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दिव्यांगों के जीवन में खुशियों का 'स्टार्टअप'

विक्सन सिक्रोड़िया, कानपुर : कभी यूं ही खाली बैठकर अपनी मजबूरियों पर आंसू बहाने वाले ग्रामी

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Dec 2017 01:10 AM (IST)Updated: Sun, 17 Dec 2017 01:10 AM (IST)
दिव्यांगों के जीवन में खुशियों का 'स्टार्टअप'
दिव्यांगों के जीवन में खुशियों का 'स्टार्टअप'

विक्सन सिक्रोड़िया, कानपुर : कभी यूं ही खाली बैठकर अपनी मजबूरियों पर आंसू बहाने वाले ग्रामीण दिव्यांगों की आंखों में अब चमक है, सपने भी हैं। न किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत और ना ही चक्कर काटने की मशक्कत। आइआइटी के स्टार्टअप सोसेंट्स वेंचर ने ऐसे दिव्यांगों की जिंदगी को नया स्टार्टअप दिया है। उन्हें ब्रांडेड उत्पादों का सौदागर बनाकर आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है।

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लखनऊ व सीतापुर के बाद यह स्टार्टअप कानपुर के गांव में रहने वाले दिव्यांगों को भी इससे जोड़ने जा रहा है। दिव्यांगों को इसका लाभ पहुंचाने व योजना को आगे बढ़ाने के लिए आइआइटी के सिडबी इनोवेशन एंड इंक्यूबेशन सेंटर ने इस स्टार्टअप को 20 लाख रुपये का अनुदान दिया है। स्टार्टअप की इस सोच से जुड़ने के लिए लखनऊ में 270, सीतापुर में 725 व बाराबंकी में 468 दिव्यांग कतार में हैं, जबकि दिसंबर तक 67 दिव्यांग अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे। 17 दुकानें खोली जा चुकी हैं। इसके अलावा 60 और लोगों के लिए बैंक से लोन पास हो चुका है। अब इनके गांव में रोजमर्रा के ब्रांडेड सामान के साथ दुकानें खुलवाई जाएंगी। दिव्यांगों के लिए शुरू की गई इस योजना की सबसे बड़ी बात यह है कि उन्हें लोन के लिए बैंक के चक्कर नहीं लगाने पड़ते और यह सामान कंपनी रेट पर मिलता है।

दो हजार से अधिक आबादी वाले 25 हजार 568 गांव किए चिह्नित :

स्टार्टअप के संस्थापक आलोक मिश्रा ने बताया कि प्रदेश में दो हजार से अधिक आबादी वाले 25 हजार 568 गांवों को इस योजना के लिए चिह्नित किया गया है। आबादी के अनुसार बैंक से उत्पाद लेने के लिए लोन कराया जाता है। दो हजार से तीन हजार आबादी वाले गांव के लिए 50 हजार रुपये, तीन हजार से पांच हजार आबादी वाले गांव को एक लाख व पांच हजार से अधिक आबादी वाले गांव को दो लाख तक का लोन मिलता है। प्रत्येक गांव से एक दिव्यांग को दुकान खुलवाई जाती है। दिव्यांगों का साक्षात्कार व माली हालत देखकर उनका चयन होता है।

अफ्रीका में दोस्त के बिजनेस को देख आया आइडिया :

अफ्रीका में अपने एक दोस्त के आयात-निर्यात के कारोबार को देखकर स्टार्टअप के हेड आलोक मिश्रा को इसका आइडिया आया। उनके दोस्त सस्ते दामों में भारत से चीजों को खरीदकर अपने देश में बेचते थे। उन्होंने देखा कि थोक में ब्रांडेड चीजों को सस्ता खरीदा जा सकता है और इससे मुनाफा होता है। इसके लिए उन्होंने ऐसे दिव्यांगों को चुना, जिनके जीवन यापन का कोई सहारा नहीं था। उन्होंने बताया कि उनकी टीम गांव-गांव जाकर ऐसे दिव्यांगों की तलाश करती है। इसके अलावा वे www.ह्यश्रष्द्गठ्ठह्लह्य.द्बठ्ठ में भी आवेदन कर सकते हैं। अगर वह उनके मानक पर खरे उतरते हैं तो उन्हें इस योजना का लाभ मिलेगा।


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