बिना बायोप्सी के ही सर्वाइकल कैंसर के खतरे से आगाह कर देगी ये डिवाइस Kanpur News
मेडिकल कालेज व आइआइटी के विशेषज्ञों को छह साल के शोध में मिली कामयाबी समय रहते महिलाओं में पता चल जाएगा रोग।
कानपुर, [ऋषि दीक्षित]। अब डिवाइस बताएगी कि महिला को बच्चेदानी के मुख कैंसर (सर्वाइकल कैंसर) का खतरा है या नहीं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें बिना बायोप्सी के ही सटीक जानकारी मिलेगी। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के विशेषज्ञों ने छह साल गहन शोध के बाद इसे तैयार किया है। डिवाइस का पहले चरण का परीक्षण मेडिकल कॉलेज से संबद्ध जच्चा-बच्चा अस्पताल में सफल रहा। इसे सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम की दिशा में बड़ी सफलता माना जा रहा है। अब दूसरे चरण में दो साल से डिवाइस को छोटा एवं हल्का बनाने पर शोध चल रहा है।
जीएसवीएम मेडिकल कालेज की स्त्री व प्रसूति रोग विभागाध्यक्ष प्रो. किरन पांडेय तथा आइआइटी के भौतिक विज्ञान विभाग की डॉ. असीमा प्रधान मिलकर सर्वाइकल प्री कैंसरस ऑप्टिकल स्पैक्ट्रोस्कोपी टूल प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। इसमें महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का शुरुआती अवस्था में ही पता लगाना है ताकि हर साल बड़ी संख्या में होने वाली मौतों को रोका जा सके। कई चरणों में पायलट स्टडी के बाद हैंड हेल्ड प्रोव (हाथ में पकडऩे वाली डिवाइस) तैयार की गई है। जो फ्लोरिसेंस ऑप्टिकल तरंगों पर काम करती है। यह तरंगें सेल के जरिए रक्त में प्रवाहित की जाती हैं। रक्त में होने वाले केमिकल रिएक्शन को पढ़कर तरंगें कंप्यूटर पर संकेत देती हैं। कंप्यूटर स्क्रीन पर रेड सिग्नल मिलने का मतलब भविष्य में कैंसर की आशंका है, जबकि ग्र्रीन सिग्नल खतरे को खारिज करता है।
पहले डिवाइस आइआइटी में लगी थी। इससे ऑपरेशन के बाद निकलने वाले टिश्यू टेस्टिंग में दिक्कत होती थी इसलिए इसे अपर इंडिया शुगर एक्सचेंज जच्चा-बच्चा अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर के बगल में लगाया गया। इसमें महिलाओं की जांच की जा रही है, जिसके परिणाम उत्साहजनक रहे। अब वर्ष 2017 से दूसरे चरण का प्रयोग शुरू है। इसकी अनुमति कॉलेज की एथिकल कमेटी से मिल चुकी है।
हर साल 33 हजार महिलाओं की मौत
देश में हर साल सर्वाइकल कैंसर से 33 हजार महिलाएं असमय दम तोड़ देती हैं। यह ह्यïूमन पैपीलोना वायरस के संक्रमण से होता है। शुरूआत में कोई लक्षण नहीं होते, इसलिए पता नहीं चल पाता है। सेल और शेप में बदलाव होने पर पैपस्कैन एवं काल्पोस्कोपी जांच कराई जाती है, तब तक विलंब होने से फायदा नहीं होता है।
शोध को मिले दो पुरस्कार
इस शोध को अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के अधिवेशन में प्रस्तुत किया गया। इसे मुंबई में हुई ऑल इंडिया कांफ्रेंस में रिसर्च कैटेगरी में बेस्ट अवार्ड मिला। इससे पहले डॉ. चित्राथरा एवं डॉ. गंगाधरन प्रीवेंटिव रिसर्च अवार्ड मिला था।
छोटी एवं हल्की डिवाइस बनाने पर काम
डॉ. किरन पांडेय ने बताया कि अभी मरीजों की जांच में कैंसर का शुरूआती अवस्था का पता आसानी से चल रहा है। इसकी सफलता को देखते हुए अब कॉम्पैक्ट एवं हल्की डिवाइस बनाने पर काम चल रहा है। डिवाइस में लगे मेटल और लेंस का वजन और आकार छोटा करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि छोटी और सहज हो सके। फिर इसे पेटेंट कराएंगे। इससे ग्रामीण अंचल में सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग संभव होगी।
बायोप्सी के बराबर ही परिणाम
उन्होंने बताया कि इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें बिना काट-छांट के ही बायोप्सी के बराबर रिजल्ट मिलते हैं जबकि बायोप्सी में टिश्यू निकालकर लैब में जांच की जाती है।