बेगारी काटते दस दिन गुजरे, अब घर में करेंगे दूसरा काम
दूसरे राज्यों में जाकर कमाने की नहीं रही इच्छा अब अपने गांव में काम करने को कह रहे हैं प्रवासी ।
जागरण संवाददाता, कानपुर : अपना घर किसे प्यारा नहीं होता। जिदगी में आगे बढ़ने के लिए घर छोड़कर मुंबई गए थे। सोचा था कि दिन रात काम करके खुद को आगे ले जाएंगे, लेकिन पहले लॉकडाउन में भी सपना चूर हो गया था। दूसरे ने तो सारी उम्मीदें ही खत्म कर दीं। एक सप्ताह से बेगारी काट रहे थे। लॉकडाउन खुलने की उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। फिर लगा कि यहां पड़े रहकर क्या करेंगे। अच्छा होगा कि घर लौट चले। यह दर्द था मुंबई से लौटे लोहा कारखाने में काम करने वाले फतेहपुर आबूनगर निवासी हनीफ का।
हनीफ ने बताया कि उसके साथ गोंडा, बहराइच, सिद्धार्थ नगर के करीब 12 साथी थे। सभी ने घर वापसी के लिए सभी लोगों की सहमति बनी। जितने भी रुपये थे। सभी ने मिलाकर 15 हजार रुपये किराया लोडर वाले को दिया। कुछ कच्चा राशन साथ लेकर चले थे। उससे रास्ते में रुक कर खाना आदि बनाकर खाया है। अब सभी को डेढ़ से दो हजार रुपये के बीच ही नकदी बची है। सिद्धार्थ नगर के खखरा निवासी मक्सूद अली ने बताया कि मंगलवार की रात आठ बजे मुंबई से चले थे। गुरुवार की शाम को कानपुर पहुंचे हैं। कुछ देर के लिए आराम करने के बाद आगे निकलेंगे।
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अब वापस लौटकर नहीं जाएंगे मुंबई
सिरसिया सिद्धार्थ नगर निवासी हबीब शाह ने बताया कि मुंबई को सपनों का शहर कहा जाता है। मुंबई जाकर काम करना मेरा भी सपना था, लेकिन इस शहर से दो बार सपने टूटे हैं। अब आगे वापस लौटकर मुंबई नहीं जाएंगे। गांव में रहकर ही खेती बाड़ी में परिवार का हाथ बंटाएंगे।