सद्भाव की मिसाल, गणपति और ताजिये का एक पंडाल
जूही लक्ष्मणपुरवा की गली गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रही है। गणेश प्रतिमा और ताजिया साथ रखने के साथ गणपति बप्पा मोरया का जयघोष होता है तो मुस्लिम भी इसमें शामिल हो जाते हैं।
By Edited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 01:35 AM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 10:59 AM (IST)
कानपुर (अम्बर बाजपेयी) । 'एक ही है सबकी मंजिल बस लफ्जों के तराने बदल जाते हैं दोस्तों वो एक ही मुकाम है, जिसे कुछ स्वर्ग तो कुछ जन्नत का दरबार कहते हैं।' किसी कलमकार की तो ये महज भावनाएं ही रही होंगी, लेकिन जूही लक्ष्मणपुरवा के '¨हदुस्तानियों' ने इसे पावन-पाक धरती पर साकार भी कर दिया। इस नायाब पंडाल को आप स्वर्ग कह सकते हैं और जन्नत का दरबार भी। एक ही पंडाल में गणेश प्रतिमा के साथ ताजिया भी रखा है। आरती में मुस्लिम शरीक होते हैं तो फातिहा में ¨हदू शामिल।
माह-ए-मोहर्रम एकता कमेटी के अध्यक्ष मो. कफील बताते हैं कि 36 साल बाद गणपति उत्सव और मोहर्रम एक साथ पड़ा है। ऐसे में गणेश पूजन के लिए स्वागत द्वार पहले ही तैयार हो गया था। गणेश महोत्सव समिति की प्रमुख राधा राठौर से बातचीत की और निर्णय लिया गया कि एक साथ ही मोहर्रम और गणपति उत्सव मनाया जाएगा। स्वागत द्वार भी एक ही होगा और उस पर दोनों समुदायों के झंडे लगाए जाएंगे। बीच में तिरंगा लहराएगा। क्षेत्र की रेहाना बेगम, ओमप्रकाश, पप्पू, बल्लू राठौर, मो. जाकिर, मो. शाहिद और आमिर भी आयोजन में एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।
फातिहा के वक्त बंद हो जाता भजनों का साउंड
जूही लक्ष्मणपुरवा की यह गली गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रही है। गणेश प्रतिमा और ताजिया साथ रखने के साथ ही समन्वय और समझदारी भी पूरी दिखाई जा रही है। ढोल नगाड़ों की थाप पर गणपति बप्पा मोरया का जयघोष होता है तो मुस्लिम भी इसमें शामिल हो जाते हैं और जब फातिहा पढ़ने की बारी आती है तो साउंड बंद कर ¨हदू उसमें शरीक हो लेते हैं। आपसी मेलजोल की परंपरा यहां काफी पहले से चली आ रही है। गणपति या माता की मूर्ति का विसर्जन होता है मुस्लिम समुदाय के लोग उसमें साथ जाते हैं वहीं, जब ताजिये उठते हैं तो ¨हदू समाज के लोग उसी भाव से साथ होते हैं। इसी तरह दीपावाली पर साथ में पटाखे फोड़ते हैं तो ईद पर एक-दूसरे से गले मिलकर मुबारकबाद देते हैं।
ये कहते हैं क्षेत्रवासी
''आपसी सहमति और सौहार्द्र से सभी त्योहार मनाए जाते हैं। जब फातिहा होता है तो गणेश उत्सव का साउंड बंद कर दिया जाता है और आरती होती है तो हम सब शरीक हो जाते हैं। - मो. कफील अध्यक्ष माह-ए- मोहर्रम
एकता कमेटी ''चालीस साल से यहां रह रहा हूं। यहां का सौहार्द्र कभी प्रभावित नहीं हुआ। जब कभी शहर की फिजा बिगड़ी, तब भी हमारी एकता कायम रही। - कादिर मो. क्षेत्रवासी ''हम ¨हदू हैं न मुसलमान।
हम ¨हदुस्तानी हैं और राष्ट्र हमारे के लिए सर्वोपरि है। इसी सोच के साथ गणेश उत्सव के साथ मोहर्रम मनाया जा रहा है। - राधा राठौर प्रमुख गणेश महोत्सव समिति
''हम साथ रहते हैं और साथ ही सारे त्योहार मनाते हैं। एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। ¨हदू और मुसलमान तो बाद में हैं पहले इंसान हैं। - जमुना देवी, क्षेत्रवासी
माह-ए-मोहर्रम एकता कमेटी के अध्यक्ष मो. कफील बताते हैं कि 36 साल बाद गणपति उत्सव और मोहर्रम एक साथ पड़ा है। ऐसे में गणेश पूजन के लिए स्वागत द्वार पहले ही तैयार हो गया था। गणेश महोत्सव समिति की प्रमुख राधा राठौर से बातचीत की और निर्णय लिया गया कि एक साथ ही मोहर्रम और गणपति उत्सव मनाया जाएगा। स्वागत द्वार भी एक ही होगा और उस पर दोनों समुदायों के झंडे लगाए जाएंगे। बीच में तिरंगा लहराएगा। क्षेत्र की रेहाना बेगम, ओमप्रकाश, पप्पू, बल्लू राठौर, मो. जाकिर, मो. शाहिद और आमिर भी आयोजन में एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।
फातिहा के वक्त बंद हो जाता भजनों का साउंड
जूही लक्ष्मणपुरवा की यह गली गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रही है। गणेश प्रतिमा और ताजिया साथ रखने के साथ ही समन्वय और समझदारी भी पूरी दिखाई जा रही है। ढोल नगाड़ों की थाप पर गणपति बप्पा मोरया का जयघोष होता है तो मुस्लिम भी इसमें शामिल हो जाते हैं और जब फातिहा पढ़ने की बारी आती है तो साउंड बंद कर ¨हदू उसमें शरीक हो लेते हैं। आपसी मेलजोल की परंपरा यहां काफी पहले से चली आ रही है। गणपति या माता की मूर्ति का विसर्जन होता है मुस्लिम समुदाय के लोग उसमें साथ जाते हैं वहीं, जब ताजिये उठते हैं तो ¨हदू समाज के लोग उसी भाव से साथ होते हैं। इसी तरह दीपावाली पर साथ में पटाखे फोड़ते हैं तो ईद पर एक-दूसरे से गले मिलकर मुबारकबाद देते हैं।
ये कहते हैं क्षेत्रवासी
''आपसी सहमति और सौहार्द्र से सभी त्योहार मनाए जाते हैं। जब फातिहा होता है तो गणेश उत्सव का साउंड बंद कर दिया जाता है और आरती होती है तो हम सब शरीक हो जाते हैं। - मो. कफील अध्यक्ष माह-ए- मोहर्रम
एकता कमेटी ''चालीस साल से यहां रह रहा हूं। यहां का सौहार्द्र कभी प्रभावित नहीं हुआ। जब कभी शहर की फिजा बिगड़ी, तब भी हमारी एकता कायम रही। - कादिर मो. क्षेत्रवासी ''हम ¨हदू हैं न मुसलमान।
हम ¨हदुस्तानी हैं और राष्ट्र हमारे के लिए सर्वोपरि है। इसी सोच के साथ गणेश उत्सव के साथ मोहर्रम मनाया जा रहा है। - राधा राठौर प्रमुख गणेश महोत्सव समिति
''हम साथ रहते हैं और साथ ही सारे त्योहार मनाते हैं। एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। ¨हदू और मुसलमान तो बाद में हैं पहले इंसान हैं। - जमुना देवी, क्षेत्रवासी
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