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कानपुर के शहीद कैप्टन आयुष यादव का अंतिम संस्कार आज

जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में गुरुवार तड़के सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले में शहीद कैप्टन आयुष यादव का पार्थिव शरीर कल शाम कानपुर पहुंचा था आज उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी।

By Ashish MishraEdited By: Published: Sat, 29 Apr 2017 09:31 AM (IST)Updated: Sat, 29 Apr 2017 10:34 AM (IST)
कानपुर के शहीद कैप्टन आयुष यादव का अंतिम संस्कार आज
कानपुर के शहीद कैप्टन आयुष यादव का अंतिम संस्कार आज

कानपुर (जेएनएन)। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में गुरुवार तड़के सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले में शहीद कैप्टन आयुष यादव का पार्थिव शरीर कल शाम कानपुर पहुंचा था आज उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी। सिद्धनाथ घाट में अंतिम संस्कार किया जाएगा।

बदहवास हो गए परिवारीजन
शहीद कैप्टन के पार्थिव शरीर के पहुंचने से पहले परिवारीजनों को भी एयरफोर्स स्टेशन ले जाया गया था। यहां जैसे ही पार्थिव शरीर को विशेष विमान से उतारा गया, वैसे ही शहीद कैप्टन की मां सरला यादव ताबूत के पास पहुंच गईं और रोने लगीं। वहां मौजूद सेना व प्रशासनिक अफसरों के साथ घर वालों ने उनको ढांढस बंधाया। पिता अरुण कांत सिंह यादव पहले अपना दिल मजबूत करे खड़े रहे, मगर चंद मिनट बाद ही उनका सब्र टूट गया और वह भी रोने लगे। माता-पिता को देखकर आयुष की बहन रूपल भी खुद को बहुत देर तक नहीं रोक पाई और उन्हें संभालते-संभालते रोने लगी। यह देख वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गईं।

जम्मू से शहर आई टीम
जम्मू से शहर तक शहीद का पार्थिव शरीर लाने की जिम्मेदारी कैप्टन पुलकित खेड़ा को सौंपी गई थी। उनकी टीम में नायब सुबेदार देवाराम मौजूद थे। यह लोग शुक्रवार से शनिवार तक शहर में ही रुकेंगे और अंतिम विदाई कराने के बाद ही शहर से वापस जाएंगे। क्राउड कंट्रोल की जिम्मेदारी पूर्व सैनिकों को दी गई है।

पिता ने कहा, दर्द से ज्यादा फख्र है
किसी पिता के लिए इससे बड़ा दुख और क्या होगा कि उसके सामने ही उसके बेटे का शव आए। कलेजे पर पत्थर रखकर दुख की इस घड़ी का सामना कर रहे पिता अरुण कांत कहते हैं कि मुझे एकलौते बेटे को खोने का दर्द तो है लेकिन उससे ज्यादा फख्र उसकी शहादत पर है। चित्रकूट जिले में एसएसआइ पद पर तैनात अरुण कांत ने बताया कि आयुष उनका इकलौता बेटा था। उनकी एक बेटी रूपल है। वह कहते हैं कि अगर ईश्वर ने एक और बेटा दिया होता तो उसे भी देश को समर्पित कर देते। कमजोर सुरक्षा तंत्र की वजह से देश का कोई लाल फिर वीरगति को प्राप्त न हो, इसके लिए मजबूत सुरक्षा तंत्र बनना चाहिए।

जहां से चले थे, आज भी वहीं खड़े
अरुण कांत ने वर्ष 1984 में एसआइ पद पर पुलिस की नौकरी ज्वाइन की थी। विभाग में फैले भ्रष्टाचार की वजह से वह जहां से चले थे, आज भी खड़े हैं। सिर्फ एक सीढ़ी ही चढ़ पाए। बकौल अरुण कांत, वह गृह जनपद में आखिरी के दो साल गुजारने की अर्जी लगा चुके हैं, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया।

गोलियां लगने के बाद भी दो आतंकी मार गिराए
पिता ने बताया कि यह बात सुनकर सीना चौड़ा हो गया कि पेट में कई गोलियां लगने के बाद भी वह दुश्मनों से अंतिम सांस तक लड़ा। दो आतंकियों को उसने ढेर कर दिया। बेटा बहादुर था, वह ड्यूटी के दौरान के किस्से खूब सुनाता था।
 

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