दिमाग में घर कर रहा तनाव, बना रहा अपनी जान का दुश्मन
लॉकडाउन के बाद पटरी पर लौट रही जिंदगी की गाड़ी डांवाडोल है। हाथ से छूटती नौकरियां बढ
लॉकडाउन के बाद पटरी पर लौट रही जिंदगी की गाड़ी डांवाडोल है। हाथ से छूटती नौकरियां, बढ़ रही बेरोजगारी, व्यापार और कारोबार में घाटा से पैदा हो रही आर्थिक विसंगतियों से आम आदमी तनाव में है। पति-पत्नी के बीच झगड़े बढ़ रहे हैं। खासकर युवा वर्ग अवसाद और आवेश में आकर आत्मघाती कदम उठा रहा है। आत्महत्या के बढ़ते आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि कैसे तनाव ने लोगों के दिमाग में घर कर लिया है। अकेले कानपुर में ही पिछले 16 दिन में 57 लोग जान दे चुके हैं। उदाहरण एक: 20 जून
लॉकडाउन में बिधनू के न्यू आजाद नगर निवासी प्रेम वर्मा की नौकरी छूट गई। पति-पत्नी में झगड़ा हुआ। पहले प्रेम ने फांसी लगाई और फिर पत्नी चंद्रिका ने भी जान दे दी। उदाहरण दो: 16 जून
कोरोना के चलते शादी टूटी तो चकेरी के कृष्णा नगर निवासी युवती ने अवसाद में आकर जान दे दी। स्वजनों ने बताया कि शादी की तैयारियों में खर्चे को लेकर वह तनाव में थी। उदाहरण तीन: 1 जुलाई
महराजपुर के खोजऊपुर निवासी 17 वर्षीय इंद्रजीत ने इंटरमीडिएट में कम अंक आने पर जान दे दी। उसके 52 फीसद अंक आए थे। पिता राम मोहन ने बताया कि नंबर कम आने से वह तनाव में था। मनोचिकित्सक की राय
कोरोना काल ने आम लोगों में तनाव की श्रेणी को बढ़ा दिया है। कुछ परिवारों में सदस्यों के बीच मतभेद थे, लॉकडाउन में साथ रहने से हालात और बिगड़ गए। घरेलू समस्याएं बढ़ीं तो खुदकुशी के मामलों में भी वृद्धि होने लगी। कोरोना के चलते आर्थिक क्षमताएं प्रभावित होने पर भी लोग मौत का रास्ता चुनने लगे। जरूरी है कि लोग असंतोष और अवसाद को खुद पर हावी न होने दें। परिवार के सदस्य एक-दूसरे से बात करें। ऐसे बहुत से लोग हैं जो मनोचिकित्सकों के यहां पहुंच रहे हैं।
- डॉक्टर विपुल सिंह, वरिष्ठ मनोचिकित्सक
फ्रांस के प्रसिद्ध समाजशास्त्री डेविड इमाईल दुर्खीम ने वर्ष 1897 में लिखी अपनी पुस्तक 'ली सुसाइड' में आत्महत्या के विभिन्न स्वरूपों का जिक्र किया है। इनमें से ही एक है इगोइस्टिक सुसाइड। यह अधिकांश अविवाहित पुरुषों में पाया जाने वाला लक्षण है। अक्सर लोग इस उम्र में सपनों की दुनिया सजाते हैं और जब सपना टूटता है तो खुदकुशी कर लेते हैं। इसका बड़ा कारण समाज में व्याप्त कम्युनिकेशन गैप भी है। मोबाइल के प्रयोग से इन्हें और बढ़ा दिया है। आने वाले समय में हालात और बिगड़ेंगे।
- डॉ. संजय तिवारी, सदस्य, भारतीय समाजशास्त्र परिषद।
आत्महत्या के मामले और कारण
15 पति-पत्नी में विवाद के बाद
12 परिवार में विवाद के बाद।
09 कोरोना के चलते विभिन्न कारणों से।
06 अवसाद
05 बीमारी
02 पब्जी गेम।
06 अज्ञात।
02 परीक्षा में कम नंबर आने पर ।
नोट- आंकड़े पिछले 16 दिन के हैं..।
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आत्महत्या के आंकड़े
20 लोगों ने जान दी 16 से 20 जून के बीच
18 लोगों ने मौत चुनी 21 से 26 जून के बीच
19 लोगों ने खुदकुशी की 27 से 1 जुलाई के बीच -----
36 आत्महत्या करने वाले रहे 18 से 35 आयु वर्ग के
09 खुदकुशी करने वाले थे 36 से 50 उम्र के बीच
08 लोगों की उम्र थी 50 से अधिक
04 मामलों में खुदकशी करने वालों की उम्र 0 से 17 वर्ष थी। राष्ट्रीय औसत से आंकड़े काफी अधिक
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक कानुपर में वर्ष 2017 में 514 और वर्ष 2018 में 566 लोगों ने खुदकुशी की। हालांकि 2018 में आत्महत्या का राष्ट्रीय औसत 10.2 है, लेकिन 739 जनपदों के लिहाज से प्रति जनपद हर साल औसतन 182 लोग जान देते हैं। मसलन हर दो दिन में एक व्यक्ति। हालांकि बीते 16 दिन में कानपुर में हुए 57 खुदकुशी के मामले ये बताते हैं कि यहां हर दो दिन में तकरीबन सात लोगों ने आत्महत्या की है।