गिड़गिड़ा कर बोल रहे व्यापारी, अपना टाइम भी आएगा Kanpur News
व्यापार मंडल में खुद को चमकाने के लिए अपनाए जा रहे हैं हर हथकंडे।
कानपुर, जेएनएन। शहर में बड़ी संख्या में व्यापारी हैं। ऐसे में ये व्यापार के साथ राजनीति करने में भी पीछे नहीं रहते। अपना कद बढ़ाने के लिए एक दूसरे की काट करने में लगे रहते हैं। हर कोई कुर्सी पाना चाहता है, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। व्यापार मंडल में पर्दे के पीदे चल रहीं ऐसी ही गतिविधियों को रियल जर्नलिज्म के तहत नापतौल कॉलम के जरिये सामने ला रहे हैं राजीव सक्सेना।
मनमाफिक पद लाओ, हमें तोड़ ले जाओ
कहने को तो इनका लोहे का कारोबार है लेकिन इसका संगठन बनाने वाले पदाधिकारी आजकल टूटने को तैयार हैं। बस इन्हें अच्छा पद चाहिए। अच्छा पद भी अकेले नहीं अपने सभी साथियों के साथ चाहिए। ये उस गुट से जुड़े हुए हैं, जिनके जिलाध्यक्ष खुद लोहे के कारोबार से जुड़े थे, लेकिन अब इनका मन नहीं लग रहा। जिस तरह बड़े व्यापार संगठनों में नए संगठनों और व्यापारियों को जोडऩे की राजनीति चल रही है, उसका ये भी पूरा लाभ उठाने के मूड में हैं। इसके चलते टॉप टू संगठनों से इनके पदाधिकारी संपर्क में हैं। फिलहाल मोलभाव चल रहा है कि क्या पद दोगे। पहले तो टूटने वाले पदाधिकारियों के नेता के पद की बात है और उसके बाद जो साथ में आएंगे उन्हें क्या पद मिलेगा, इस पर खींचतान है। गले तो दोनों ही गुट उन्हें लगाना चाहते हैं लेकिन लंबी सूची देख फिलहाल मामला वेटिंग में है।
कब के बिछड़े ये मंडी में आके मिले
राजनीति में कब, क्या हो पता नहीं। धुर विरोधी दो व्यापारी नेता पिछले दिनों एक साथ दिखे तो व्यापारियों को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि कैसे दोनों अगल बगल की कुर्सियों पर बैठकर मंत्रणा कर अधिकारियों से व्यापारियों के लिए सवाल कर रहे हैं। व्यापारिक राजनीतिक में यह अलग दृश्य था। वर्षों पहले श्याम बिहारी मिश्रा गुट के कानपुर उद्योग व्यापार मंडल के चुनाव में विवाद के चलते ज्ञानेश मिश्रा अलग हो गए थे। हालांकि कानपुर गल्ला आढ़तिया संघ में आज भी दोनों साथ हैं। श्याम बिहारी इसके अध्यक्ष हैं तो ज्ञानेश प्रधान सचिव। वर्ष 2014 में नौबस्ता गल्ला मंडी में दोनों अधिकारियों से बात करने के लिए साथ बैठे थे, लेकिन उसके बाद आज तक किसी जगह एक साथ व्यापारियों की बात नहीं उठाई। अब इस नए दृश्य को देख व्यापारी मंसूबे बांध रहे हैं कि काश, यह जोड़ी फिर साथ हो जाए।
इन्हें तो था व्यापारी बनने का शौक
एक व्यापारी नेता हैं। वैसे तो वह छपाई के कारोबार से जुड़े हैं लेकिन व्यापारिक संगठन मीठी गोली वाला है। कारोबार न करने के बाद भी उनकी बैठकी मीठी गोली के व्यापारियों के बीच ही होती है। कुछ लोगों ने उनके बिना कारोबार उस संगठन से जुडऩे पर सवाल उठाए। इसकी काट का भी उन्होंने रास्ता तलाशा। जिस संगठन में थे, उसके ही पदाधिकारी की आधी दुकान ली और शुरू हो गई मीठी गोलियों की बिक्री। इसके बाद गर्व के साथ सवाल उठाने वाले व्यापारियों से कहना शुरू कर दिया कि अब तो मैं भी इस कारोबार का व्यापारी बन गया। उस कारोबार का अनुभव तो था नहीं, कुछ दिन में बड़ा घाटा हो गया। मजबूरी में दुकान समेट ली। अब बिना कारोबार के उस व्यापार मंडल के पदाधिकारी हैं। हालांकि अब कोई टोकता है तो यही कहते हैं कि हम बिना कारोबार के ही नेता ठीक।
तुम्हारी नहीं, अब तो बस मेरी मर्जी
एक्सप्रेस रोड के आसपास थोक मोबाइल का बड़ा बाजार है। बाजार की दुकानों का दृश्य आजकल बदला हुआ है। कुछ दिन पहले की बात है, फुटकर दुकानदार के न चाहने के बाद भी थोक कारोबारी उन्हें कुछ और मोबाइल उन्हें देने का प्रयास करते नजर आते थे। पैसों की चिंता क्यों करते हैं वो तो आ ही जाएंगे भाई। ऐसे जुमले भी बाजार में थोक कारोबारियों की जुबां पर चढ़े हुए थे, लेकिन अब हालात बदले हैं। फुटकर कारोबारी की सूची में से माल काटा जा रहा है। उसे किसी मॉडल के 10 मोबाइल चाहिए तो उसमें से पांच ही दिए जा रहे हैं। थोक कारोबारी कह रहे हैं कि नहीं भाई इससे ज्यादा नहीं दे सकते। औरों को भी देने हैं। फुटकर दुकानदार गिड़गिड़ाने की स्थिति में हैं। इस दृश्य को बदला है कोरोना ने। परेशान फुटकर कारोबारी सोच रहे कि चलो हमारा भी दिन आएगा।