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Samadhi Diwas : UP में नीब करोरी वाले बाबा ने कुएं के खारे पानी को बना दिया था मीठा

17 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया और गुजरात जाकर साधना की। नीब करोरी गांव के लोग बताते हैं कि बाबा जी 1961 में गांव आए थे। 15 जून 1964 में उन्होंने मंदिर का निर्माण शुरू कराया और उसमें अपने हाथ से बनी हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की

By Akash DwivediEdited By: Published: Sat, 11 Sep 2021 10:01 AM (IST)Updated: Sat, 11 Sep 2021 10:01 AM (IST)
Samadhi Diwas : UP में नीब करोरी वाले बाबा ने कुएं के खारे पानी को बना दिया था मीठा
फर्रुखाबाद : मोहम्मदाबाद क्षेत्र में स्थित बाबा नीबकरोरी धाम। जागरण

फर्रूखाबाद, जेएनएन। शायद ही कोई हो, जिसके मन में नीब करोरी वाले बाबा के प्रति श्रद्धा न हो। फर्रुखाबाद व आसपास के जिलों में बाबा लोगों के दिलों में बसते हैं। फर्रुखाबाद के हर बड़े मंदिर में बाबा की मूर्ति स्थापित है, जहां इनकी नित्य पूजा-अर्चना होती है। नीब करोरी वाले बाबा लक्ष्मणदास जी का असली नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा है। उनका जन्म फीरोजाबाद जिले के अकबरपुर (हिरनगांव रेलवे स्टेशन के पास) वर्ष 1900 में हुआ था। बताया जाता है कि बाबा का विवाह 11 वर्ष की उम्र में ही हो गया था।

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17 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और गुजरात जाकर साधना की। नीब करोरी गांव के लोग बताते हैं कि बाबा लक्ष्मणदास जी 1961 में गांव आए थे। 15 जून 1964 में उन्होंने मंदिर का निर्माण शुरू कराया और उसमें अपने हाथ से बनी हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की। उसके बाद यहां पर एक महीने के लिए हर साल मेला लगने लगा। दूर-दूर से बाबा के भक्त आने लगे। मंदिर के पास में ही गुफा में बाबा लक्ष्मणदास तपस्या करते रहे। यहां वह करीब 11 वर्ष तक रहे। 11 सितंबर 1973 में वृंदावन मथुरा में उन्होंने समाधि ले ली। समाधि लेने के बाद श्रद्धालुओं ने 15 फरवरी 1984 में उसी मंदिर में बाबा लक्ष्मणदास की मूर्ति स्थापित कराई।

कई चमत्कारों ने बढ़ाई बाबा के प्रति श्रद्धा : नीब करोरी गांव के कई लोग बताते हैं कि बाबा जब तक यहां पर रहे, कोई न कोई चमत्कार करते रहे। गांव के धीरज मिश्रा बताते है कि मंदिर स्थित कुएं में खारा पानी आता था। बाबा लक्ष्मणदास ने किसी ग्रामीण से कहा कि इसमें थोड़ी चीनी डाल दो, उसके बाद से यह कुआं खारा पानी नहीं देगा। ग्रामीण ने चीनी डाल दी, तब से उस कुएं का पानी पीने योग्य हो गया। हालांकि अब मंदिर में वह कुआं बंद कर दिया गया है।

बाबा उतरे तो खड़ी हो गई थी ट्रेन : गांव के जितेंद्र वर्मा बताते हैं कि एक बार बाबा लक्ष्मणदास गंगास्नान के लिए फर्रूखाबाद जा रहे थे। रास्ते में टीटीई ने टिकट नहीं होने पर असम्मानित तरीके से उन्हेंं ट्रेन से उतार दिया था। बाबा ट्रेन से उतरकर नीम के पेड़ के नीचे बैठ गए। उनके ट्रेन से उतरते ही इंजन बंद हो गया और ट्रेन नहीं चली। रेलवे के कर्मचारियों ने जब उनसे क्षमा मांगी तब उन्होंने कहा कि यहां पर स्टेशन बनाया जाए। उसके बाद से यहां पर बाबा लक्ष्मणदास पुरी नाम से स्टेशन बना दिया गया है।


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