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शौक बड़ी चीज है... जानिए, क्यों दूसरों से बिल्कुल जुदा है कानपुर के शौकीनों का अंदाज

कोई प्रकृति प्रेम में खो गया है तो किसी ने शौक को अपने कारोबार से भी बड़ा कर लिया है।

By AbhishekEdited By: Published: Wed, 22 Jan 2020 02:15 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 09:39 AM (IST)
शौक बड़ी चीज है... जानिए, क्यों दूसरों से बिल्कुल जुदा है कानपुर के शौकीनों का अंदाज
शौक बड़ी चीज है... जानिए, क्यों दूसरों से बिल्कुल जुदा है कानपुर के शौकीनों का अंदाज

कानपुर, [श्रीनारायण मिश्र]। इंसानी फितरत है कि हर शख्स को किसी न किसी चीज का शौक होता है। मगर कुछ लोग शौक पालते हैं तो कुछ लोग उसे अपना जुनून यानि पैशन बना लेते हैं। इसके लिए न तो वक्त कोई मायने रखता है और न ही पैसा। हर वक्त शौक के लिए कोई भी समझौता करने और किसी भी कठिनाई से गुजरने को तैयार रहते हैं। शहर में भी कुछ ऐसी ही शौकीन लोग हैं, जिनका अजब गजब अंदाज दूसरे से बिल्कुल जुदा है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही लोगों के शौक और उसे पूरा करने का उनका जतन। आइए, शहर के कुछ ऐसे शौकीनों के बारे में जानने का प्रयास करते हैं...।

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गौरैया की सेवा ही है पूजा अर्चना

संयुक्त विकास आयुक्त के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले इंदिरानगर निवासी नरेंद्र सिंह यादव का शौक प्रकृति प्रेम से जुड़ा है। उन्हें विलुप्त होती जा रही गौरैया से बेहद प्रेम है और घर में जगह-जगह गौरैया के घोंसले और उनके चहकने की आवाजें आती हैं। इंदिरानगर से दयानंद विहार तक सैकड़ों घरों में गौरैया उनके बांटे घोंसलों में पल रही हैं। उनका यह शौक जुनून बन गया है। उनकी दो बेटियां हैं, जो स्कूल से आकर इस काम में पिता का हाथ बंटाती हैं। गौरैया के किस घोंसले में कितने बच्चे हुए, बच्चों के नामकरण करने का काम भी उनकी बेटियां करती हैं।

जून में वे एक बार नवजन्मे सभी गौरैया के बच्चों की छठी मनाते हैं। वह आसपास के लोगों को बुलाकर मिष्ठान वितरण भी कराते हैं। नरेंद्र सिंह कहते हैं कि ये दिल का मामला है। मैं अपनी कमाई का दस फीसद तक इन पर खर्च कर देता हूं। जिस तरह से लोग मंदिरों में जाते हैं, दान दक्षिणा देते हैं। मैं वह खर्च इन गौरैया पर करता हूं और मुझे इसी में सारे सुख मिल जाते हैं।

कारोबार से भी बड़ा बन गया शौक

चांदी, गिलट, तांबे, पीतल और जस्ते जैसी धातुओं के हजारों सिक्के एकत्र करना ही रामकिशोर मिश्रा का शौक है। वैसे तो वह नयागंज में सराफा कारोबारी हैं, लेकिन उनका ये संकलन कारोबार का हिस्सा नहीं है। उनके कारोबार में इस शौक की हिस्सेदारी जरूर है। 72 वर्षीय रामकिशोर मिश्रा कहते हैं कि जब वह समझदार हुए तो उनकी दुकान पर ऐसे सिक्के आते थे। बस यहीं से उन्हें एकत्र करने का शौक लग गया। फिर जो पुराना सिक्का आता था, उसे खरीदकर अपने कलेक्शन में शामिल कर लेता था। आज की तारीख में उनके पास ब्रिटिशकाल से लेकर मौजूदा दौर के हजारों सिक्के हैं। इन्हें वह एक बोरी में संभाल कर रखते हैं।

वह बताते हैं कि अब जो सरकारी सिक्के चल रहे हैं, वे भी उनके पास हैं ही। अब ऐसे चांदी के सिक्कों को भी संभाल कर रखते हैं जो बाजार में बिकते हैं। लाखों रुपये कीमत के इन सिक्कों को कभी बेचने की ख्वाहिश नहीं हुई। इस सवाल पर कहते हैं कि ये मेरा शौक है, जिसकी कोई कीमत नहीं है। मैं चाहता हूं कि मेरी आने वाली पीढिय़ां जानें कि हमारे पूर्वजों के जमाने में किस तरह के सिक्के चला करते थे।

लिपिस्टिक लगाते-लगाते लगा कलेक्शन का चस्का

यूंं तो हर युवती या महिला को सजने संवरने का शौक होता है। इसलिए उनके पास सौंदर्य प्रसाधन का होना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन कपड़ों की डिजाइनर रिशा जायसवाल के लिए लिपिस्टिक का कलेक्शन उनका पैशन है। रेलवे स्टेशन के करीब मीरपुर निवासी रिशा बैंक और रेलवे परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं और कपड़ों की डिजाइनिंग भी करती हैं। उन्हें ब्रांडेड लिपिस्टिक का शौक है। वह कहती हैं कि चार साल पहले जब से उन्होंने लिपिस्टिक लगाना शुरू किया, बस धीरे-धीरे उन्हें इसके कलेक्शन का चस्का लग गया।

अब वह तकरीबन हर रंग की और प्रसिद्ध ब्रांड की लिपिस्टिक रखती हैं। जैसे ही इसमें से कोई कलर खत्म होता है, वह लाकर रख देती हैं। भले ही जरूरत न हो, फिर भी उन्हें लगता है कि कुछ खाली-खाली है। वह कहती हैं कि इस शौक के लिए वह अपनी कमाई से ज्यादातर खर्च करती हैं। इसके लिए बाकी खर्च पर नियंत्रण करना पड़ता है। उनका कहना है कि अब वह लिपिस्टिक के खाली केस का कलेक्शन करेंगी, ताकि याद रहे कि किस ब्रांड ने किस दौर में कौन सा कलर कांबिनेशन उतारा था।

मूर्तियों से लेकर ब्रिटिशकालीन तिजोरियों का संग्रह

जिस दौर में वेल्डिंग नहीं होती थी, उस ब्रिटिशकाल में फौलादी तिजोरियां कैसी होती थीं, ये देखना हो तो आप लालबंगला में खत्री धर्मशाला के निकट रहने वाले गोविंद शर्मा के घर जा सकते हैं। पुरानी चीजों के कलेक्शन के शौक के चलते उनके पास ऐसी कई तिजोरियां हैं। यही नहीं अष्टधातु से लेकर कई महंगी धातुओं से बनी श्रीगणेश, नटराज, बुद्ध की अनेक प्रतिमाएं भी हैं, जो डेढ़ से पौने दो सौ साल पुरानी हैं। इसके अलावा ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने के स्टैंप पेपर, हाथ से बने पुराने जमाने के औजार भी उनके घर की शोभा बढ़ाते हैं। उनका पूरा घर ही संग्रहालय बन गया है।

सारी चीजें साफ सुथरी, व्यवस्थित और सुरक्षित रहें, इसके लिए उनका परिवार भी उनकी मदद करता है। गोविंद कहते हैं कि कुछ पुरानी चीजें पिताजी ने रखी थीं। इन्हें देखकर ही मुझे यह शौक लगा। कोई नशा नहीं करता, फिल्म देखने या घूमने जैसी चीजों पर जो लोग खर्च करते हैं। मैं सारा खर्च अपने इस संग्रह पर खर्च करता हूं। प्रिटिंग कारोबार करने वाले गोविंद कहते हैं कि इन चीजों को जुटाने के लिए मैं जहां भी सूचना मिलती है चला जाता हूं।


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