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कानपुर में सामने आया हैरतअंगेज मामला, इलाज के नाम पर झोलाछाप ने बच्चेदानी और आंतों को किया क्षतिग्रस्त

नौबस्ता के गोपाल नगर निवासी अंकुर की 30 वर्षीय पत्नी लक्ष्मी बच्चेदानी की सफाई के लिए झोलाछाप के पास गई थी। झोलाछाप ने सर्जरी के दौरान बच्चेदानी एवं आंत ही फाड़ दी जिससे गंदगी शरीर में फैल गई। हालत बिगडऩे पर फरार हो गया।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 09:07 AM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 09:07 AM (IST)
कानपुर में सामने आया हैरतअंगेज मामला, इलाज के नाम पर झोलाछाप ने बच्चेदानी और आंतों को किया क्षतिग्रस्त
डाक्टरों के प्रयास से महिला को मिला नया जीवन। प्रतीकात्मक फोटो।

कानपुर, जेएनएन। झोलाछाप ने 30 वर्षीय युवती की बच्चेदानी की सफाई के नाम बच्चेदानी एवं आंतों को क्षतिग्रस्त कर मरणासन्न स्थिति में पहुंचा दिया। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर हाथ खड़े कर दिए। जान जोखिम में देखकर स्वजन बेहोशी की स्थिति में एलएलआर अस्पताल (हैलट) इमरजेंसी लेकर आए। जहां डाक्टरों ने 28 दिन आइसीयू में रखकर सतत मानीटङ्क्षरग की। न सिर्फ सेप्टीसीमिया से उबारते हुए युवती को नया जीवन प्रदान किया। 37 दिन तक सतत निगरानी के बाद गुरुवार को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया।

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नौबस्ता के गोपाल नगर निवासी अंकुर की 30 वर्षीय पत्नी लक्ष्मी बच्चेदानी की सफाई के लिए झोलाछाप के पास गई थी। झोलाछाप ने सर्जरी के दौरान बच्चेदानी एवं आंत ही फाड़ दी, जिससे गंदगी शरीर में फैल गई। हालत बिगडऩे पर फरार हो गया। ऐेसे में स्वजन ने उसे दूसरे निजी अस्पताल लेकर गए, जहां के डाक्टर ने सर्जरी कर पेट से मल का रास्ता बनाया। हालांकि युवती को होश नहीं आया। ऐसे में बेहोशी की हालत में 14 सितंबर को उसे एलएलआर इमरजेंसी लेकर आए। 

जीएसवीएम मेडिकल कालेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला ने बताया कि जब युवती भर्ती हुई उसका ब्लड प्रेशर नहीं मिल रहा था। गंभीर सेप्टीसीमिया में थी। निमोनिया की वजह से दोनों फेफड़े सफेद हो गए थे। ऐसी स्थिति में सर्जरी विभाग के डा. निशांत सक्सेना, डा. ऋतुराज, डा. योगेंद्र एवं डा. नेहा आइसीयू में शिफ्ट कर आर्टियल ब्लड प्रेशर की निगरानी करते रहे। साथ में ब्रांकोस्कोपी से फेफड़ों में भरा पानी निकाला और दवाओं से संक्रमण कम किया। नियमित फ्लूड थेरेपी से शरीर को पर्याप्त पोषण भी देते रहे। सेप्टीसीमिया की वजह से गुर्दे खराब होने पर नियमित डायलिसिस  भी करानी पड़ी। 28 दिन तक आइसीयू से रखने के बाद वार्ड में शिफ्ट कर दिया। मरीज के पूरी तरह स्वस्थ होने पर 37 दिन बाद गुरुवार को डिस्चार्ज कर दिया। प्रो. काला ने कहा कि मरीज की जान बचाने वाली सर्जिकल व एनस्थीसिया विभाग की टीम बधाई की पात्र है। 


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