर्ष 2015 में आइआइटी कानपुर पहुंचे अभिषेक बताते हैं कि उनकी सबसे पहली मुलाकात 'अपना घर' संस्था के बच्चों से हुई। संस्था के संचालक महेश कुमार ने असम, झारखंड, मध्य प्रदेश व अन्य राज्यों से पहुंचे बच्चों से मिलवाया। अभिषेक ने उन्हें पढ़ाना शुरू किया और बच्चों ने मन लगाकर पढऩा। इसके बाद सिलसिला बढ़ता गया। अभिषेक ने भट्ठों पर जाकर ऐसे तमाम बच्चों को रोज पढ़ाना शुरू किया।
दूसरे को जितना पढ़ाएंगे उतना खुद पढ़ेंगे
गणित के फार्मूले हों या विज्ञान के नियम-सिद्धांत, अभिषेक बड़े सहज ढंग से बच्चों को समझाते हैं। वह बच्चों को पढ़ाई में हो रही समस्या पर फोकस करते हैं, उस पर संवाद करते हैं और निदान में मदद करते हैं। अभिषेक कहते हैं कि शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिसका अधिक से अधिक विस्तार होना चाहिए। आप जितना दूसरों को पढ़ाएंगे, खुद भी उतना ही पढ़ेंगे।
वह मुस्कुराते हुए बताते हैं कि पूरा दिन तो वैसे ही आइआइटी की लैब में बीतता है। अगर थोड़ा समय ऐसे बच्चों को दे दिया तो बेहद खुशी होती है। बकौल अभिषेक, वह फिनलैंड समेत अन्य देशों की यात्रा कर चुके हैं। वह बताते हैं, फिनलैंड को शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए जाना जाता है। उनका मानना है कि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार तभी हो सकता है जब शिक्षक पूरी जिम्मेदारी के साथ बच्चों को पढ़ाएंगे।
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