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इस घर में सबसे बड़ा पर्व 15 अगस्त

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विद्यासागर विद्यार्थी ने मरने से पहले दिलाई थी शपथ

By JagranEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 07:40 AM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 05:21 PM (IST)
इस घर में सबसे बड़ा पर्व 15 अगस्त
इस घर में सबसे बड़ा पर्व 15 अगस्त

राजीव सक्सेना, कानपुर : किसी के लिए दीपावली सबसे बड़े त्योहार है तो किसी के लिए होली। कोई ईद धूमधाम से मनाता है तो कोई क्रिसमस, लेकिन जर्रे जर्रे में क्रांति की गौरव गाथा से जीवंत कानपुर में एक परिवार ऐसा भी है, जिसके लिए सबसे बड़ा त्यौहार स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस है। ये परिवार ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का है, जिसने आजादी के मंत्र से देशप्रेम के धागे में पूरे परिवार को पिरो दिया। यह सेनानी हैं, पंडित विद्यासागर विद्यार्थी। आजादी की लड़ाई में दो बार जेल गए सेनानी का पूरा परिवार उनकी दिलाई गई शपथ का पालन उनके निधन के 50 वर्ष बाद भी कर रहा है। इस त्योहार पर परिवार घर के नए सदस्य या सबसे छोटे बच्चे का सम्मान भी करता है। शपथ यह थी कि पूरा परिवार एकजुट होकर स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस को धूमधाम से मनाएगा।

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शपथ को मजबूरी नहीं बल्कि गौरव मानने वाला यह परिवार लाजपत नगर स्थित पुश्तैनी मकान में इकट्ठा होकर धूमधाम से दोनों पर्व मनाता है। परिवार बढ़ा, नौकरी की जरूरतों से कानपुर छूटा लेकिन यह 50वां वर्ष है, जब पूरा यह त्योहार साथ मनाएगा।

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पंडित विद्यासागर विद्यार्थी का परिचय

- कानपुर की अकबरपुर तहसील के सरवनखेड़ा गांव में दिसंबर 1917 में जन्म

- दो वर्ष की उम्र में पिता शिव गुलाम का निधन, आठवीं तक की पढ़ाई गजनेर में पढ़े, 1933 में नौवीं कक्षा में शहर आए और तिलकहाल में रहने लगे, यहीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संपर्क में आए

- 1934 में विदेशी कपड़ों और शराब के विरोध में मात्र 17 वर्ष की आयु में छह माह की जेल

- 1939 में दो वर्ष की जेल। वह फरार थे और अपने पहले बेटे को छठी के दिन देखने पहुंचे थे। घर के बाहर ही गिरफ्तार होने से वह बेटे को न देख सके

- पहले बेटे का छह माह की आयु में निधन हुआ और वह उसे नहीं देख सके

- गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रेस में काम किया और अपने नाम के साथ विद्यार्थी जोड़ा

- 1946 में कानपुर में वानर सेना के अध्यक्ष थे

- जीवनभर खुद सिलकर कपड़े पहने

- तीन जनवरी 1968 को लिवर सिरोसिस से निधन

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50 वर्ष में छह गुना बढ़ा परिवार

1968 में परिवार में 10 सदस्य थे। तीन बेटे, तीन बेटी, पत्नी, बहू, बेटे के बच्चे। आज परिवार में तीन बेटे महेंद्र प्रताप, अरविंद कुमार, प्रदीप कुमार, बेटी सरिता, सुधा व ममता के बच्चों के साथ उनके भी बच्चे हैं। परिवार में 60 सदस्य हैं।

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ताकि आजादी का संघर्ष न भूलें

महेंद्र प्रताप और अरविंद कुमार कहते हैं कि आजादी के संघर्ष को नई पीढ़ी भूल न जाएं, इसलिए उन्होंने शपथ दिलाई। कार्यक्रम में स्वतंत्रता संग्राम के बारे में जानकारी दी जाती है। सबसे पहले सबसे छोटा बच्चा बोलता है, फिर क्रम फिर बढ़ता जाता है।


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