स्कूल की 'डगर', खतरों भरा 'सफर'
जागरण संवाददाता, कानपुर : नन्हे मुन्नों के लिए शिक्षा के मंदिर की राह कांटों वाली है। उनक
जागरण संवाददाता, कानपुर : नन्हे मुन्नों के लिए शिक्षा के मंदिर की राह कांटों वाली है। उनके लिए घर से स्कूल और स्कूल से घर तक का सफर खतरों से भरा है। शहर में कई स्कूली बसें और वैन जर्जर हालत में चल रही हैं। उनका कई साल से फिटनेस परीक्षण तक नहीं हुआ है। सुरक्षा व्यवस्था और मानकों को दरकिनार किया गया है। संभागीय परिवहन विभाग (आरटीओ) के प्रवर्तन दस्ते ने दस दिन पूर्व अभियान चलाया, जिसमें 67 बसें बिना फिटनेस के मिलीं। इनमें से कई बसें नामी स्कूलों की हैं। उन्हें नोटिस भेजा जा रहा है। स्कूली वैन के खिलाफ प्रवर्तन दस्ता आंखें मूंदे हुए है। काफी समय से उनके खिलाफ अभियान नहीं चलाया गया। चेकिंग के दौरान दो-तीन के खिलाफ कार्रवाई कर इतिश्री कर ली जाती है।
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स्कूल बस और वैन के मानक
- हर साल फिटनेस होनी चाहिए
- एनआइडी (नेक्सट इंस्पेक्शन डेट) के सात दिन पहले ही गाड़ी आरटीओ पहुंच जानी चाहिए
- बस और वैन का रंग पीला हो
- बीच में पट्टी गोल्डन या फिर नेवी ब्लू रंग की रहे
- दरवाजा खुलते ही स्टॉप का बोर्ड बाहर की ओर आ जाए
- दो अग्निशमन यंत्र उपलब्ध हों
- फर्स्ट ऐड बॉक्स जरूरी
- आपातकालीन खिड़की जरूरी
- सीटें नीचे की ओर नहीं होनी चाहिए
- चालक के साथ ही सहायक का रहना जरूरी
- चालक का लाइसेंस कम से कम पांच साल पुराना हो
-बस और वैन में ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा रहे
- स्कूल और गाड़ी मालिक का नाम व मोबाइल नंबर जरूरी
-खिड़कियों पर ग्रिल लगनी चाहिए
- स्पीड अलार्म जरूरी
-वैन व बस 15 साल से अधिक पुरानी न हो
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ठूंसकर भरे जाते बच्चे
कई स्कूल बसों और वैन में बच्चे भेड़ बकरियों की तरह भरे जाते हैं। एआरटीओ प्रवर्तन प्रभात कुमार पांडेय के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने एक सीट पर 1.5 का अनुपात किया है। अगर सात सीटर वैन है तो उसमें 11 बच्चे बिठाए जा सकते हैं। अधिकतर वैन या बस में अनुपात से अधिक संख्या में बच्चे बिठाए जा रहे हैं। चेकिंग के दौरान पकड़े जाने पर ओवरलोडिंग में चालान होता है।
'भरोसे का चालक' योजना रद
तीन साल पहले तत्कालीन डीएम डॉ. रोशन जैकब ने 'भरोसे का चालक' योजना आरंभ की थी। उसमें ट्रैफिक पुलिस और आरटीओ स्कूल बस व वैन चालकों को कार्ड जारी करते थे। जिसमें उसके चरित्र का प्रमाणीकरण होता था। योजना को प्रदेश में लागू होने की तैयारी चल रही थी लेकिन परिवहन विभाग ने सुरक्षा कारणों को बताकर इसकी स्वीकृति नहीं दी।
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वैन चलाने के लिए कार्मशियल लाइसेंस जरूरी नहीं
एआरटीओ प्रभात पांडेय की मानें तो सरकार ने वैन, लोडर, टेंपो, ई-रिक्शा, छोटा हाथी चलाने के लिए कामर्शियल लाइसेंस की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है। पहले 7500 किलोग्राम भार के वाहनों के लिए कार्मशियल लाइसेंस जरूरी था लेकिन सरकार ने टैक्सी, लोडर, वैन, छोटा हाथी का वजन 3000 किग्रा से कम माना है। परिवहन विभाग ने इसको लेकर एडवाइजरी जारी कर दी है।
ओवरलोडिंग का चालान 15400 रुपये
आरटीओ द्वारा ओवरलोडिंग की कार्रवाई में प्राइवेट वैन या बस पर प्रति सीट 2200 रुपए वसूले जाते हैं। एक वैन में चालक को छोड़कर सात सीटें होती हैं, जिस पर 15400 रुपये का चालान होता है। अगर फिटनेस और परमिट नहीं कराया तो उसका अलग से चार्ज होता है। फिटनेस और परमिट का फाइन चार-चार हजार रुपये है। वहीं स्कूल की बस या वैन ओवर लोडिंग में पकड़े जाने पर केवल 100 रुपये चार्ज लगता है।
गाना बजाने और सुनने पर नहीं हुई कार्रवाई
जनपद में 630 स्कूली बसें और 1017 स्कूली वैन रजिस्टर्ड हैं। इनमें तेज आवाज में गाना बजाने या चालक के लीड लगाकर गाना सुनने में अब तक एक भी कार्रवाई नहीं हुई। इसका चालान 1000 रुपये का है। इसके चलते अधिकतर चालक बच्चों को लाने ले जाने के दौरान तेज आवाज में म्यूजिक सिस्टम बजाते हैं।
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न फिटनेस कराई न जुर्माना दिया
कानपुर में 67 अनफिट बसों में से बर्रा-8 और मेहरबान सिंह का पुरवा के स्कूलों ने 2014 से अब तक फिटनेस जांच नहीं कराई है। स्कूलों की मनमानी का आलम ये है कि वह जुर्माना भी नहीं दे रहे हैं। रामादेवी के नामी स्कूल की छह बसें पिछले साल से अनफिट हैं। घाटमपुर, सफीपुर, जूही और अशोक नगर के स्कूलों की एक-एक बसों का तीन साल से फिटनेस टेस्ट नहीं हुआ है। यशोदा नगर, अरौल, बिठूर, अहिरवां, जरौली, बर्रा के स्कूलों की एक एक बसें दो साल से अनफिट हैं। विकास नगर के शिक्षा संस्थान की चार बसें एक साल से अनफिट हैं। दिसंबर 2016 से 50 रुपये रोज का जुर्माना लग रहा है।
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प्राइवेट वैन पर नहीं हो रही कार्रवाई
संभागीय परिवहन कार्यालय के अधिकारियों की मानें तो कई स्कूलों में प्राइवेट वैन बच्चों को लाने ले जाने का काम कर रही हैं। ये कई स्कूलों में चल रही हैं। उनके बारे में आरटीओ के पास कोई रिकार्ड नहीं है। बच्चों के परिजनों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से चलवाया है। कई बार पकड़ने पर परिजन ही कार्रवाई से मना करा देते हैं। ऐसी वैन पर 26 हजार से अधिक का चालान होता है।
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ई-रिक्शा में सुरक्षा मानक नहीं
शहर में काफी संख्या में ई-रिक्शा बच्चों को स्कूल छोड़ने व वापस लाने के काम में लगे हैं। उनके पास सुरक्षा मानक कुछ भी नहीं हैं। बच्चों को बेतरतीब ढंग से आगे और पीछे की सीट में बिठाया जाता है।
ऑटो से एंगल गायब
दो साल पहले ट्रैफिक पुलिस ने बच्चों और सवारियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऑटो-टेंपो चालकों के लिए वर्दी निर्धारित की थी। उसमें उनका नाम लिखा हुआ होना जरूरी था। ऑटो से बच्चे गलत दिशा में न उतरें, इसके लिए ट्रैफिक पुलिस ने एंगल लगवाया था। अब ये एंगल नहीं दिखते।