सड़क के गड्ढों में हिचकोले खा रही जिंदगानी
क"ाी सड़कों से उड़ती धूल बना रही बीमार, सीवर लाइन का काम अधूरा, ठेकेदार व अधिकारियों की साठगांठ से कर लिया गया सरकारी धन का बंदरबांट
चारुतोष जायसवाल, कानपुर : सड़क पर वाहन हिचकोले खाने लगे और सामने धूल का गुबार संग हवा में दुर्गध महसूस हो तो समझ जाइये कि चकेरी वार्ड के गंगा किनारे के किसी गांव से होकर गुजर रहे हैं। जी हां, इन गांवों की यही पहचान बन गई है। यह तमगा दिलाने में नगर निगम व जल निगम के साथ अन्य सरकारी विभागों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। इन बदहाल सड़कों पर चलने से ग्रामीणों के शरीर में दर्द तो होता ही है, कमर भी झुकी जा रही है। दिन के उजाले में तो किसी तरह लोग सफर कर लेते है लेकिन रात में भगवान का नाम लेकर आते-जाते हैं। बारिश के दौरान तो और भी मुश्किल हो जाती है। उधर, सीवर लाइन का काम भी अधूरा है। जो पाइप लाइन पड़ी वह भी जर्जर हो गई। प्रदेश में तीन सरकारें बदल गई, वहीं कई अधिकारी आए और चले गए। मगर, यहां के हालत बदले नहीं बल्कि बदतर होते गए।
प्यौंदी से लेकर शेखपुर तक तीन साल पहले पक्की सड़क बनाई गई थी। सीवेज नहर के कभी ओवरफ्लो होने तो कभी क्षतिग्रस्त होने से केमिकलयुक्त पानी सड़क पर भरता रहता है। इससे सड़क का डामर उखड़ गया और कई जगह गडढे हो गए। ग्रामीणों ने नगर निगम अधिकारियों से शिकायत की लेकिन हुआ कुछ नहीं। इन गांवों से आगे बढ़ने पर शेखपुर से किशनपुर, उसके बाद मोती नगर, सुखनीपुर व आसपास के गांव तक सड़क जाती है। इन गांवों को जाने के लिए कच्ची सड़क ऊबड़ खाबड़ हो चुकी है। दिनभर धूल का गुबार उड़ता रहता है। यही धूल सांसों के जरिए अंदर जाकर ग्रामीणों को बीमार बना रही है। बदहाल सड़क आए दिन किसी न किसी को जख्म दे रही है।
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महज देखने के लिए सीवर लाइन
इन गांवों में सीवर लाइन तो 2007 में बसपा शासनकाल में डाली गई लेकिन वह भी आधी-अधूरी। न तो कहीं कनेक्शन जोड़े गए और न ही मानक के अनुरूप लाइन बिछाई गई। नतीजतन, सीवर लाइन कई जगह से टूट गई है तो चैंबर के ढक्कन भी सड़ गल चुके। ग्रामीण दो टूक कहते हैं कि लगता ही नहीं कि हम लोग वार्ड क्षेत्र के बा¨शदे हैं। गांव से भी ज्यादा खराब हालातों में जी रहे हैं।
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अपराधियों से लगता है डर
खराब सड़क ऊपर से मार्ग प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं है। इससे अपराधियों की यह चहेती जगह बन चुकी है। कई बार यहां लूट व राहजनी हुई तो हत्या कर शव ठिकाने लगाए गए। ग्रामीण रात में इधर से निकलने से बचते हैं।
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चोक नाली व कूड़े का अंबार
गांवों में नालियों की सफाई नहीं होती है। महीने में कभी-कभार ही सफाई कर्मी नजर आता है। पूछो तो जवाब आता है कि इतनी दूर कौन आए। सफाई नहीं होने से ज्यादातर नालियां चोक हैं। गांव बाहर व अंदर कूड़े के अंबार लगे हुए हैं। कूड़ा उठाने कोई नहीं आता बल्कि डालने को कई लोग आते हैं। कई बार ग्रामीणों ने नगर निगम अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन हाल ढाक के तीन पात रहा।
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सरकारी खजाने में अधिकारियों ने डाला डाका
जल निगम की तरफ से सीवर लाइन डाली गई, वह भी अधूरी। हर गांव में लाखों रुपये की लागत से काम हुआ। गलियों से होते हुए दरवाजे की देहरी तक लाइन पहुंची लेकिन अंजाम तक पहुंचने से पहले ही सरकारी खजाने से मिली रकम जिम्मेदारों ने बांट ली। बिना काम पूरा हुए ही भुगतान हो गया और ठेकेदार ग्रामीणों को ठेंगा दिखा निकल गया। कोई भी यहां आकर देखेगा तो समझते देर नहीं लगेगी कि काम के बहाने मलाई खाई गई है।
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क्या कहते हैं ग्रामीण
खराब सड़क पर हम लोग बहुत संभलकर चलते हैं। जरा सी चूक हादसे का सबब बन जाती है और अस्पताल पहुंचा देती है। अधिकारियों की नजरें इनायत हो जाए तो कुछ भला हो।
- राजकुमार विश्वकर्मा, शेखपुर सफाई कर्मी कभी-कभार ही गांव में नजर आता है। नाली चोक रहती है, साथ ही इधर-उधर कूड़े का ढेर जमा रहता है। नगर निगम अधिकारियों से शिकायत करो तो भी कुछ नहीं होता है।
- सोनू, मोतीपुर सीवर लाइन कहने को तो गांव में है लेकिन केवल देखने के लिए। अधूरे काम को किसी भी अधिकारी या सरकार ने पूरा कराने की नहीं सोची। हम लोगों के लिए कब अच्छे दिन आएंगे, पता नहीं।
- सूर्यकांत यादव, प्यौंदी गांवों में सरकारी धन की खुलकर बर्बादी की गई। सीवर लाइन टूट चुकी है। अब अगर काम होना हो तो फिर से योजना बनाओ और फिर से लाइन डालो। इन सब चक्कर में ग्रामीणों का नुकसान हुआ है।
- मोनू, मोतीपुर